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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-10 (विषय: रंग)

आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
सादर वन्दे।
 
वर्ष २०१६ के पहले "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के इस 10 वें अंक में आपका स्वागत है I "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पहले नौ आयोजन बेहद सफल रहे। नए पुराने सभी लघुकथाकारों ने बहुत ही उत्साहपूर्वक इनमें सम्मिलित होकर इन्हें सफल बनाया। कई नए रचनाकारों की आमद ने आयोजन को चार चाँद लगाये I इस आयोजनों में न केवल उच्च स्तरीय लघुकथाओं से ही हमारा साक्षात्कार हुआ बल्कि एक एक लघुकथा पर भरपूर चर्चा भी हुई। गुणीजनों ने न केवल रचनाकारों का भरपूर उत्साहवर्धन ही किया अपितु रचनाओं के गुण दोषों पर भी खुलकर अपने विचार प्रकट किए, जिससे कि यह गोष्ठियाँ एक वर्कशॉप का रूप धारण कर गईं। इन आयोजनों के विषय आसान नहीं थे, किन्तु हमारे रचनाकारों ने बड़ी संख्या में स्तरीय लघुकथाएं प्रस्तुत कर यह सिद्ध कर दिया कि ओबीओ लघुकथा स्कूल दिन प्रतिदिन तरक्की की नई मंजिलें छू रहा  है I यह कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी कि यह सभी आयोजन लघुकथा विधा के क्षेत्र में मील के पत्थर साबित हुए हैं । तो साथियो, इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है....
 
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-10 
विषय : "रंग"
अवधि : 30-01-2016 से 31-01-2016
(आयोजन की अवधि दो दिन अर्थात 30 जनवरी दिन शनिवार से 31 जनवरी 2016 दिन रविवार की समाप्ति तक)
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  30 जनवरी  2016 दिन शनिवार  लगते ही खोल दिया जायेगा)
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अति आवश्यक सूचना :-
१. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
२. सदस्यगण एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
३. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
४. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
५. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी लगाने की आवश्यकता नहीं है।
६. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
७.  नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
८. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
९. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं। रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें।
१०. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
११. रचना/टिप्पणी सही थ्रेड में (रचना मेन थ्रेड में और टिप्पणी रचना के नीचे) ही पोस्ट करें, गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी बिना किसी सूचना के हटा दी जाएगी I
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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बुराई और अच्छाई दोनों ही जीवन के दो पहलु है जिसे नकारा नहीं जा सकता, कुछ इसी धारणा को दर्शाती और जीवन के शेड्स को फिफ्टी फिफ्टी के अंदाज में बताने की कोशिश करती बेहतरीन कथा। आप की रचना के शिल्प और कथ्य पर कहना तो सूर्य को रौशनी दिखाने जैसा ही है आदरणीय रवि प्रभाकर भाई जी। सादर बधाई स्वीकार करे भाई जी।

विषय आधारित-रंग
||लालकिला ||

मैंने हर दौर को, इन आँखों से देखा है।
'मेरी गोद में बैठकर कईं बादशाहों ने दिग्विजय के सपने देखे है!'
'कई बेगमों की ख़ुशियों का साक्षी हूँ। मैंने डोलियों में बेटियां बिदा की हैं, और बहुओं का मंगल प्रवेश किया।'

" कई सूरमाओं के कारण कभी शर्म से सर झुका तो, कभी गर्व से सिरमोर्य हुआ है। मेरी पथराई आँखों ने जीवन के अनेक रंग देखे हैं। परन्तु मैंने यहाँ राग रंग से अलिप्त सदियाँ गुजार दी।"

'अंतिम मुग़ल शासक बहादूर शाह जफर की गलतियों पर भी मैं लाल-पीला नहीं हुआ।'
मैंने इसे अपनी नियति मान लिया।

कई दीवाने मेरी आज़ादी के लिए हँसते-हँसते सुली पर चढ़ शहीद हो गए।

परन्तु , ओ मेरे लाल ! मैंने उस शहीद लाल की बेवा के साहस से द्रवित हूँ। जिसे मेरे ही आँगन में आज शैलानियों को तमाशा दिखाकर, अपना जीवन यापन करना पड़ रहा। शहादती घोषणा में मिला, मकान डबल गोला सड़क लील गई। और मंत्री जी कहते है- "एक बार लाल किले से सम्मान कर तो दिया। और क्या चाहिए? " रोज हजारों शहीद होते हैँ। क्या जीवन भर सबको पालने का ठेका ले रखा है।"

सुनते ही, मैं दिल्ली का किला क्रोधाग्नि में रक्त-तप्त लाल हो गया हूँ। और तुम मुझे लाल पत्थरों का 'लाल किला' कहते हो।

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मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीय विजय जी लाल किले के लाल रंग को प्रतीक बनाकर आपने बहुत गहरी बात लघुकथा के माध्यम से अभिव्यक्त की है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

आभार भाई मिथिलेश जी आपकी ओबीओ पर सक्रिय को कोटि सह प्रणाम ।

मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार आपका.

"एक बार लाल किले से सम्मान कर तो दिया। और क्या चाहिए? " रोज हजारों शहीद होते हैँ। क्या जीवन भर सबको पालने का ठेका ले रखा है।"- असली मर्म रंग बदलती दुनिया का

आद.नयना आरती जी आभार जी आपका कथा अवलोकनार्थ व सार्थक टिप्पणी हेतु।
बहुत ही उम्दा देशभक्ति भावपूर्ण, समसामयिक परिदृश्य में कटाक्ष पूर्ण प्रतीकात्मक शैली की प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय विजय जोशी जी।
आपका online सहयोग व समर्थन मुझे सदैव मिलता रहा है। अपने आज कथा पर गैर फ़रमाया। आभार जी।
कथा का उद्देश्य यहाँ आपकी लघुकथा में साफ - साफ परिलक्षित हो रहा है । बेहतरीन शिल्प के साथ एक नवीन कथानक को प्रस्तुत किया है । शहादत पर की गई राजनीति , लालकिले के दर्द का कारण बनी । इस आक्रोशित लघुकथा के लिए ढेरों बधाई आपको आदरणीय विजय जी ।
आपके मुझे लघुकथा की अल्फाबेट सिखाई है।शिल्प भी आप से ही सिख है। आभार जी, कांता जी।

जनाब विजय जोशी   साहिब  , ऐतिहासिक  रंग पर आधारित अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

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