For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ बयालिसवाँ आयोजन है.   

 

पुनः इस बार का छंद है - कुकुभ छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

18 फरवरी 2023 दिन शनिवार से 

19 फरवरी 2023 दिन रविवार तक

हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

कुकुभ छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

*********************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

18 फरवरी 2023 दिन शनिवार से  19 फरवरी 2023 दिन रविवार तक  रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com  परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम 

Views: 1247

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

  स्वागतम्

गगनचुंबी भवनों में जीवन

—————————

बहुतल भवनों के जीवन में, ताका-झाँकी करते हैं
जिज्ञासा है मन में कैसे, लोग यहाँ पर रहते हैं
कैसे बहती, कैसे चलती, इनमें जीवन की धारा
कौन भँवर में फँसता इनके, मिलता किसे किनारा

भीतर इनमें रहने वाले, भिंचे-भिंचे से जीते हैं
आस-पास ही बसे हुए पर, खिंचे-खिंचे से जीते हैं
बिना पडोसी के पड़ोस हैं, सब अपने में डूबे हैं
यहाँ मुहल्ले बिन गलियों के, सचमुच बड़े अजूबे हैं

साँस-साँस को तरस रहीं हैं, दीवारें इन भवनों की
कमरे हर दिन बाट-जोहते, हैं सूरज की किरणों की
खिड़की ने भी कभी यहाँ की, जी भर चाँद नहीं देखा
आँगन देना भूल गई जब, लिखने लगी विधी लेखा

कब आता है, कब जाता है, पता नहीं रहने वाला
द्वार द्वार से बतियाता है, और कुण्डियों से ताला
रंग-बिरंगी गगन चूमती, इन भवनों की ऊँचाई
तल्ला-तल्ला छज्जा-छज्जा, बुझी पड़ी पर तरुणाई

ज़मींदार इक दस एकड़ का, गाँव छोड़ इनमें आया
लिव-इन में रहने इक जोड़ा, तोड़ सभी रिश्ते आया
एक युवक लाया था सपने, हुए पड़े हैं वो बासी
एक अकेली बुढ़िया रहती, थी वो गुज़र गई प्यासी

कोई शाह न नौकर कोई, हर कोई है बंजारा
घर का होकर भी बेघर है, हर कोई है आवारा
दिवस बिताते दाना चुनते, उलझ समय के रगड़ों में
शाम कबूतर आ जाते हैं, वापिस अपने दबड़ों में

#मौलिक एवं अप्रकाशित

हर छंद जरबर्दस्त, बहुत-बहुत बधाई अजय भाई जी!

बहुत बहुत आभार सतविंदर भाई

बहुत ही सुन्दर और सुघड़।  चित्र का सार निचोड़ कर रख दिया आपने। हार्दिक बधाई आपको

बहुत बहुत आभार इन शब्दों के लिए प्रतिभा जी 

आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को बहुत गहनता से परिभाषित करते उत्तम छन्द हुए हैं। बहुत बहुत हार्दिक बधाई।

शुक्रिया लक्ष्मण भाई। 

आदरणीय अजय भाईजी

सच है ऐसे भवनों में रहने वालों की हजार समस्यायें हों पर ये महानगर में रहने का मोह त्याग नहींं  पाते। बेरोजकारी भी एक कारण है।

इस सुंदर लम्बी रचना के लिए हार्दिक बधाई। 

बहुत आभार अखिलेश जी।

आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी. आपने प्रदत्त चित्र को जिस तरह से आत्मसात कर इसे शाब्दिक किया है वह मुग्ध कर रहा है. महानगरों की अट्टालिकाओं में बसे हुए लोगों की दशा का वस्तुतः सार्थक चित्रण हुआ है. आप मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें. 

किन्तु, शिल्प को लेकर कुछेक बिन्दु अवश्य स्पष्ट कर लेना श्रेयस्कर होगा. 

मिलता किसे किनारा ... इस चरण की कुल मात्रा सटीक नहीं है. यह अवश्य ही भूलवश हुआ है. 

निम्नलिखित दो छंद कुकुभ छंद में न हो कर ताटंक छंद में निबद्ध हो गये हैं. यह भी अनायास ही हुआ होगा. किन्तु, सच्चाई यही है. 

भीतर इनमें रहने वाले, भिंचे-भिंचे से जीते हैं
आस-पास ही बसे हुए पर, खिंचे-खिंचे से जीते हैं
बिना पडोसी के पड़ोस हैं, सब अपने में डूबे हैं
यहाँ मुहल्ले बिन गलियों के, सचमुच बड़े अजूबे हैं .... 

 

ज़मींदार इक दस एकड़ का, गाँव छोड़ इनमें आया
लिव-इन में रहने इक जोड़ा, तोड़ सभी रिश्ते आया
एक युवक लाया था सपने, हुए पड़े हैं वो बासी
एक अकेली बुढ़िया रहती, थी वो गुज़र गई प्यासी

एक बात और, निम्नलिखित छंद अपने अंतिम चरण के कारण कुकुभ छंद की श्रेणी में आअ सका है. देखिएगा. 

कब आता है, कब जाता है, पता नहीं रहने वाला
द्वार द्वार से बतियाता है, और कुण्डियों से ताला
रंग-बिरंगी गगन चूमती, इन भवनों की ऊँचाई
तल्ला-तल्ला छज्जा-छज्जा, बुझी पड़ी पर तरुणाई ...  अंतिम चरण के कारण कुकुभ छंद 

बहरहाल, आपका रचना-कर्म न केवल हम पाठकों को आश्वस्त करता है, प्रस्तुत आयोजन में आपकी सतत उपस्थिति का निवेदन भी करता है.

शुभ-शुभ

विस्तृत टिप्पणी और उपयोगी मार्गदर्शन प्रदान करने हेतू अति आभार सौरभ जी। आपने जो भी बिंदु इंगित किए हैं उनपर ध्यान देकर पुनः प्रयास करूँगा और नियमित भागीदारी का प्रयास भी करूँगा।

पुनः आभार और धन्यवाद 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
May 31
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
May 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service