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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 108 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-110

विषय - "नारी सर्वत्य पूज्यते !"

आयोजन की अवधि- 14 दिसम्बर 2019, दिन शनिवार से 15 दिसम्बर 2019, दिन रविवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 14 दिसम्बर 2019, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

बहुत ही सुंदर दोहे विषय को सार्थक करते ,कोटिशः बधाई स्वीकारें सादर।

आ. सुनंदा जी, दोहों पर उपस्थिति से मान बढ़ाने के लिए आभार।

जो कुल नारी का करे, देवी सा सत्कार
उस कुल लेते जन्म हैं, अंशों में अवतार।१।

.............नारी का सम्मान हो, यह उसका अधिकार 
.............वो संतति की वाहिनी, वो घर का आधार 


शिव नारी के मान को, देते आधी देह
तभी अधूरा ही रहे, नारी बिन हर गेह।२।

............शक्ति बिना शिव भी रहें, शव सम सदा अपूर्ण 
.............नर नारी के बिन कहाँ, हो पाता सम्पूर्ण 


किया राम ने सीख जो, वही श्याम का सार
माँ जीसस की धन्य  थी, दिये सही सँस्कार।३।

..............राम अधूरे सिय बिना, राधा बिन ज्यों श्याम 
..............शक्ति बसे शिव तत्व में, तभी बने घर धाम 


नारी को सम्मानता, जब था वैदिक काल
सत्कर्मी उन्नत रहा, तब मानव खुशहाल।४।

...............वैदिक युग में नारियां, पाती थीं सम्मान 
..............उनका वैदिक ज्ञान भी, गढ़ता था प्रतिमान 

नारी नर की आत्मा, शतपथ कहे विचार
नारी बिन नर का  रहे, आधा ही आधार।५।

..............सृष्टि सृजित हर तत्व का, नर-नारी आधार 
..............दो धुर के संयोग से, सृजन करे विस्तार 


मानक सभ्य समाज का, नारी का सम्मान
बढ़े धर्म सँस्कृति  सदा, उससे पाकर ज्ञान।६।
.............तब ही सभ्य समाज है, यदि नारी आश्वस्त 
.............है तब जंगल राज बस, यदि नारी है त्रस्त


वैदिक युग कहता मिला, देवी है हर नार
जैसे  शिव  हैं  धारते,  वैसे  तू  भी  धार।७।

...........कब नारी की चाहना, देवी सा सम्मान 
...........बस इतनी है कामना, जिए आत्म अभिमान 

नारी  है  सच  मानिए,  पुरुषों  का  सम्मान
इसीलिए इसका सदा, बढ़चढ़ रखना ध्यान।८।

...........नर-नारी दोनों रखें, इक दूजे का ध्यान 
...........दोनों ही प्रतिपल करें, इक दूजे का मान 


वर तलाश उस काल में, नारी का अधिकार
इस युग स्वेच्छा से नहीं, वर सकती स्वीकार।९।

...........स्वयं वरण वर का करे, था वैदिक अधिकार 
...........गरिमामय प्रारूप यह, खो बैठा आधार  


बच्चों को दे सोच नव, मानुष करती नार
घर समाज या देश का, तब होता उद्धार।११।

...........प्रथम शिक्षिका माँ सदा, करे चरित निर्माण  
...........आकृति पाती सभ्यता, संस्कृति पाती प्राण 

बहुत खूबसूरत दोहे कहे हैं आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी 
बहुत बहुत बधाई 

आ. प्राची बहन, सादर अभिवादन। सारगर्भित व प्रेरणादायी उपस्थिति के लिए ह्रिदयतल से आभार ।

कुण्डलिया

सारे रंगों को लिये, सारे सुर, सब तान

धरती जीवन-बीज को, रही शक्ति की खान

रही शक्ति की खान, किन्तु कोमल कोंपल-सी

उत्सव में उत्साह, भरे है करनी जिसकी

सतविंदर कह पूज्य, सदा ही रहे हमारे

मातृ-शक्ति के रूप , सर्वदा जग में सारे।

मौलिक अप्रकाशित

विषयानुसार बहुत सुंदर कुंडलिया लिखी आदरणीय।कोटिशः बधाई स्वीकारें सादर । 

आ. भाई सतविन्द्र जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुन्दर कुन्डलियाँ हुई हैं । हार्दिक बधाई।

आदरणीय राणा जी सुंदर भावात्मक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई

रहे सर्वदा पूज्य जो , मातृ शक्ति के रूप 
जानें क्यों उस राह पर, अब हैं अंधे कूप 
अब हैं अंधे कूप, कहाँ अब जाए नारी 
अष्ट दिशा से हाय! बरसती विपदा भारी 
काश सहेजे राष्ट्र स्वयं की पुण्य सम्पदा 
जी पाए आश्वस्त, सुरक्षित रहे सर्वदा 

बहुत सुन्दर कुण्डलिया छंद आदरणीय सतविन्द्र कुमार राणा जी 
बधाई 

नारी

सदा ममत्व लुटाती नारी।
विपदा से वह कभी न हारी।।
सभी गुणों की खान जगत में।
रिश्तों में वह सबसे भारी ।।

नारी से है बड़ा न कोई।
बिन नारी के खड़ा न कोई।।
मातृ भाव जिसके भी मन में।
नजर मिलाकर लड़ा न कोई।।

छाँव तले हैं सब सुख पाते।
मद में गरिमा आज गिराते।।
दागदार आँचल करने में।
पामर मनुज नहीं शर्माते।।

नारी के गुण नर में आये।
देव तुल्य नर पूजा जाए।।
नर के गुण आये नारी में।
वह जग में कुलटा कहलाये।।

आदर जहाँ नारियाँ पाएँ।
गुंजित होतीं सभी दिशाएँ।।
स्वर्ग सरीखे घर आँगन में।
मधुर मुकुल सी बन मुस्काएँ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

आ. भाई छोटेलाल जी, सुन्दर रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी उत्साह वर्धन के लिए दिल से आभार

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