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कुछ मुक्तक (उत्तराखंड त्रासदी पर)

(1)

चाय-औ-नाश्ते पे "इस" त्रासदी की चर्चा करेंगे

सदन मे बैठ कर वो लफ्ज़ का खर्चा करेंगे

"" बहुत गमगीन हैं हम" , सारे नेता कह रहे हैं

बने जो गर विधायक "इस" हानि का हरज़ा भरेंगे

(2).

तेरे बर्फ से दोस्ती थी तेरी दरिया से खेलते थे वो

अब घूँट भर पीने को उनको नही मयस्सर पानी

ये क्या कर दिया तूने पल भर मे तोड़ दी यारी

ये कैसी दुस्मनी अपनो से ये कैसी बद-गुमानी

(3).

सभी ये चाहते है अब ज़िंदगी की सूरत बदल जाए

ai खुदा कोई धूप ऐसी भेज की ये पानी जल जाए

..... बद-दुया है ये , की , कहे वक़्त की ज़रूरत इसको

अब कुछ अरसा ऐसा हो ये दरिया बर्फ मे ढल जाए

(मौलिक और अप्रकाशित)

.... copyright with अजय शर्मा 09415461125

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Comment by वेदिका on July 5, 2013 at 8:21pm

सुन्दर विचारों से पिरोये हुए मुक्तक पे बधाई स्वीकारें आदरणीय अजय जी!

तेरे बर्फ से दोस्ती थी तेरी दरिया से खेलते थे वो

अब घूँट भर पीने को उनको नही मयस्सर पानी

ये क्या कर दिया तूने पल भर मे तोड़ दी यारी

ये कैसी दुस्मनी अपनो से ये कैसी बद-गुमानी ,,

                                                                जहाँ तक मेरी जानकारी है, मुक्तक  में पहला पद, तीसरा पद, और आखिरी पद  सम तुकांत होते है,, इस नियम के तहत शायद ये मुक्तक मानक पे खरा नही है,,

क्या कोई और भी     नियम है ऐसा?? मंच से जिज्ञासा रखती हूँ 

सादर 'वेदिका'  

 

Comment by coontee mukerji on July 5, 2013 at 8:18pm

सभी ये चाहते है अब ज़िंदगी की सूरत बदल जाए

ai खुदा कोई धूप ऐसी भेज की ये पानी जल जाए

..... बद-दुया है ये , की , कहे वक़्त की ज़रूरत इसको

अब कुछ अरसा ऐसा हो ये दरिया बर्फ मे ढल जाए.........अजय भाई  मैंने सिर्फ भाव पर प्रकाश डाला है  मुक्तक को उसी की शक्ल में अच्छी लगती है.टाइपिंग की अशुद्दियों पर ध्यान दीजिएगा.

सादर

कुंती

Comment by ram shiromani pathak on July 5, 2013 at 8:09pm

बहुत सुन्दर भाव है आपके भाई अजय साहब ///हार्दिक बधाई आपको

(2).
तेरे बर्फ से दोस्ती थी तेरी दरिया से खेलते थे वो
अब घूँट भर पीने को उनको नही मयस्सर पानी
ये क्या कर दिया तूने पल भर मे तोड़ दी यारी
ये कैसी दुस्मनी अपनो से ये कैसी बद-गुमानी/// भाई साहब  इसे एक बार देख ले///

सभी ये चाहते है अब ज़िंदगी की सूरत बदल जाए
ai खुदा कोई धूप ऐसी भेज की ये पानी जल जाए// कुछ नया देखने को मिला //हिन्दी के साथ इंग्लिश //शायद आपने हिंगलिश में लिखने की कोशिस की है ///वाह नया प्रयोग //

(मौलिक और अप्रकाशित) ये तो ठीक है //
.... copyright with अजय शर्मा ०९४१५४६११२५///ये क्या है भाई साहब ///

Comment by coontee mukerji on July 5, 2013 at 8:01pm

चाय-औ-नाश्ते पे "इस" त्रासदी की चर्चा करेंगे

सदन मे बैठ कर वो लफ्ज़ का खर्चा करेंगे

"" बहुत गमगीन हैं हम" , सारे नेता कह रहे हैं

बने जो गर विधायक "इस" हानि का हरज़ा भरेंगे.................जब तक चर्चाएँ समाप्त होंगी तब तक न जाने कितने लोग कालकलवित हो जाऐंगे

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2013 at 8:00pm

आदरणीय बहुत अच्छा प्रयास है आपका! आपको ढेरों बधाई!

एक बात इस मंच को सम्बोधित करके कहना चाहता हूं कि क्या मुक्तक में तुकांत का ध्यान नहीं रखा जाता?

इस मंच के सुधीजन इस विषय पर मुझे मार्गदर्शन प्रदान करें। जो इस रचना पर अपनी टिप्पणी दे चुके हैं उनसे भी मेरा आग्रह है कि कृपया अपनी कीमती राय एक बार फिर दें।

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2013 at 6:16pm

उत्तरा खंड की इस त्रासदी पर बहुत सार्थक मुक्तक रचे है अजय जी बधाई आपको 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 5, 2013 at 11:33am

बहुत प्रभाव पूर्ण मुक्तक रचे है आपने त्रासदी पर, हार्दिक बधाई श्री अजय शर्मा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 5, 2013 at 9:46am

उत्तराखंड त्रासदी के विविध पहलुओं पर बहुत सुन्दर यथार्थ मुक्तक लिखे हैं आ० अजय जी 

शुभकामनाएं 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 5, 2013 at 9:43am

आ0 अजय जी,    सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।   सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 5, 2013 at 8:12am

"" बहुत गमगीन हैं हम" , सारे नेता कह रहे हैं

बने जो गर विधायक "इस" हानि का हरज़ा भरेंगे...............भयानक त्रासदियाँ तो इनकी लाटरियाँ ही हैं. 

आदरणीय अजय शर्मा जी सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकारें.

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