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मित्रों !

“चित्र से काव्य तक” समूह में आपका हार्दिक स्वागत है | यह प्रतियोगिता आज से ही प्रारंभ की जा रही है, इस हेतु प्रस्तुत चित्र में आज के इस प्रगतिशील आधुनिक समाज के मध्य सैकड़ों साल से चलता आ रहा कोलकाता का रिक्शा दिखाई दे रहा है, आमतौर पर ऐसे रिक्शे पर तीन तीन सवारियां भी देखी जाती हैं, इस कार्य में मान-सम्मान तो दूर अक्सर इन्हें अपमान ही सहन करना पड़ता है, कई सामाजिक संगठनों नें ऐसे रिक्शे बंद कराने की मांग भी की है परन्तु यह सभी रिक्शाचालक इस कार्य को सेवा-कार्य मानते हुए इसे त्यागने को तैयार नहीं हैं |

आइये हम सब इस चित्र पर आधारित अपने अपने भाव-पुष्पों की काव्यात्मक पुष्पांजलि इन श्रमिकों के नाम अर्पित करते हुए उनका अभिनन्दन करते हैं |

 

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Replies to This Discussion

सुंदर रचना मनोज जी, बहुत बहुत बधाई

पांवों पर जोर देने से

बिवाई से रिसता रक्त,

पसीने से सनी फटी बनियान से

निकलती दुर्गन्ध

 

दर्दनाक चित्रण...!!

khubsurat

कोलकाता में रहते हुए आपसे ज्यादा इनकी व्यथा कौन समझ सकता है? सटीक चित्रण के लिए साधुवाद!!!!

Bahut hi badhiya prastuti.  Badhayee.
पुनिया साहिब , सुंदर रचना प्रस्तुत किये है , बहुत बहुत आभार |

रिक्शा चालकों छोडो ये धंधा काल हैं।
एक रास्ता बंद हो तो सौ खोले दयाल हैं।
मुल्क आपके साथ ये वादा-ए-बंगाल हैं।
कभी ना कहो साहिब पेट का सवाल हैं।।

वाह नेमीचन्द पूनिया साहब! बहुत सही कहा आपने .........

sir,aapki zarra-nawazee ke liye bahut bahut sukariya.

खूबसूरत पंक्तियॉं, और सभी पंक्तियॉं समतुकान्‍त। वाह भाई वाह।

sir,aap dwara housla afzai ke liye shykariya.
बहुत खूब पूनिया जी !

श्रमदिवस मनाते साल दर साल हैं।
सचमुच श्रमिको के बुरे हाल हैं।

माना मंजर देख होता मलाल हैं।
क्या करें पापी पेट का सवाल हैं।।

 

वाह वाह...क्या बात है...कितनी अर्थ के साथ लिखी गयी है ये कविता...बहुत ही बढ़िया....धन्यबाद योगी भैया पुनिया जी की प्रस्तुति को यहाँ पेश करने के लिए...

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