For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-21 (विषय:अँधेरी राहों के मुसाफ़िर)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले 20 सफल आयोजनों की अपार सफ़लता के बाद वर्ष 2016 के अंतिम 21 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत हैI प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-21
विषय : "अँधेरी राहों के मुसाफ़िर"
अवधि : 30-12-2016 से 31-12-2016 
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 30 दिसम्बर  2016 लगते ही खोल दिया जायेगा)
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2.  रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 15419

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय ओमप्रकाश जी, सादर अभिवादन। आपका कथानक सुना हुआ होने के बावजूद भी प्रभावी है और प्रदत्त विषय के एक नए पक्ष को भी उजागर करता है कि अँधेरी राहों में कुछ मुसाफ़िर अनचाहे भी पहुँच जाते हैं। इस हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। कुछ चीजें हैं जिन्हें आप संकलन आने पर सुधरवा लीजिएगा जैसे राजन जो भी संवाद करता है वह अपने आप से करता है इसलिए उन्हें इनवर्टेड कॉमा में नहीं होना चाहिए। पर आपने उन्हें इनवर्टेड कॉमा में रखा है। इससे भ्रम उत्पन्न होता है कि संवाद दो लोगों के मध्य चल रहा है। दूसरी चीज, "मनगढ़ंत आरोप" वाला बिंदु "उसी चैन से गला कटा था" के साथ सुसंगत नहीं है। साथ ही, इनवर्टेड कॉमा के बाद और प्रश्नवाचक तथ्य विस्मयबोधक चिह्न से पहले आपने स्पेस दिया है जिनकी आवश्यकता नहीं है। एक आध जगह प्रश्नवाचक चिह्न का अनावश्यक प्रयोग है। इन्हें देख लीजिएगा। इसके अतिरिक्त कालकोठरी में मच्छर के काटने और उसे मौत की सजा देने वाले हिस्से ने राजन की मनःस्थिति को अच्छे से उभारा है। मेरी तरफ से ढेरों बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ। सादर।

हार्दिक बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी। बहुत प्रासंगिक एवम प्रेरणादायक प्रस्तुति।

आदरणीय महेंद्र कुमार जी आप का कहना 100 प्रतिशत सही है. लघुकथा पाठकों के लिए बहुत अस्पष्ट थी. इसलिए वह बेकार ही थी. इसे परिमार्जन कर आदरणीय योगराज प्रभाकर जी भाई साहब के Reply बॉक्स में पोस्ट की है. कृपया पुनः पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया देने का कष्ट करे.यही निवेदन है.

आदरणीय तेज वीर सिंह जी आप का आभार .

आदरणीय ओमप्रकाश जी सर, निःसंदेह रचना परिमार्जन के बाद पहले से स्पष्ट हो गयी है, आप भाग्यशाली हैं कि आपकी रचना को उत्तम बनाने हेतु गुरूजी और इतने गुणीजनों ने राय दी| हालाँकि मुझे तो (किसी व्यक्ति के) स्वयं के जीवन पर स्वयं की मानसिकता और आत्मा के आंतरिक वार्तालाप को लघुकथा में दर्शाने के लिए कम से कम एक महिना चाहिये| मुझे यह भी विश्वास है कि इस रचना पर और अधिक कार्य कर इसे हिंदी लघुकथाओं की प्रारंभिक पंक्ति में लाया जा सकता है| सादर,

अँधेरी राह के हमसफ़र

मेरी बर्थ नीचे की थी , मैं आराम से मैगजीन लेकर बैठ चुका था। सामने की बर्थ पर एक माडर्न स्टाइलिश महिला थीं। शांत , चुप चाप सी , कुछ परेशान सी , अस्थिर। बार बार ऊपर देखती , फिर इधर - उधर, शायद उनकीं बर्थ ऊपर की थी। कुछ ही समय में एक आंचलिक दम्पत्ति सामान सहित आये , तेरह चौदह , कहते हुए , बैठ गए। मतलब सामने की दोनों बर्थ उन्हीं की थीं। मैं भी निश्चिन्त हो गया , ए सी टू की हम चारों की सीटों के पैसेंजर आ चुके थे। पर उनके आने से मैडम अचानक काफी असहज सी हो गयी। वे सज्जन स्वयं मेरी बगल में बैठ गए , सामने मैडम की बगल में उनकीं पत्नी बैठ गयीं।जीन्स - कोट में मैडम उस महिला से हट कर खिड़की की तरफ खिसकती जा रहीं थीं , वे शायद उनसे सीट बदलने तक के लिए बात करने में भी असहज हो रहीं थीं।
कहीं दूर से राजधानी आये वे दोनों पति पत्नी अब तक स्थापित हो चुके थे। उनकीं बातचीत से लग रहा था कि वे कुछ परेशान , खिन्न थे। वे किसी दूरस्थ स्थान से आये थे और राजधानी में काम भी कुछ बना नहीं था। कभी व्यवस्था को कोसते , कभी किसी आदमी को। ट्रेन धीरे धीरे स्टेशन छोड़ने लगी थी। उन लोंगों की खिन्नता अधिक मुखर होने लगी थी। काम बना नहीं था , आगे क्या करना है , समझ नहीं आ रहा था। संस्था के अन्य साथी तरह तरह के सवाल करेंगे तो वे क्या कहेंगे। इसी में परेशान थे।
मैं अपनी पत्रिका में कुछ पढ़ने में लग गया था।
ट्रेन अभी भी सुस्त चल रही थी , कब कंडक्टर आया , कब चला गया ,पता नहीं चला।उन पर ध्यान तब गया जब मैडम उनकीं बातों में शामिल हो चुकी थीं और पूरे उत्साह से उनकीं बातों में रूचि ले रहीं थीं। राजधानी का ही कोई दूसरा स्टेशन आया था , गाड़ी रुकी , फिर चली। मैडम की आवाज स्पष्ट थी , " नहीं , नहीं , आप परेशान न हों , हमारी कम्पनी पूरी जिम्मेदारी लेती हैं ,सारा डॉक्यूमेंटेशन हम करा देते हैं , पूरी गारेंटी के साथ , आप जो चाहो खरीदो , बांटों आपकी मर्जी , आपकी संस्था है। आप सेवा कर रहे हो। हम तो बस आपकी मदद करते कि आप इतनी दूर से यहां आकर कहाँ कहाँ भटकोगे। " स्थिति स्पष्ट हो रही थी , वे दोनों सामाजिक सेवा हेतु कोई केंद्र चला रहे थे , मैडम किसी ऐसी फर्म में काम करती थीं जो ऐसे संगठनों के हिसाब - किताब की देख-भाल करती हैं। दोनों का काम दूसरे से चलता है , मैडम अब पूरी तरह सहज और आश्वस्त थीं , दोनों पक्ष एक दूसरे से घुल-मिल चुके थे , आपस में एक दूसरे के मोबाईल नंबर ले रहे थे। ट्रेन ने पूरी रफ़्तार पकड़ ली थी। इंजन का हॉर्न सुनाई दे रहा था , शायद ड्राइवर रात के अँधेरे में पटरी-मार्ग पर आश्वस्त हो रहा था। इधर मेरे तीन सह-यात्री अपने अँधेरे मार्ग के साथी - हमसफ़र बन चुके थे। मैंने भी अपना मोबाईल चेक किया। किसी ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी , " सरकार ऍन जी ओस के प्रति सख्त " . ट्रेन का हॉर्न फिर बजा , उन तीनों की बातें गहरी होती जा रहीं थीं , मुझे नींद आ रही थी।

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरनीय विजय शंकर जी आप ने  पात्रों की मनोदशा को बखूबी उकेरा है. बधाई आप को इस विशेषता के लिए,

आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रीय जी , आभार एवं धन्यवाद , सादर।
अच्छी प्रस्तुति विषयानुरूप । हार्दिक बधाई आपको ।बस एक संशय है क्या टी सी के लिए कंडक्टर शब्द उपयुक्त है ? कृपया अन्यथा न लेते हुए मार्गदर्शित कीजिये । सादर ।
आदरणीय सुश्री शशि बंसल जी , लघु-कथा पर आपकी उपस्थिति एवं उसे पसंद करने के लिए आभार एवं धन्यवाद।
आपके प्रश्न का उत्तर , जी कंडक्टर शब्द बिल्कुल सही है, क्योंकि यह वह कर्मचारी होता है जो स्लीपर , ए सी , कोच में आपकी रिसर्व सीट पर आपकी उपथिति सुनिश्चित करता है। आपकी अनेक सुविधाओं का ,यहां तक आपको स्टेशन आने पर जगाने का भी दायित्व निभाता है। आपकी पूरी यात्रा में आपके साथ होता है।
टी सी अर्थात टिकेट कलेक्टर वह होता है जो यात्रा पूरी होने पर आपका टिकेट कलेक्ट करता है। एक और होता है , टी टी ई अर्थात ट्रेवल्लिंग टिकेट एग्जामिनर , वह केवल यात्रा के दौरान यात्रियों के टिकेट चेक करता है और चेक कर के वापस कर देता है। स्लीपर आदि कोच में कंडक्टर टीटीई का काम भी करता है।
आशा इस जानकारी से आश्वस्त होगीं , आपकी स्पष्टवादिता बहुत अच्छी लगी। उसके लिए भी आभार , सादर।
मेरे संशय का इतने सुंदर और विस्तृत तरीके से समझाने हेतु वह भी अन्यथा लिए बिना इसके लिए हृदय से आभारी हूँ । मुझे वाकई इतनी विस्तृत जानकारी नहीं थी । सादर ।
आपका स्वागत है।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service