इस छंद के नाम पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. कारण कि, इसीसे मिलते-जुलते नाम का एक और छंद हरिगीतिका भी एक सुप्रसिद्ध छंद है.
हम यहाँ गीतिका छंद पर चर्चा कर रहे हैं.
गीतिका चार पदों का एक सम-मात्रिक छंद है. प्रति पंक्ति 26 मात्राएँ होती हैं तथा प्रत्येक पद 14-12 अथवा 12-14 मात्राओं की यति के अनुसार होते हैं. पदांत में लघु-गुरु होना अनिवार्य है.
इसके हर पद की तीसरी, दसवीं, सतरहवीं और चौबीसवीं मात्राएँ लघु हों तो छन्द की गेयता सर्वाधिक सरस होती है. किन्तु, मूल शास्त्र के अनुसार इस तथ्य को विन्दुवत नहीं कहा गया है. ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जिनमें तीसरी तथा चौबीसवीं मात्राएँ लघु हों भी तो दसवीं और या सतरहवीं मात्राएँ लघु न हो कर पूर्ववर्ती अक्षर में समाहित हो कर गुरु हो गयी हैं. किन्तु, ऐसे प्रयोग बहुत प्रचलित नहीं हुए. न ही ऐेसे उदाहरण आसानी से मिलते हैं.
चूँकि, हम छन्दों के बसिक स्वरूप पर बात कर रहे हैं तो क्यों न इस मंतव्य को मूल नियम की तरह अपनाया जाये. ताकि छन्द पर होने वाला अभ्यास सरस तो हो ही सार्थक भी हो.
अतः हम इस छन्द के प्रत्येक पद में तीसरी, दसवीं, सतरहवीं तथा चौबीसवीं मत्राओं को लघु रखने का ही प्रयास करें.
यह निर्विवाद है कि छन्द के अंत में रगण = राजभा = गुरु लघु गुरु (ऽ।ऽ) छन्द को अधिक श्रुति मधुर बना देता है.
इस हिसाब से, इस छन्द के पद का मात्रिक विन्यास ऐसे भी किया जा सकता है -
2122 2122 2122 212 या
ला ल लाला / ला ल लाला / ला ल लाला / लालला
निम्नलिखित उदाहरण द्रष्टव्य है जिसमे बोल्ड किये अक्षर नियमानुसार लघु मात्रिक हैं तथा यति 14-12 पर है -
हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये.
शीघ्र सारे दुर्गुणों से दूर हमको कीजिये.
लीजिये हमको चरण में हम सदाचारी बनें.
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें... (राम नरेश त्रिपाठी)
12-14 पर यति भी मान्य है, जैसे -
राम ही की भक्ति में, अपनी भलाई जानिये. (भानु प्रसाद)
इस छन्द को चंचरी या चर्चरी भी कहते हैं. कई विद्वानों ने चंचरी या चर्चरी के लिए विशेष वर्णवृत भी बनाया है जो निम्नलिखित है -
रगण सगण जगण जगण भगण रगण
इसे संकेतों में निरुपित करें तो -
212 112 121 121 211 212 .. इस विन्यास को ध्यान से देखा जाय तो ऊपर उद्धृत विन्यास ही बनता है. भले, इस विन्यास में कई गुरु विखण्डित हो कर लघु-लघु बन गये हैं.
हम दोनों विन्यासों को एकसाथ प्रस्तुत करते हैं -
गीतिका का विन्यास - 2122 / 2122 / 2122 / 212 और
चंचरी या चर्चरी का विन्यास -21211 / 21211 / 21211 / 212 ..
यानि दोनों विन्यासों में यही अंतर है कि गीतिका के विन्यास के कुछेक गुरु चंचरी के विन्यास में दो लघुओं में बदल गये हैं. जो पढ़ने के क्रम में वर्णों या अक्षर पर बराबर वज़न के कारण दिक्कत पैदा नहीं करते. जैसे, हम दो लघुओं यानि ह तथा म के बावज़ूद हम स्वराघात के कारण दीर्घ या गुरु की तरह उच्चारित होता है.
इसीतरह, कमल को क+मल की तरह उच्चारित किया जाता है. इन तथ्यों को शब्दों के ’कलों’ को समझने के क्रम में बेहतर समझा जा सकता है.
इस तरह स्पष्ट है कि चंचरी या चर्चरी ही गीतिका है.
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गीतिका छंद पर आपकी यह जानकारी निश्चित रूप से हर रचनाकार के लिए अमूल्य निधि है। जितने विस्तृत रूप से आपने इसकी व्याख्या की है वह गीतिका छंद की हर जिज्ञासा को शांत करती है। इस हेतु आपको हार्दिक धन्यवाद। प्रयत्न करूंगा कि इसे व्यवहारिक रूप में ला सकूँ। पुनः इस जानकारी हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।
अवश्य आदरणीय.. आपका स्वागत है ।
राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका।
शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।।
लोग बोलें आप बोलें छंद होगा मान लो।
बुद्ध बोले जैन बोले क्या भला ये जान लो।।
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