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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 43 में सम्मिलित सभी गज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन

मुशायरे का संकलन हाज़िर है| मिसरों में दो तरह के रंग भरे गए हैं लाल अर्थात बेबह्र मिसरे और हरे अर्थात ऐब वाले मिसरे|

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गिरिराज भंडारी

आपका साथ मिला तो मै निकल जाउंगा
खोटा सिक्का सही बाज़ार में चल जाउंगा

आपने ख़्वाहिशों को आग दिखाई है, मगर
मै भी पत्थर हूँ ,न सोचो कि पिधल जाउंगा

मै ख़ुदा वाला हूँ ,जीता हूँ करम पर उनके
“ ठोकरें खाके मुहब्बत मे सँभल जाउंगा “

हसरतें क़ैद में रखने से न पूरी होंगी
मै हवा बन के कहीं से भी निकल जाउंगा

दिल में बारूद लिए फिरता हूँ ख़ामोशी से,
एक चिंगारी भी लग जाए तो जल जाऊंगा।

खूब इनकार सुना हूँ मुझे ग़म क्यों कर हो
तुम जो इक़रार सुनादो तो उछल जाउंगा

तेरे माजी से बहुत सीख ली है, मैने भी
ये न समझो, कि मै वादों से बहल जाउंगा

___________________________________________________________________

AVINASH S BAGDE

तेरी चाहत में सरे-आम फिसल जाउंगा !
शान से प्यार के मै ताजमहल जाउंगा।

इम्तेहाँ प्यार के कितने भी जमाना लेले ,
देने मै फख्र से वो जाने-ग़ज़ल जाउंगा।

मेरे हाथों की लकीरें भी यही कहती है ,
ठोकरें खा के मोहब्ब्त में संभल जाउंगा।

घर पे आयेंगे मनाने ये जमानेवाले ,
ये तो मुमकिन नहीं मै आज पिघल जाउंगा।

मै हूँ परवाना शमा तू है मेरी दीवानी ,
तू जो पिघलेगी तो मै साथ ही जल जाउंगा।

______________________________________________________________

नादिर ख़ान

नाम अल्लाह का लेकर मै निकल जाऊँगा
मै तो हालात का मारा हूँ, संभल जाऊँगा |

दूर मंज़िल है बहुत राह में दुश्वारी भी
हाथ में हाथ दे वरना मै फिसल जाऊँगा |

झूठी बातें है तेरी और हैं झूठी कसमें
ये न समझो की मै बातों से बहल जाऊँगा |

मुझमें है लाख कमी प्यार मगर सच्चा है
तू अगर साथ है मेरे मै बदल जाऊँगा |

है बहाना ये मेरा गुस्सा, फ़क़त इक पल का
तुम अगर प्यार से देखोगे पिघल जाऊँगा |

प्यार अंधा है मेरा, होश मगर बाकी है
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा |

बन्दिशें प्यार में कितनी भी लगा दो नादिर
दिल से मासूम हूँ, बातों से पिघल जाऊँगा |

___________________________________________________________________________________

IMRAN KHAN

हसरते दिल को लिए माज़ी में ढल जाऊँगा,
मैं हूँ परवाना तेरी चाह में जल जाऊँगा।

बारिशे ग़म से यूँ पुरनम हैं ये राहें मेरी,
जो ज़रा देर चलूँगा तो फिसल जाऊँगा।

मैं कोई संग नहीं हूँ, बड़ा नाज़ुक दिल हूँ,
तू मुझे छू तो ज़रा पल में पिघल जाऊँगा।

राहे उल्फत में सदा सोचके चलता हूँ यही,
ठोकरें खा के मुहब्बत में सम्भल जाऊँगा।

मैं तेरी बज़्म में कब तक रहूँ रुस्वा होकर,
तू जो कह देगा तो महफिल से निकल जाऊँगा।

फेंक ले जाल शिकारी तू पकड़ने के लिए,
मैं तेरे जाल से हर बार निकल जाऊँगा।

मुझे फूलों के सजाने हैं अगर सेहरे तो,
बाग में कैसे मैं कलियों को मसल जाऊँगा।

___________________________________________________________________

शकील जमशेदपुरी

मैं तो जादू हूं, मेरा क्या है, मैं चल जाऊंगा
ख्वाब बनकर मैं तेरे दिल में ही पल जाऊंगा

पल गया दिल में तो फिर राज न खुल जाए कहीं
मैं तो खुशबू हूं बिखरने को मचल जाऊंगा

मैं हूं शायर, मैं कोई मोम नहीं हूं लेकिन
याद बनकर न जलो दिल में पिघल जाऊंगा

जाने किस दौर के वो लोग थे जो कहते थे!
'ठोखरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा'

है अभी वक्त सदा दे तू बुला ले मुझको
हो गई देर तो मैं दूर निकल जाऊंगा

________________________________________________________________________

vandana

रेत से हेत मेरा मैं तो सँभल जाऊँगी
तपते सहरा से भी बेख़ौफ़ निकल जाऊँगी

ये भी होगा जो मिला धूप का बस इक टुकड़ा
शब-ए-ग़म तेरी सियाही को बदल जाऊँगी

खेतों की कच्ची मुँडेरों पे कभी बारिश में
संग तितली के बहुत दूर निकल जाऊँगी

कब तलक दिल को मनाऊं ये दिलासा देकर
ठोकरें खा के मुहब्बत में सँभल जाऊँगी

पुरकशिश है तेरी कोशिश तो मगर बेजा क्यूँ
चाहने भर से तेरे रंग में ढल जाऊँगी

गुनगुनाती ये हवा चाँदनी ओढ़े पत्ते
क्यूँ लगे है कि तेरी याद में जल जाऊँगी

प्यास को फिर मेरी तू देगा समन्दर जानूँ
दिल्लगी पर तेरी हँसकर मैं निकल जाऊँगी

जो खुलेआम कहा करते हैं जिद्दी मुझको
वो भी तो फेंकते दाने कि फिसल जाऊँगी

आग के दरिया भी गुजरे हैं मुझे छूकर पर
मैं नहीं मोम की गुडिया जो यूँ गल जाऊँगी

______________________________________________________________________________

Abhinav Arun

तुझको ऐ ज़िन्दगी इक रोज़ मैं छल जाऊँगा |
मौत का हाथ पकड़ लूँगा निकल जाऊँगा|

सख्त हालात ने पत्थर सा बनाया है मुझे,
प्यार का जज़्बा दिखाओ तो पिघल जाऊँगा |

सोने चाँदी के हजारों से न सींचो मुझको ,
मैं ग़रीबों की दुआओं से ही पल जाऊँगा |

बंद मुट्ठी का ये भ्रम आप बनाए रक्खो
और कुछ रोज़ उम्मीदों से बहल जाऊँगा |

लुत्फ़े आगाज़े सफ़र में हूँ तू आगाह न कर ,
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊँगा|

मुझसे टकरा के लहर ने जो कहा है सागर ,

मैं अगर तुझको बता दूँ तो बदल जाऊँगा |

लानतें भेजने वालों से मुझे कहना है,
है दुआ माँ की मेरे साथ मैं पल जाऊँगा|

शह्र की रोशनी आँखों में चुभा करती है,
जेह्न से गाँव मिटा दूँ तो मैं जल जाऊँगा |

बदले बदले हैं मेरे गाँव के रस्ते लेकिन ,
थाम यादों की वो पगडंडियाँ चल जाऊँगा |

बस इसी सोच में महबूब को देखा ही नहीं ,
गौर से देख लूँ उनको तो मचल जाऊँगा |

मत सुना चाँद सितारों की कहानी मुझको ,
कोई बच्चा तो नहीं हूँ जो बहल जाऊँगा |

_____________________________________________________________________

कल्पना रामानी

बदले हो तुम, तो है क्या, मैं भी बदल जाऊँगी।
दायरा तोड़, कहीं और निकल जाऊँगी

एक चट्टान हूँ मैं, मोम नहीं याद रहे।
जो छुअन भर से तुम्हारी, ही पिघल जाऊँगी।

जब बिना बात के नाराज़ हो दरका दर्पण।
*मेरा चेहरा है वही, क्यों मैं दहल जाऊँगी?

मैं तो बेफिक्र थी, मासूम सा दिल देके तुम्हें।
क्या खबर थी कि मैं यूँ, खुद को ही छल जाऊँगी।

वक्त पर होश मुझे आ गया अच्छा ये हुआ।
ठोकरें खा के मुहब्बत में सँभल जाऊँगी।

दर अगर बंद हुआ एक, तो हैं और अनेक।
चलते-चलते ही नए दौर में ढल जाऊँगी।

किसी गफलत में न रहना, कि अकेली हूँ सुनो।
साथ मैं एक सखी लेके गज़ल जाऊँगी।

जो मुझे आज तलक, तुमने दिये हैं तोहफे।
वे तुम्हारे लिए मैं छोड़ सकल जाऊँगी।

‘कल्पना’ सोच के रक्खा है जिगर पर पत्थर।
पी के इक बार जुदाई का गरल जाऊँगी।

___________________________________________________________________________

वीनस केसरी

मैं शिला से, अभी दर्पण में बदल जाऊँगा
पर है दावा, पसे-मंज़र को मैं खल जाऊँगा

आपके दिल की मैं तासीर बदल जाऊँगा
मैं उजाला हूँ अँधेरे को निगल जाऊँगा

फिर तो सदियों बस उसी पल को करोगे तुम याद
दे के सदियाँ मैं तुम्हें, ले के जो पल जाऊँगा

जाने किस शक्ल में पाउँगा उधर से उत्तर
प्रश्न के नाम पे, मैं ले के ग़ज़ल जाऊँगा

मैं गिरफ्तारे-मुहब्बत हूँ भला कैसे कहूँ
“ठोकरें खा के मुहब्बत में सँभल जाऊँगा”

_______________________________________________________________________________

शिज्जु शकूर

वास्ते तेरे मैं जिस रोज़ मचल जाऊँगा
चाँद में तेरी झलक देख बहल जाऊँगा

एक तेरी सी नज़र दे दे खुदा जो मुझको
“ठोकरें खा के मुहब्बत में सँभल जाऊँगा”

निस्बतों पे जमी ये बर्फ़ पिघल जायेगी
सोज़े जज़्बात से आखिर मैं पिघल जाऊँगा

एक पत्थर ही सही गौर से देखो इस ओर
तुम अगर चाहो मुझे बुत में बदल जाऊँगा

आब हूँ रंग दो हर रंग मे मुझको चाहे
जिसमें रख दो उसी कालिब में ही ढल जाऊँगा

न शनासा है न अपना कोई इस शह्र में अब
सुब्ह खामोश यहाँ से मैं निकल जाऊँगा

रात भर का हूँ जगा लंबे सफर से बेदम
ख़्वाब की बाँह मे चुपचाप फिसल जाऊँगा

____________________________________________________________________________

Tilak Raj Kapoor

लौ तेरे रक्स की आतिश से निकल जाऊँगा
बात है और तेरे हुस्न से जल जाऊँगा।1।

वक्त के साथ कभी मैं भी बदल जाऊँगा
हॉं कभी मैं भी तेरे रंग में ढल जाऊँगा।2।

देह मरमर सी तेरी देख चुका पूनम में
तू बता किसके लिये ताजमहल जाऊँगा।3।

थाम लो हाथ मेरा, राह में फिसलन है बहुत
तुम सहारा न बने गर तो फिसल जाऊँगा।4।

हॉं मेरी जि़द है, लड़ूँगा मैं हर इक मुश्किल से
तेरी दुनिया से खुदा मैं न विफल जाऊँगा।5।

शौक से आप गले मुझको लगायें, न डरें
कोई बाज़ार नहीं हूँ कि उछल जाऊँगा।6।

क्यूँ डराते हैं भला आप मुझे गर्मी से
बर्फ जैसा तो नहीं हूँ कि पिघल जाऊँगा।7।

भूख ऑंतों में तड़पकर तो यही कहती है
पेट की आग से इक रोज़ मैं जल जाऊँगा।8।

मैं बदलता ही नहीं हूँ वो बहुत हैरॉं हैं
जो समझते थे किसी रोज़ बदल जाऊँगा।9।

ये चलन खूब चला है कि चलेंगे खोटे
क्या कभी मैं भी इसी खोट में ढल जाऊँगा।10।

चोट पहली है, गिरा देख के हँस लो, मैं भी
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा।11।

_____________________________________________________________________________

सूबे सिंह सुजान

आपसे सच कहूँ मौसम हूँ, बदल जाऊँगा

आज मैं बर्फ हूँ कल आग में जल जाऊँगा।।

सर्दियों में मैं समन्दर की तरफ भागूँगा,
गर्मियों में मैं पहाडों पे निकल जाऊँगा।

आपका प्यार बरसने लगा मुझ पर लेकिन,
आप बदलो या न बदलो मैं बदल जाऊँगा।

लोग पर्वत मुझे कहते हैं मगर मेरी सुनो,
तुम मुझे काटते हो तो मैं भी ढल जाऊँगा।

एक क़ाग़ज हूँ मुझे फिर से भिगोया जाये,
ठोकरें खा के महब्बत में सँभल जाऊँगा।

____________________________________________________________________

Dr Ashutosh Mishra

देख कर रोता उसे मैं तो पिघल जाऊंगा
अपनी कसमों की जदों से मैं निकल जाऊंगा

धड़कने तेज ये साँसें भी हुई हैं तूफॉ
जो ये चिलमन न हटा तो मैं मचल जाऊँगा

इश्क की राह पे चलना है यकीनन मुश्किल
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा

आज वो खुश है, किसी गैर चमन में ही सही
यार खुश है मेरा ये सोच बहल जाऊंगा

बेबफायी के लिबासों में छुपा चाहत को
तुम रहे सोच कभी तो मैं बदल जाऊँगा

तेरे जूड़े को सजाया था गुलों से मैंने
तेरे ख्वाबो की कली कैसे कुचल जाऊंगा

चांदनी शब् में छुपा चाँद अब्र में देखों
ये भी कहने की है क्या बात फिसल जाऊंगा

_____________________________________________________________________________

Sarita Bhatia

हाथ थामा है तो अब साथ निकल जाऊँगी
वरना लगता था मैं हो विफल जाऊँगी /

तू है परवाना अगर तो मैं शमा तेरी हूँ
तू जला प्यार में तो मैं भी पिघल जाऊँगी /

जो लिखी दास्ताने मुहब्बत गई पन्नों पर
बन के स्याही सी कलम से मैं चल जाऊँगी /

धरा बेचैन है बादल ही समझ पाएगा
पा के बारिश को धरा सी मैं मचल जाऊँगी /

हसरतें दिल में हुई कैद न निकलें बाहर
जो हवा इश्क चली तो मैं दहल जाऊँगी /

लम्हे तुम ने जो दिए उनसे है रोशन जीवन
उन्हीं लम्हों के सहारे ही मैं पल जाऊँगी /

फिसलती ही है मुहब्बत की जमीं तो लेकिन
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊँगी /

जिन्दगी बेवफ़ा है साथ कहाँ देती है
मौत को ही बना आशिक मैं निकल जाऊँगी /

___________________________________________________________________________________

rajesh kumari

मोम का बुत न समझिये कि पिघल जाऊँगी
आग हाथों से उठाकर मैं निगल जाऊँगी

रुख हवाओं का किसी रोज बदल जाऊँगी
राह खुद अपनी बनाकर मैं निकल जाऊँगी

खुश्क पत्ते पे जरा देर मुझे रहने दो
शबनमी शाख से वरना मैं फिसल जाऊँगी

गोद में देख के पर्वत की वो रक्साँ बादल
सूखती दूब मैं खुशियों से मचल जाऊँगी

पुरखतर लाख सही इश्क की राहें माना
ठोकरें खाके मुहब्बत में संभल जाऊँगी

आज हालात कहाँ तुमको सहारा देदूं
सांझ की धूप जरा देर में ढल जाऊँगी

शान शौकत न मुझे चाहिए कोई दौलत
प्यार के सूखे निवालों से ही पल जाऊँगी

रेत हूँ बाँध के रखने की खता मत करना
मुट्ठियों की मैं दरारों से निकल जाऊँगी

____________________________________________________________________________

अरुन शर्मा 'अनन्त'

दूर चुपचाप अँधेरे में निकल जाऊँगा,
डर मुझे है की उजाले में फिसल जाऊँगा,

भाग में कष्ट गरीबी है परेशानी भी,
हाथ ईश्वर का रहा सर पे तो पल जाऊँगा,

सब्र का बांध किसी रोज अगर टूटा जो,
मैं समन्दर हूँ तबाही में बदल जाऊँगा,

रूह में तू जो उतरने की करेगी जिद तो,
मैं लहू बनके तेरे तन में टहल जाऊँगा,

जान जोखिम में मगर हौसला ये कहता है,
"ठोकरें खा के मुहब्बत में सँभल जाऊँगा"

__________________________________________________________________________

आशीष नैथानी 'सलिल'

मुस्कुराओगे तो बच्चे सा बहल जाऊँगा
तुम न चाहोगे तो आँखों से निकल जाऊँगा |

तेरी सूरत से हसीं और है क्या दुनिया में
देखने क्यों मैं कभी ताजमहल जाऊँगा |

मेरी कोशिश कि बहाने से सही पर मैं हँसूं
वरना इक रोज़ किसी बुत में बदल जाऊँगा |

उम्र गिरने की है, उठने की है, रुकने की नहीं
ठोकरें खाके मुहब्बत में सँभल जाऊँगा |

देख अब भी मैं 'सलिल' हूँ वही पहले की तरह
तुम तो कहती थी कि कीचड़ में बदल जाऊँगा |

__________________________________________________________________

Gajendra shrotriya

मैं न बनवा के कहीं ताज़महल जाऊँगा
बस यहाँ छोड़ के दो -चार ग़ज़ल जाऊँगा

काटकर हाथ हुनर के मैं दहल जाऊँगा
चंद अशआर लिखूंगा तो बहल जाऊँगा

हाथ में बर्फ के गोले सा रखा हूँ मैं तो
उम्र की धूप चढ़ेगी तो पिघल जाऊँगा

जिस तरह चाँद निकलता है घटा में छुपकर
दर्द के दौर से यूँ मैं भी निकल जाऊँगा

देख गमखोर नहीं मैं पुराने लोगों सा
मैं नया खून हूँ छेड़ा तो उबल जाऊँगा

मैं सियासत कि किताबों का सियाह पन्ना हूँ
खोल के देख कई राज़ उगल जाऊँगा

कर रहे फ़र्ज़ अदा संग मेरी राहों के
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊँगा

__________________________________________________________________

Ashok Kumar Raktale

तुम न आयी न सही मैं तो निकल जाउंगा |

तप्त शोलों में रखा और पिघल जाउंगा ||

मोम सा जिस्म मेरा सख्त रहा है अब तक,
बदले हालात जहाँ मैं भी बदल जाउंगा.

अब न मुझको ही रहा कोई यकीं भी मुझ पर,
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाउंगा.

गैर सी जान पड़ी सांस मेरी जब मुझ को,
तब न सोचो के दुआओं से बहल जाऊँगा.

जिंदगी है न बची और मेरी अब बाकी,
बर्फ का ढेर खिली धूप से गल जाउंगा.

_____________________________________________________________________

Ravi Prakash

बादलों सा मैं किसी रोज़ पिघल जाऊँगा।
या पतंगे सा कहीं आग में जल जाऊँगा॥
.
पत्थरों सा जमे रहना नहीं फ़ितरत मेरी,
वक़्त बदलेगा जहाँ,मैं भी बदल जाऊँगा।
.
बदहवासी,ये उदासी दो दिनों की दास्तां,
ठोकरें खा के मुहब्बत की सँभल जाऊँगा।
.
गीत बन के मैं लबों पे गर नहीं सज पाया,
तो हवाओं सा तुझे छू के निकल जाऊँगा।
.
भोर की पहली किरण सा ज़मीं पे इतरा कर,
इन अँधेरों के सभी नक़्श निगल जाऊँगा।
.
ख़्वाब तेरा हो के गर रुक न सकूँ पलकों पे,
तो अश्क सा तेरे आरिज़ से फिसल जाऊँगा॥

______________________________________________________________________

बृजेश नीरज

लफ्ज़ हैं पास यही दे के निकल जाऊँगा
मैं तेरे दिल में फ़कत याद सा पल जाऊँगा

माँ के आँचल की मुझे छाँव मिले गर फिर से
इक खिलौने के लिए फिर मैं मचल जाऊँगा

यूँ तो उम्मीद कोई बाकी नहीं है लेकिन
“ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊँगा"

इन शरारों से कहो यूँ ही न छेड़ें मुझको
एक आतिश ही तो हूँ, मैं भी मचल जाऊँगा

अब उजालों की ज़रा भी नहीं चाहत मुझको
इन अँधेरों की ही संगत से बहल जाऊँगा

*********************************************************************************************************************

किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो या मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई तो अविलम्ब सूचित करें|

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Replies to This Discussion

आदरणीय राणा साहब मतले की जगह यह शे'र प्रतिस्थापित कर दें,

वास्ते तेरे मैं जिस रोज़ मचल जाऊँगा
चाँद में तेरी झलक देख बहल जाऊँगा

सादर,

 बढिया मुशायरा....

सभी ग़ज़लों को एक साथ देखना हमेशा की तरह सुखद लगा ...आ०  राणा प्रताप सिंह जी को हार्दिक बधाई 

यह संकलन बहुत उपयोगी है. न केवल अपनी गलतियाँ पता चलती हैं, वरन वरिष्ठों की गज़लें भी एक साथ एक जगह उपलब्ध हो जाती हैं, जिससे सीखने में आसानी होती है. इस श्रम साध्य कार्य के लिए आदरणीय राना भाई बधाई के पात्र हैं!

एक पत्थर ही सही गौर से देखो इस ओर
तुम अगर चाहो मुझे बुत में बदल जाऊँगा

वाह वाह 

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