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सवालों का ऐसे बता हल किधर है.

 मापनी १२२ १२२ १२२ १२२ 

नदी का वो बहता हुआ जल किधर है.

सवालों का ऐसे बता हल किधर है. 

 

घुसी जा रहीं आज खेतों में सडकें,

डराता था हमको वो जंगल किधर है. 

 

कहाँ से पवन अब बहे मंद शीतल, 

चमेली, ये बेला, ये संदल किधर है.

 

न बालों में गजरे, न मेहँदी की खुशबू,

महावर, ये पायल, ये काजल किधर है.  

 

कभी पौंछ दे आंसुओं को हमारे,

बता दे मुझे माँ वो आँचल किधर है. 

 

धरा की तपन को मिटा दे जरा सा,

पता ही नहीं कुछ वो बादल किधर है.

 

पली आस कब से है अच्छे दिनों की, 

न देता दिखाई कि वो कल किधर है.

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 11, 2021 at 4:09pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार

हृदय से आभार आपका 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2021 at 7:34am

आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

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