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हाँ सही ! गणेश भाई, आप सही कह रहे हैं. पहली तीनों पंक्तियाँ एक ही पात्र की उक्तियाँ हैं. तो फिर इन तीनों को एक ही साथ होना है.
गणेश भाई, इस विषय में मुझे संतुष्ट नहीं होना है. बल्कि इस हेतु जो प्रस्तुतीकरण शैली है, उसीका निर्वहन होना है. यदि तीनों उक्तियों के बीच अंतराल बताना है तो इसे प्रस्तुत करने का भी एक ढंग है जो प्रिण्ट या शब्दों में उसी ढंग से लिखा जाता है. उन वाक्यों के बीच का अन्तराल कुछ सतत विन्दुओं से दर्शाया जाता है, एक ही इन्वर्टेड कॉमा में. यदि उसी पात्र का किसी अन्य पात्र के साथ संवाद की स्थिति बनती है तो पात्रानुसार एक के बाद एक उक्तियाँ इन्वर्टेड कॉमा में आती जायेंगीं. ऐसी कोई प्रस्तुतीकरण-व्यवस्था आज से नहीं बल्कि कथा-कहानियों के शाब्दिक होने के प्रारम्भ से चली आरही है. विश्वास है, आप समझ रहे होंगे.
:-)))
शुभ-शुभ
सराहना युक्त प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी.
प्रस्तुत लघुकथा आपको सन्देश परक लगी, लेखन कर्म सार्थक हुआ, बहुत बहुत आभार आदरणीया नीता कसार जी.
सुंदर लघुकथा , आज के माहौल में ये बहुत ही सशक्त रचना हुई है - बधाई हो
बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल जी.
स्त्री की समझदारी यहीं दिखाई देती है, अपनी इज्जत के प्रति जागरूक होकर सच्चाई का रंग देख लिया| हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी सर, आपको इस सुंदर सृजन के लिए|
आदरणीय चंद्रेश जी, आपकी प्रतिक्रिया मुग्धकारी है, बहुत बहुत आभार.
सराहना हेतु हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ आदरणीया उपमा शर्मा जी.
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