For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-68

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 68 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हिंदुस्तान के मशहूर शायर जनाब बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"फूल सा मुस्कुराता हुआ कौन है"

212   212     212      212

फाइलुन फाइलुन  फाइलुन फाइलुन

(बह्र: मुतदारिक मुसम्मन सालिम )

रदीफ़ :- कौन है
काफिया :- आ( जानता, बेवफा, सा, सरफिरा आदि)

 

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 फरवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 फरवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें| बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा|
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है|
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं| ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें|
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करेंI
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी|
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगीI

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 फरवरी दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 19780

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

बहुत बहुत शुक्रिया भाई सचिन देव जीI 

जनाब योगराज प्रभाकर जी आदाब,शायद तरही मुशायरे में पहली बार आपकी ग़ज़ल से रूबरू हुआ हूं, खेर आपकी ग़ज़ल बहुत ख़ूब है, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ !
छटे शैर के ऊला मिसरे में "इत्र"की जगह अगर खुशबू का ज़िक्र होता तो अच्छा होता,आख़िरी शैर में"कर्बला"स्त्रीलिंग है, देखिएगा !

ग़ज़ल को अपना बेशकीमती वक़्त देने के लिए दिल से शुक्रिया मोहतरम समर कबीर साहिबI

सर, खुश्बू कर तो लेता लेकिन शायद आपको हैरत हो कि धतूरे की खुशबू इतनी तेज़ और दिलकश होती है कि हैरत होती हैI (मेरे घर के आस पास धतूरे के बहुत से बूते उगे हुए हैंI)

जी, आप बिलकुल दुरुस्त फरमा रहे हैं कि कर्बला स्त्रीलिंग है, मैंने भी उसी तरह ही लिया हैI

जी धतूरे के बारे में मालूमात नहीं थी,शुक्रिया !
"कर्बला" आपका मिसरा है"नया कर्बला"को "नई कर्बला"होना चाहिये न ?

वाह्ह्ह आदरणीय, शब्द कम पड़ जाएँ प्रशंशा करने की ठान लूं तो, लगता है पिछले कई महीनों से मैंने कई नगीने गवांये है.

हर शेर दिल फरेब है, ये तो सीधे भेद ही गए...

दिलबरी, दोस्ती, आजिज़ी, सादगी 
शौक़ महंगे बड़े, पालता कौन है

.

धडकनें यूँ बढ़ीं क्यों अचानक मेरी 
कनखियों से मुझे देखता कौन है

शर्त ये थी यहाँ इत्र ही इत्र हों 
फिर धतूरा यहाँ बो रहा कौन हैं

हार्दिक आभार भाई भुवन निस्तेज जीI

आदरणीय योगराज सर, इस ग़ज़ल पर कई कई कारणों से मुग्ध हूँ. एक उस्ताद की ग़ज़ल में क्या जादू होता है, ये देखने मिल गया. लफ़्ज़ों पर नियंत्रण और उन्हें बरतने का सलीका जानने के लिए एक शानदार उदाहरण है यह ग़ज़ल.......... अपनी समसामयिक घटनाओं को कैसे अभिव्यक्त किया जाता है कि रचना कालजयी बन जाए, यह भी इस ग़ज़ल से स्पष्ट है. कैसे शब्द अपने वर्तमान को बोलते है और कविताई होती है, इसे इस ग़ज़ल के अशआर से समझा जा सकता है. इस शानदार ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

 

सूफियाना ग़ज़ल गा रहा कौन है 
पीर है या कोई दिलजला, कौन है?........ वाकई ऐसी ग़ज़ल पीर गाते हैं या दिलजले.... शानदार मतला

.

जोड़ता कौन है, तोड़ता कौन है 
इस बहस का करे फैसला, कौन है?............... इस शेर के अर्थ विस्तार को देखकर चकित हूँ. हाल फिलहाल चल रही उथल पुथल की वास्तविकता पर तंज करता यह शेर यदि खोलते जाएँ तो कितने ही सन्दर्भों में सटीक बैठेगा.

.

हुक्मराँ दौर का है जो हातिम अगर 
फिर निवाले मेरे छीनता कौन है..................यह शेर क़माल हुआ है. अगर हुक्मरान हातिमताई है तो फिर ये लूट?

.

दिलबरी, दोस्ती, आजिज़ी, सादगी 
शौक़ महंगे बड़े, पालता कौन है.......................  बहुत बढ़िया शेर ....... ये शौक पालना इतना आसान नहीं. इस शेर की गहराई भी मुग्ध करती हुई सी है. इधर कथ्य का पल्लवन आरम्भ होता है उधर पाठक मुग्ध होता चला जाता है.

 

धडकनें यूँ बढ़ीं क्यों अचानक मेरी 
कनखियों से मुझे देखता कौन है............... इस शेर की नजाकत ही इसका सौन्दर्य है. एक शानदार शब्द चित्र भी बन रहा है. बस शेर को दोहराते जाइए, आपको कनखियों से देखता हुआ कोई चेहरा नज़र आने लगेगा.

.

शर्त ये थी यहाँ इत्र ही इत्र हों 
फिर धतूरा यहाँ बो रहा कौन है.................. बस यही कह रहा था .... यह है एक दमदार समसामयिक शेर

.

देख महबूब को सब ने पूछा यही 
फूल सा मुस्कुराता हुआ कौन है.................. बहुत बढ़िया गिरह

.

छनछनाहट सी पायल की चुप हो गई 
ये मुझे देखकर छुप गया कौन है........................ बेहतरीन शब्द चित्र

.

खाक में दफ्न है गर वो ज़ालिम यज़ीद
रच रहा फिर नया कर्बला कौन है.................... आपने यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया और यक़ीनन इसका उत्तर मौन रहता आया है. क्या यज़ीद सच में दफ्न है या अभी भी सिर उठाये घूम रहा है हमारे आसपास, हमारे बीच.... कई कई रूपों में ..... और फिर एक करबला की तैयारी में है. ऐसे कई कई यज़ीद को जल्दी पहचानना होगा नहीं तो फिर कर्बला की स्थिति बन जायेगी. यज़ीद और करबला का प्रतीक लेकर वर्तमान की बिगड़ती दशा को बहुत सधे हुए शब्द मिलें है और कथ्य एक बड़े फ़लक पर विस्तार पाता है.

 

इस शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई निवेदित है और आभार भी. सादर 

इतने विस्तार और मनोयोग से ऐसी विशद समीक्षा से अभिभूत हूँ, यह आपके रचनात्मक कौशल और समीक्षात्मक वैदुष्य की परिचायक है। हार्दिक धन्यवाद मेरे इस तुच्छ से प्रयास को सराहने के लिए है मिथिलेश वामनकर जीi 

आदरणीय सर, आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. हार्दिक आभार आपका 

सूफियाना ग़ज़ल गा रहा कौन है 
पीर है या कोई दिलजला, कौन है? वाह क्या  बात है पीर है या दिलजला बेहतरीन सर  जी 

.

जोड़ता कौन है, तोड़ता कौन है 
इस बहस का करे फैसला, कौन है? सही फरमाया कौन फैसला करे जोड़ता कौन है, तोड़ता कौन है 

.

हुक्मराँ दौर का है जो हातिम अगर 
फिर निवाले मेरे छीनता कौन है.... सौ टके की बात कही है 

.

दिलबरी, दोस्ती, आजिज़ी, सादगी 
शौक़ महंगे बड़े, पालता कौन है ....वाह वाह है 

.

धडकनें यूँ बढ़ीं क्यों अचानक मेरी 
कनखियों से मुझे देखता कौन है.....क्या बात है सर जी 

.

शर्त ये थी यहाँ इत्र ही इत्र हों 
फिर धतूरा यहाँ बो रहा कौन हैं  ये भी खूब रही 

.

देख महबूब को सब ने पूछा यही 
फूल सा मुस्कुराता हुआ कौन है बिलकुल सटीक जगह लगा है 

खाक में दफ्न है गर वो ज़ालिम यज़ीद
रच रहा फिर नया कर्बला कौन है.... बेहतरीन लाइन 

आदरणीय योगराज प्रभाकर  जी गजल की मुझे परख नहीं है पर गुनगुनाहट के भान से कोशिस करता  हूँ 

आपके गजल की हर लाईन प्रभावित करने वाली है दिल से मुबारक बाद है आपको 

दिल खुश कर दिया आपने 

रचना पसंद फरमाने के लिए हार्दिक आभार आ० उमाशंकर मिश्रा जीI

  सर जी, बहुत ही सुंदर गज़ल और उस पर भरपूर विचारों पर बधाई हो 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service