For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी नगर, भोपाल के सभागार राज-सदन में दिनांक 25/05/2024, शनिवार को सम्पन्न हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय अशोक निर्मल जी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में निराला सृजन पीठ मध्यप्रदेश की निदेशक, आदरणीया डॉ.साधना बलवटे जी एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में आदरणीय आबिद काज़मी जी वरिष्ठ शायर की उपस्थिति में संगोष्ठी संपन्न हुई। बाल कल्याण शोध केन्द्र भोपाल के निदेशक आदरणीय महेश सक्सेना जी ने सारस्वत अतिथि के रूप में मंच को सुशोभित किया।

कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती पूजन एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुआ तत्पश्चात आदरणीया सीमा हरि शर्मा जी ने सरस्वती वन्दना ‘ज्ञान अमिय बरसा माँ जनम सुफल कर’ का पाठ किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन आदरणीय बलराम धाकड़ जी द्वारा किया गया।

अतिथियों का स्वागत ओबीओ सहित्योत्सव 2023 में प्रकाशित पुस्तक ‘शब्दशिल्पी’ और पुष्प से किया गया।

सर्वप्रथम आदरणीय प्रियेश गुप्ता जी ने कर्णप्रिय स्वर में एक गीत सुनाया, जिसके बोल थे- ‘कर्णप्रिय मधुर माधुरी, कृष्ण की सखी बाँसुरी।’

आदरणीय अशोक व्यग्र ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में गीत पढ़ा-

‘शुष्क हृदय के स्वच्छ गगन में, स्वस्थ युवक सविता!
तप्त हृदय द्वय चक्षु प्रवाहित, तन्वंगी सरिता!!’

आदरणीय मुबारक खान ‘शाहीन’ जी ने पर्यावरण की समस्या को इंगित करते हुए गज़ल पढ़ी-

‘चिनार बरगद और पीपल करार देते हैं,
यही दरख़्त तो फस्ले बहार देते हैं’

आदरणीय दिनेश भदौरिया शेष जी ने पानी को जीवन सौंदर्य से संश्लिष्ट करता एक गीत पढ़ा-

‘बुझती है चिर प्यास अधर की,
चिर प्यासे अधरों से,
पानी का सौन्दर्य मुखर ज्यों
पानी की लहरों से।’

आदरणीय शिवराज सिंह चौहान जी ने ग़ज़ल सुनाई-

‘सच का हुलिया बिगड़ गया इतना,
सच कहूँ सच मैं बचा ही नहीं।’

आदरणीय महिन्दर बाथम जी ने ग़ज़ल के कुछ मिसरे सुनाये-

‘लाख ढूँढते हैं मगर मिल नहीं पाता है,
टूट कर कोई तारा फिर किधर जाता है।’

आदरणीय महावीर सिंह जी ने ग़ज़ल पढ़ी-

‘अपने महबूब से जीतना मत कभी,
इश्क़ में है मजा हार जाने के बाद।’

आदरणीय लक्ष्मीकान्त जवड़े जी ने सुनाया-

‘रंगों को समर्पित कभी शब्दों में ली शरण,
तर्कों में तलाशा कभी बहसों में ली शरण।’

आदरणीय सुन्दरलाल प्रजापति जी ने पढ़ा-

‘जिसको समझा था उजाला वो अँधेरा निकला,
गाँव अच्छा था मेरा ये शहर तो तेरा निकला।’

डॉ शरद यायावर जी ने बहुत ही भावपूर्ण गीत सुनाया-

‘तुम नदिया की धार सही,
मैं छोटी सी पतवार सही।’

आदरणीय मनीष बादल जी ने कुछ शानदार दोहे पढ़े -

‘कुछ साँपों की हो गई, जब बाजों संग डील!
चिन्ता भय उनके हुये, ताकत में तब्दील!!।’

हाल ही राष्ट्रीय टेनिस टूर्नामेंट विजेता बने आदरणीय सन्तोष ख़िरवडकर जी ने पढ़ा-

‘इश्क मुझसे था ये पता ही नहीं,
उसने जाहिर कभी किया ही नहीं।’

आदरणीय डॉ विमल कुमार शर्मा जी ने मनमोहक अंदाज़ में ग़ज़ल सुनाई-

‘हमसे कुछ तो कहा कीजिये,
हाल अपना बता दीजिये।’

आदरणीया रक्षा दुबे जी ने अपनी अतुकांत कविता पढ़ी-

‘इन दिनों अनगिन चेहरों के झुण्ड में
अपने चेहरे की साख बचाये रखना
सबसे बड़ी कवायद है।’

आदरणीया नीता सक्सेना जी ने ग़ज़ल सुनाई -

‘विचार करने की कोशिशों में सवाल कितने मचल रहे हैं,
सवाल हमने जरा जो पूछे, तो देखो रिश्ते बदल रहे हैं।’

वरिष्ठ गीतकार एवं शायरा आदरणीया सीमा हरि शर्मा जी ने पढ़ा-
‘सुहानी कुनमुनी सी धूप ने तेवर बदल डाले,
हवाओं ने दरख्तों पर लगाकर रख दिये ताले।’

आदरणीया कविता शिरोले जी ने पढ़ा- ‘मन ने ही डुबाया है।’

ओबीओ भोपाल के संरक्षक सदस्य एवं भोपाल के वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय हरिबल्लभ शर्मा हरि जी ने एक ग़ज़ल सुनाई-

‘जो चला नहीं है खड़ा वहीं,
उसे हादसों का पता नहीं।’

वरिष्ठ ग़ज़लकार आदरणीय किशन तिवारी जी ने पढ़ा-

‘फकीरों की तरह सूरज नदी जंगल दुआयें हैं,
अगर नाराज़ हों तो रास्ता इनका बदल जाये।’

प्रसिद्ध दोहाकार आदरणीया सीमा सुशी जी ने अपने दोहे सुनाकर खूब तालियाँ बटोरी –

‘जिनको आता ये हुनर, उनका जीना खूब।
कहां - कहां है तैरना, कब है जाना डूब।।’

आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी ने अपने चुटीले अंदाज़ में कुछ दुमदार दोहे सुनाये -

‘सूरज कितना भी तपे, कितनी बरसे आग!
पर मैंने सोचा यही, गोष्ठी में लूँगा भाग।’

आदरणीय घनश्याम मैथिल अमृत जी ने बढ़ते कांक्रीट, घटते जंगल और वैश्विक ताप की समस्या पर विचारणीय दोहे पढ़े-

‘दामन पर जिनके लगे, हरे रक्त के दाग
अख़बारों में गा रहे, हरियाली के राग।’

‘कांक्रीट के कहर ने, ली हरियाली सोख!
धरती गोला आग की, ताप उगलती कोख।’

सीहोर के आये आदरणीय आदित्य हरि गुप्ता जी ने पढ़ा- ‘जाने क्यूँ आज मेरा दिल ही खफा है मुझसे।’

भोपाल के व्यंगकार और व्यंग्य कवि आदरणीय राजेन्द्र गट्टानी जी ने पढ़ा-

‘जिन्दा रहने जिसकी कमियाँ ही गिनते हैं लोग यहाँ,
मरते ही सबको उसमें अच्छाई दिखने लगती है।’

ओबीओ गोष्ठी में पहली बार पधारीं आदरणीया भावना गुप्ता जी ने अपनी कविता से सभागार को मंत्रमुग्ध कर दिया- ‘अब पुतलों की दुनिया में भी कुछ इन्सान कर लें हम।’

आदरणीया अंशु तिलेठे जी ने जंगल की कटाई पर अपनी रचना पढ़ी- ‘अन्धाधुन्ध जंगल की कटाई क्यों नहीं रोकी जाती।’

आदरणीय अभिषेक जैन अबोध जी ने सस्वर रचना का पाठ किया-

‘हो चुकी घायल हृदय सम्वेदना,
तानकर सीना खड़ी काली घटायें।’

मैंने यानी मिथिलेश वामनकर ने एक गीत पढ़ा और मंच की प्रशंसा पाकर अभिभूत हुआ-

‘आज सखी री दूल्हा गाओ,
डोली आई सेज सजाओ।’

मंच संचालक आदरणीय बलराम धाकड़ जी ने जब अपनी ग़ज़ल सुनाई तो सभागार में तालियाँ गूँज गई-

‘तमन्ना इंतिहाई हो रही है।
हमारी जगहंसाई हो रही है।

फ़कीराना सा अफ़सर हो गया हूं,
दुआओं की कमाई हो रही है।’

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहें वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय अशोक निर्मल जी ने गीत पढ़ा-

‘राम आये न जब तक मिलन के लिये,
इक मुद्रिका ही बहुत है नमन के लिये’

आयोजन की मुख्य अतिथि एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ साधना बलवटे जी ने भीषण गर्मी पर आधारित एक भावपूर्ण गीत सुनाया-

‘क्या मुझसे है बैर दिवाकर ऐसे जला रहे हो,
त्राहि त्राहि है अग्निबाण तुम कैसे चला रहे हो’

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि आदरणीय आबिद काज़मी साहब ने गज़ल पढ़ी-

‘दावत तेरी कुबूल मगर शर्त एक है,
बच्चे तेरे पड़ोसी के भूखे तो नहीं हैं

कार्यक्रम में सारस्वत अतिथि आदरणीय महेश सक्सेना जी ने अपने आशीर्वचन में कहा- कविता भावनाओं का ओवरफ्लो है। इस आयोजन में सभी नौ रसों का रसास्वाद हो गया। ओबीओ का आयोजन हमेशा की तरह एक उत्कृष्ट आयोजन रहा।
कार्यक्रम के अंत में आभार ज्ञापन आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा हरिजी ने किया। आयोजन के रसास्वाद के साथ कचौरी, बालुशाई और छाछ के स्वाद साथ लेकर सभी ने एक दुसरे को अलविदा कहा, अगले माह मिलने के वादे के साथ।


मिथिलेश वामनकर
भोपाल

Views: 203

Reply to This

Replies to This Discussion

बहुत सुंदर 

अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक 
ईश्वर करे यह सुअवसर जल्दी ही बने 

ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। 

इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!

धन्यवाद

ओबीओ द्वारा इस सफल आयोजन की हार्दिक बधाई।

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।

सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। 

हार्दिक धन्यवाद 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह अशोक भाई। बहुत ही उत्तम दोहे। // वृक्ष    नहीं    छाया …"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पीछा करते  हर  तरफ,  सदा  धूप के पाँव।   जल की प्यासी…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"     दोहे * मेघाच्छादित नभ हुआ, पर मन बहुत अधीर। उमस  सहन  होती …"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. अजय जी.आपकी दाद से हौसला बढ़ा है.  उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो…"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"बहुत उत्तम दोहे हुए हैं लक्ष्मण भाई।। प्रदत्त चित्र के आधार में छिपे विभिन्न भावों को अच्छा छाँदसिक…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
16 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service