आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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तमाशबीन
नव विवाहिता बहु शिखा और उसकी माँ का दनदनाते हुई कमरे में चले जाना रामेश्वर जी को हैरान कर गया। उसके आने का कारण वे खोज रहे थे की राजेश ने आकर सुचना दी :
"पिताजी, मैं और शिखा अब उसके घर में ही किराये से रहेंगे। हमने यह फैसला आपसी सहमति से लिया हैं।"
"लेकिन बेटा,इसका बिरादरी के समक्ष तुम पर असंख्य आरोप लगा तलाक का फैसला लेना ,इतना बड़ा हंगामा करना ,वो सब क्या था?"
"छोड़िये पिताजी ,वो बाते पुरानी हो गयी।मेरा घर बस रहा हैं।आपको खुश होना चाहिए।"
बेटे के व्यवहार से व्यथित हो स्वयं ही बुदबुदा उठे:
"तुम्हारे चरित्र पर इतने लांछन और हमारी परवरिश का तमाशा तुम सर झुकाये तमाशबीन की तरह देखते रहे मात्र हमसे पीछा छुड़ाने की खातिर !"
मौलिक एवमं अप्रकाशित
कहानी का अंत झकझोर देता है वाह्ह्ह विषय को सार्थक करती लघु कथा (वैसे इत्तेफ़ाक ही है हाल ही मैं ऐसी ही एक सच्ची घटना से रूबरू हुई हूँ अपनी जान पहचान में )
बहुत बहुत बधाई अर्चना जी
अच्छी लघुकथा हुई है अर्चना त्रिपाठी जी, आजकल ऐसे किस्से अक्सर देखने सुनने में आ ही जाते है जहाँ केवल अपना अलग घर संसार बसाने के नाम पर बुजुर्गों की भावनाओं को आहात किया जाता हैI हार्दिक बधाई प्रेषित है I
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