आदरणीय काव्य-रसिको,
सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार एक सौ दसवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
20 जून 2020 दिन शनिवार से 21 जून 2020 दिन रविवार तक
इस बार के छंद हैं -
लावणी या ताटंक छंद और सार छंद
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
लावणी/ ताटंक छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...
सार छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 20 जून 2020 दिन शनिवार से 21 जून 2020 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय दिनेश जी, आपके प्रयास पर आपको हार्दिक बधाइयाँ.
अलबत्ता, हिन्दी व्याकरण के प्रति संवेदनशील हो जाएँ. यह रचनाकर्म के लिए अत्यंत आवश्यक है.
पगडंडी की संज्ञा स्त्रीलिंग होने से ’कितने प्यारे’ उचित नहीं है. इसी तरह ’याद अभी तक आते हैं" अशुद्ध पद्यांश हो जाता है. इसी तरह मंज़िल की संज्ञा भी स्त्रीलिंग होती है.
बहरहाल, आपकी संलग्नता का स्वागत है.
शुभातिशुभ
आदरणीयदिनेश भाई
पगडंडी से जुड़ी बचपन की खूबसूरत यादों से युक्त इस प्रस्तुति के लिए हृदय से बधाई ।
प्रयोगात्मक नवगीत (ताटंक छंद)
बड़े ग़ज़ब की यार सवारी, ये साइकिलें होती हैं।
आदरणीय अजय गुप्ता जी, आपकी प्रयोगात्मक प्रस्तुति आपसे अवश्य ही गहन प्रयास की अपेक्षा करती है. सहभागिता का स्वागत है. विश्वास है, सहभागिता बनी रहेगी.
सधन्यवाद
आदरणीय अजय भाई, प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। इस विधा के बारे में अनभिज्ञ हूँ इसलिए जानने, समझने का इच्छुक हूँ। मुखड़े में /वह/ की अपेक्षा /वे/ सही जान पड़ता है। सादर
आदरणीय अजय भाई
छंद आधारित नवगीत के इस प्रयास पर हृदय तल से बधाई
इस नवगीत के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी।
चलती जीवन गाड़ी (गीत, आधार: मुखड़ा: सार छन्द, अंतरा: लावणी छन्द)
एक समझ को रखे सँजोए,
दूजा रहे अनाड़ी
दो पहिये हम, प्रेम धुरी है,
चलती जीवन गाड़ी।
ठंड घेरती जाती इसको,
सूनी-सूनी अमराई
आस मिलन की ऐसे लगती,
जैसे धूप छिटक आई।
मिले तपिश जब-जब थोड़ी-सी,
खुल जाती हर नाड़ी।
पत्थर के रस्ते से बोलो,
अब क्या मतलब अपना है
पगडन्डी काच्ची काफ़ी है,
आगे जिस पर बढ़ना है।
गाँव हमारा रहा ठिकाना,
धंधा खेती-बाड़ी।
जब दिल में आए हम दोनों,
तब साथ घूमने जाएँ
दो पहियों की सही सवारी,
इसको ही हम अपनाएँ।
मैं पहनूँ जैकट सर्दी में,
तुम जर्सी औ साड़ी।
मौलिक अप्रकाशित
एक समझ को रखे सँजोए,
दूजा रहे अनाड़ी
दो पहिये हम, प्रेम धुरी है,
चलती जीवन गाड़ी .. .. क्या बात है ! क्या बात है ! ,, बहुत खूब, आदरणीय सतविन्द्र जी.
ठंड घेरती जाती इसको,
सूनी-सूनी अमराई
आस मिलन की ऐसे लगती,
जैसे धूप छिटक आई ......... वाह वाह !
मिले तपिश जब-जब थोड़ी-सी,
खुल जाती हर नाड़ी ........... इस आधार पंक्ति को तनिक और समय देना था.
पत्थर के रस्ते से बोलो,
अब क्या मतलब अपना है
पगडन्डी काच्ची काफ़ी है,
आगे जिस पर बढ़ना है
गाँव हमारा रहा ठिकाना,
धंधा खेती-बाड़ी ............. इस पूरे बंद के लिए हृदयतल से बधाई
जब दिल में आए हम दोनों,
तब साथ घूमने जाएँ ......... साथ घूमने जाएँगे
दो पहियों की सही सवारी,
इसको ही हम अपनाएँ। ........ इसको ही अपनाएँगे ........ ये दोनों सुझाव भावजन्य न हो कर शैल्पिक आयाम को संतुष्ट करते हुए हैं.
मैं पहनूँ जैकट सर्दी में,
तुम जर्सी औ साड़ी ........... अय हय ! .. :-)))) .... बहुत खूब !
आदरणीय सतविन्द्र जी आपकी प्रस्तुति का काव्यात्मक विस्तार आश्वस्तिकारी है. हार्दिक बधाइयाँ
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ सर, सादर नमन! अनुमोदन, उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन हेतु सादर हार्दिक आभार। आपके सुझावानुरूप बंद बढ़िया बन रहा है। सादर
दो पहियों को प्रेम धुरी का प्रतीक लेते हुए क्या ही खूब सृजन किया है आपने आदरणीय सतविन्दर भाई। हार्दिक बधाई।
आवश्यक सूचना:-
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