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मैं एक बेवफा से उर्मिला सी वफा की उम्मीद कर रहा था- ये तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली बात हो गयी .
आदरनीय अर्चना त्रिपाठी जी , बहुत खूब कहा आप ने अपना दिया अकेलापन लौटा रही है. बधाई .
कागज कलम के साथी पर बेवफ होने का इल्जाम लगाने के बाद वफा की चाहत वह भी उर्मिला जैसी वाह रे लक्ष्मण
बधाई आदरणीय ।
कोई न कोई सहारा तो ढूँढना ही था सो कलम ही सही | अति - सुंदर कथा | बस पाठक के तौर पर पढ़ते-पढ़ते एक शब्द खटका ..जब से लौटे हो अत्यंत गुमसुम रहते हो.. अत्यंत जरा अस्वाभाविक सा लगा इस सम्वाद में | सादर
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