गहरी दरारें (लघु कविता)
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जैसे किसी तालाब का
सारा जल सूखकर
तलहटी में फट गई हों गहरी दरारें
कुछ वैसी ही लग रही थी
उस वृद्ध की एड़ियां
शायद तपा होगा वह भी
उस तालाब सा कर्त्तव्य की धूप में
अर्पित कर दिया होगा
अपने रक्त का कतरा - कतरा
अपनों को पालने में।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी,
प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की एड़ियों की तुलना सूखे तालाब की तलहटी में पड़ी गहरी दरारों से करना कविता को मारक बना रहा है। एक वृद्ध के जीवन के कठिन परिश्रम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा को दर्शाती ये पंक्तियां अपने मर्म को अभिव्यक्त करने में सफल हुईं हैं। "कर्त्तव्य की धूप" और "रक्त का कतरा-कतरा" जैसे प्रतीकात्मक शब्द जीवन की कठिनाइयों और अपनों के लिए समर्पण को गहराई से शाब्दिक करते हैं। कथ्य की तार्किकता के संदर्भ में आदरणीय सौरभ पाण्डे सर का मार्गदर्शन तो मिल ही गया है। इस प्रभावकारी प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर
परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।
ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ एक प्रारम्भ से प्रकाशित होती रही हैं। ऐसी कविताओं की विशेषताओं में प्रमुख विशेषता है, निहित शब्दों का मितव्ययिता के साथ प्रयोग। अंतर्निहित भाव कम से कम शब्दों में अभिव्यक्त होते हैं। अभिव्यक्तियों में निहितार्थ तिर्यक रूप से निस्सृत होते हैं। अभिमत इंगितों में संप्रेषित होता है। कहन की शैली व्यंजनात्मक या व्यंग्यात्मक होती है। व्यंग्य भी तीखा, चुहचुहाता हुआ, जो हृदय को खखोर कर रख दे। अर्थात भावाभिव्यक्ति में शब्द जितना कुछ खोलते हैं, उससे अधिक अलोत रखते हैं। सम्प्रेषण के क्रम में तार्किकता विवेक के चरम पर होती है।
अर्थात, ऐसी कविताएँ एक पाठक की मानसिक अवस्था की निस्संदेह परीक्षा लेती हैं। इन संदर्भों में नई कविता के पुरोधा अज्ञेय, क्षणिकाओं की सिद्धहस्त सरोजिनी प्रीतम की प्रस्तुतियों को परखा जा सकता है।
इस हिसाब से प्रस्तुत कविता विशेष रूप से अभ्यास मांगती है।
आप तालाब की तलहटी के सापेक्ष वृद्ध की एँड़ियों को देखते हुए अचानक उस वृद्ध के तपने की बात करने लगते हैं। और यहीं आपके कवि का अनुभव और तार्किकता, दोनों जवाब दे जाते हुए दीखते हैं।
प्रस्तुत कविता पर पुनर्प्रयास -
जैसे
किसी तालाब की तलहटी में
उभर आती हैं गहरी दरारें
सारा जल सूख जाने के बाद
वैसी ही लगीं
उस वृद्ध की एँड़ियाँ
तपी होंगीं वे भी
कर्त्तव्य की दौड़-धूप में
अर्पित कर दिया है इनने
रक्त का एक-एक कतरा
विश्वास है, आप मेरे कहे से आश्वस्त हो सके होंगे।
शुभ-शुभ
आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।
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