For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता-अंक-३ (Now Closed with Record 1633 Replies)

आदरणीय मित्रों !

"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-२ की अपार सफलता के लिए आप सभी मित्रों को हृदय से बधाई !

"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता" अंक-3 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है ! आज के इस चित्र को देखिये अगर इस में ताजमहल न दिखता तो संभवतः यह विश्वास ही नहीं होता कि गंदगी व कूड़े से पटी हुई यह यमुना नदी ही है, जिसे हमारे देश में पूजा भी जाता है यहाँ तक कि हमारी संस्कृति भी गंगा-जमुनी ही कही जाती है ! आखिर हम भारतवासी अपने प्राकृतिक जल संसाधनों के साथ क्या करना चाहते हैं !

 

इस चित्र को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आज "स्लज ट्रीटमेंट" व "वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट", व "सीवेज ट्रीटमेंट" जैसे उपाय हमारी पुस्तकों में ही विश्राम करते हुए नजर आ रहे हैं, इस दिशा में कुछ करना तो दूर अपितु  नित्य प्रति अपना कूड़ा-कचरा सहित कितने ही गंदे नाले और सीवर आदि भी इन्हीं नदियों में गिरा देते हैं वह भी बिना शोधित  किये हुए, ऐसा भी नहीं कि हम प्रदूषण के दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं फिर भी जान बूझकर हम इसे अनदेखा करके इसे बढ़ावा ही दे रहे हैं !


आइये तो उठा लें अपनी-अपनी कलम, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, क्योंकि हम साहित्यकारों के लिए यह नितांत आवश्यक है कि इस मुद्दे पर कुछ न कुछ सृजन अवश्य करते रहें ताकि इस समाज में इस सम्बन्ध में कुछ जागरूकता आये...

नोट :-

(1) १५ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १६ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |

(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग  रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत हैअपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे 

(3) नियमानुसार "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-२ के विजेता इस अंक के निर्णायक होंगे और उनकी रचनायें स्वतः प्रतियोगिता से बाहर रहेगी | एक छोटा सा संसोधन है कि इस अंक से प्रथम, द्वितीय के साथ-साथ तृतीय विजेता का भी चयन किया जायेगा |  

 
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक रचना ही स्वीकार की जायेगी  |

विशेष :-

(१) यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश प्रतियोगिता के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर १६ जून से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही प्रतियोगिता प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |

(२) यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें | 

संचालक :- अम्बरीश श्रीवास्तव

Views: 12562

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

पाण्डेय जी, बहुत ही सटीक व्याख्या की है आपने एक कवि हृदय की. मेरी भी सहमति आपके ही शब्दों में झलक रही है. धन्यवाद.
आदरणीय प्रभाकर जी, बहुत ही उम्दा रचना. सिर्फ बधाई स्वीकार करें कह कर नहीं रुक पाउँगा. एक एक पंक्ति एक सम्पूर्ण ग्रन्थ की तरह लिख डाली है आपने.
//तेरी हस्ती से ही हस्ती है मेरी
तेरी मौजूदगी ही शान मेरी, 
भले घुटती है तेरी सांस लेकिन, 
निकलती लग रही है जान मेरी !// यमुना और ताज के संबंधों को इससे बेहतर और कैसे व्याख्यायित किया जा सकता है, मुझे नहीं लगता. सांस और जान के रूपक को बखूबी प्रयोग किया है आपने प्रभाकर जी.

//तेरे आँचल पे उभरे दाग जितने
मेरी रूह पे वो छाले हो रहे  हैं,
तेरे जल की सियाही से परीशाँ ,
मेरे
पत्थर भी काले हो रहे हैं !// नि:शब्द कर दिया यहाँ तो आपने. जल की सियाही का पत्थर के काले होने से क्या गहरा सम्बन्ध स्थापित किया है आपने. लाजवाब है. 

//मैं तन्हा था भले सदियों से लेकिन,
उदासी से सदा तूने उबारा !
भला अहसान कैसे भूल पाऊँ
तेरी लहरों का वो मुझको सहारा !// एक उदास जीवन में हवा का झोंका और नदिया की लहरें कितना गहरा असर छोडती हैं, इसको बखूबी उकेरा है.

//मुझे जबसे बनाया शाहजहाँ ने, 
मैं इक लफ्ज़-ए-मोहब्बत हो गया हूँ
ये बरकत है तेरी मौजूदगी की, 
इमारत से इबारत हो गया हो गया हूँ // किसी की अपने जीवन में मौजूदगी की इतनी सुन्दर व्याख्या की जा सकती है, ये आपकी इन पंक्तियों ने आज सिखा दिया है. शत शत नमन. अपने जीवन पर लागू करके देखें तो ज्यादा फर्क महसूस नहीं होगा मुझे. बहुत ही उम्दा शेर कहा आदरणीय प्रभाकर जी.

//बड़ा मुश्किल ऐ यमुना भूल पाना  
बिताया वक़्त जो शाना बशाना,
वो तेरा गोपियों की बात करना, 
कन्हेया के मुझे किस्से सुनाना !// एक सांस्कृतिक पहलु को बहुत अच्छे से संजोया है आपने यहाँ.

//अगर मैं भी कोई इंसान होता,
तेरे चरणों को मैं खुद रोज़ धोता,
सदा रहता वो धवल दूधिया सा 
तेरा आँचल कभी मैला न होता !// अंत में एक इंसानी जज्बे को बहुत ही सुन्दर शब्दों में ढाला है आपने. साथ ही एक धवल दूधिया ताज और यमुना की कल्पना भी अभिव्यक्त कर दी.

जितनी बार भी पढता हूँ, कुछ न कुछ नया पहलु समझ में आता है, बहुत ही सुन्दर और गहरी रचना मंच को दी है आपने. तहेदिल से बधाई स्वीकार करें.
धर्मेन्द्र भाई, आपकी इस वृहत समीक्षा को पढ़कर दिल बाग़ बाग़ हो गया ! जिस तरह से अपने रचना के हरेक पहलु को लेकर विस्तार में बात की वह वन्दनीय है ! मैं आपके इस उत्साह वर्धन के लिए ह्रदय से आपका आभार व्यक्त करता हूँ !
आपका स्वागत है.
घनाक्षरी :

कूड़ा-कचड़ा कबाड़ नदियों में डाल डाल,
भाग्य रेखा भारत की हमने उजाड़ी है| 
विश्व का अजूबा ताज उसको भी खतरा है,
जलवायु इतनी प्रदूषित हमारी है|
गंगा वह गंगा नहिं जमुना न जमुना है,
पूजनीया नदियों की सूरत बिगाड़ी हैं|
चेते नहीं अब भी हो जल को किया विषाक्त|
दुनिया कहेगी देश भारत अनाड़ी है ||

//कूड़ा-कचड़ा कबाड़ नदियों में डाल डाल,
भाग्य रेखा भारत की हमने उजाड़ी है// बिलकुल सही कहा आपने , नदियों की इस दुर्गति के लिए हम सभी कही न कही जिम्मेदार है |
//विश्व का अजूबा ताज उसको भी खतरा है,
जलवायु इतनी प्रदूषित हमारी है// अब क्या कहा जाय , यहाँ तो कुएं में ही भंग पड़ी है

//गंगा वह गंगा नहिं जमुना न जमुना है,
पूजनीया नदियों की सूरत बिगाड़ी हैं//जीवन रेखा समाप्त होती जा रही है अत्यंत चिंतनीय मुद्दा है |

//चेते नहीं अब भी हो जल को किया विषाक्त|
दुनिया कहेगी देश भारत अनाड़ी है // यह हमारा दुर्भाग्य ही है जो हम अपने धरोहर को संभाल नहीं पा रहे है और अनाड़ी की तरह अपने हाथों से आत्म हत्या करने पर तुले है , आप सही कह रहे है आदरणीय . कही न कही हम लोग दुनिया को मौका दे रहे है कि वो हमें अनाड़ी कहे | 
खुबसूरत और भावप्रधान , अर्थप्रधान घनाक्षरी हेतु बधाई स्वीकार करे |
भाई बागी जी ! ऐसी विस्तृत विवेचना के माध्यम से इस घनाक्षरी की सराहना करने के लिए आपका आभारी हूँ | आपको मेरा स्नेहाशीष |
आदरणीय भाई बागी जी! बड़ी ही खूबसूरत व्याख्या की है आपने ! .....:))
बहुत खूबसूरत, सटीक व प्रवाहमयी घनाक्षरी ! बाकी सारी विवेचना भाई बागी जी पहले ही कर चुके हैं मैं उनसे पूर्णतया सहमत हूँ !.....आदरणीय आलोक जी को हृदय से बधाई !...:))
धन्यवाद अम्बरीश |
सरस, सरल, तरल, सुंदर, व्यंग्यात्मक घनाक्षरी के लिए बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय सीतापुरी जी।
धन्यवाद धर्मेन्द्र | मधुर स्नेहाशीष |

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion गीतिका छंद in the group भारतीय छंद विधान
"राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका। शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।। लोग बोलें आप बोलें छंद…"
6 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
44 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion रोला छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"आदरणीय सौरभ सर, रोला छंद विधान से एक बार फिर साक्षात्कार कर रहा हूं। पढ़कर रिवीजन हो गया। दोहा…"
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
22 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service