For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार एक सौ दसवाँ आयोजन है.   

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

20 जून 2020 दिन शनिवार से 21 जून 2020 दिन रविवार तक
 
इस बार के छंद हैं - 

लावणी या ताटंक छंद और सार छंद

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं. 

चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

लावणी/ ताटंक छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...

सार छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 20 जून 2020 दिन शनिवार से 21 जून 2020 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com  परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2764

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय दिनेश जी, आपके प्रयास पर आपको हार्दिक बधाइयाँ.

अलबत्ता, हिन्दी व्याकरण के प्रति संवेदनशील हो जाएँ. यह रचनाकर्म के लिए अत्यंत आवश्यक है. 

पगडंडी की संज्ञा स्त्रीलिंग होने से ’कितने प्यारे’ उचित नहीं है. इसी तरह ’याद अभी तक आते हैं" अशुद्ध पद्यांश हो जाता है. इसी तरह मंज़िल की संज्ञा भी स्त्रीलिंग होती है.

बहरहाल, आपकी संलग्नता का स्वागत है. 

शुभातिशुभ

  1. आदरणीय दिनेश जी, अच्छे छन्द हुए हैं। पगडन्डी भले संकरे-से रस्ते को कहते हैं, तथापि खड़ी बोली में इसे स्त्रीलिंग ही पढा, लिखा जाता है। ऐसे ही मंजिल को। सादर

आदरणीयदिनेश भाई

पगडंडी से जुड़ी बचपन की खूबसूरत यादों से युक्त इस प्रस्तुति के लिए हृदय से बधाई ।

प्रयोगात्मक नवगीत (ताटंक छंद)

बड़े ग़ज़ब की यार सवारी, ये साइकिलें होती हैं।

जितने पाठ पढ़ाती है यें, ज्ञान भरे वह मोती हैं।।

बंदा इसको खींचे है तो, ये ढोती है बंदे को,
सामाजिक ताने-बाने का, उदाहरण जगता-जीता।
बड़े ग़ज़ब की यार सवारी...
लक्ष्य मिलेगा श्रम करने से, श्रम रोका गिर जाओगे,
कर्म बिना कुछ भी ना मिलता, दर्शन इसका है गीता।
बड़े ग़ज़ब की यार सवारी...
स्वास्थ्य संपदा भी कुछ होती, भान हमें इसका भी हो,
नहीं स्वस्थ तन-मन तो समझो, जीवन-धन-घट है रीता।
बड़े ग़ज़ब की यार सवारी...
दो पहियों की जीवन गाड़ी, मिलकर ही चलते दोनों,
अलग-अलग हों अगर दिशाएँ, जीवन रुके-रुके बीता।
बड़े ग़ज़ब की यार सवारी...
हवा चक्र की प्राण समझिए, दिखे ना पर होती है,
बिन प्राणों के देह नहीं कुछ, बाँधे सांसों का फीता।
बड़े ग़ज़ब की यार सवारी...
(मौलिक व अप्रकाशित)

आदरणीय अजय गुप्ता जी, आपकी प्रयोगात्मक प्रस्तुति आपसे अवश्य ही गहन प्रयास की अपेक्षा करती है. सहभागिता का स्वागत है. विश्वास है, सहभागिता बनी रहेगी. 

सधन्यवाद 

आदरणीय अजय भाई, प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। इस विधा के बारे में अनभिज्ञ हूँ इसलिए जानने, समझने का इच्छुक हूँ। मुखड़े में /वह/ की अपेक्षा /वे/ सही जान पड़ता है। सादर

आदरणीय अजय भाई

छंद आधारित नवगीत के इस प्रयास पर हृदय तल से बधाई

इस नवगीत के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी।

चलती जीवन गाड़ी   (गीत, आधार: मुखड़ा: सार छन्द, अंतरा:  लावणी छन्द) 

एक समझ को रखे सँजोए,
दूजा रहे अनाड़ी
दो पहिये हम, प्रेम धुरी है,
चलती जीवन गाड़ी।

ठंड घेरती जाती इसको,
सूनी-सूनी अमराई
आस मिलन की ऐसे लगती,
जैसे धूप छिटक आई।

मिले तपिश जब-जब थोड़ी-सी,
खुल जाती हर नाड़ी।

पत्थर के रस्ते से बोलो,
अब क्या मतलब अपना है
पगडन्डी काच्ची काफ़ी है,
आगे जिस पर बढ़ना है।

गाँव हमारा रहा ठिकाना,
धंधा खेती-बाड़ी।

जब दिल में आए हम दोनों,
तब साथ घूमने जाएँ
दो पहियों की सही सवारी,
इसको ही हम अपनाएँ।

मैं पहनूँ जैकट सर्दी में,
तुम जर्सी औ साड़ी।

मौलिक अप्रकाशित

एक समझ को रखे सँजोए,
दूजा रहे अनाड़ी
दो पहिये हम, प्रेम धुरी है,
चलती जीवन गाड़ी .. .. क्या बात है ! क्या बात है ! ,, बहुत खूब, आदरणीय सतविन्द्र जी.

 

ठंड घेरती जाती इसको,
सूनी-सूनी अमराई
आस मिलन की ऐसे लगती,
जैसे धूप छिटक आई ......... वाह वाह !

 

मिले तपिश जब-जब थोड़ी-सी,
खुल जाती हर नाड़ी ........... इस आधार पंक्ति को तनिक और समय देना था.

 

पत्थर के रस्ते से बोलो,
अब क्या मतलब अपना है
पगडन्डी काच्ची काफ़ी है,
आगे जिस पर बढ़ना है

 

गाँव हमारा रहा ठिकाना,
धंधा खेती-बाड़ी ............. इस पूरे बंद के लिए हृदयतल से बधाई

 

जब दिल में आए हम दोनों,
तब साथ घूमने जाएँ ......... साथ घूमने जाएँगे 

दो पहियों की सही सवारी,
इसको ही हम अपनाएँ। ........ इसको ही अपनाएँगे ........ ये दोनों सुझाव भावजन्य न हो कर शैल्पिक आयाम को संतुष्ट करते हुए हैं.

मैं पहनूँ जैकट सर्दी में,
तुम जर्सी औ साड़ी ........... अय हय ! ..    :-))))   .... बहुत खूब ! 

 

आदरणीय सतविन्द्र जी आपकी प्रस्तुति का काव्यात्मक विस्तार आश्वस्तिकारी है. हार्दिक बधाइयाँ
शुभ-शुभ

 

आदरणीय सौरभ सर, सादर नमन! अनुमोदन, उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन हेतु सादर हार्दिक आभार। आपके सुझावानुरूप बंद बढ़िया बन रहा है। सादर

दो पहियों को प्रेम धुरी का प्रतीक लेते हुए क्या ही खूब सृजन किया है आपने आदरणीय सतविन्दर भाई। हार्दिक बधाई।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा पंचक - राम नाम
"वाह  आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहों का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, हार्दिक धन्यवाद  आभार आपका "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service