(1)
चाय-औ-नाश्ते पे "इस" त्रासदी की चर्चा करेंगे
सदन मे बैठ कर वो लफ्ज़ का खर्चा करेंगे
"" बहुत गमगीन हैं हम" , सारे नेता कह रहे हैं
बने जो गर विधायक "इस" हानि का हरज़ा भरेंगे
(2).
तेरे बर्फ से दोस्ती थी तेरी दरिया से खेलते थे वो
अब घूँट भर पीने को उनको नही मयस्सर पानी
ये क्या कर दिया तूने पल भर मे तोड़ दी यारी
ये कैसी दुस्मनी अपनो से ये कैसी बद-गुमानी
(3).
सभी ये चाहते है अब ज़िंदगी की सूरत बदल जाए
ai खुदा कोई धूप ऐसी भेज की ये पानी जल जाए
..... बद-दुया है ये , की , कहे वक़्त की ज़रूरत इसको
अब कुछ अरसा ऐसा हो ये दरिया बर्फ मे ढल जाए
(मौलिक और अप्रकाशित)
.... copyright with अजय शर्मा 09415461125
Comment
सुन्दर विचारों से पिरोये हुए मुक्तक पे बधाई स्वीकारें आदरणीय अजय जी!
तेरे बर्फ से दोस्ती थी तेरी दरिया से खेलते थे वो
अब घूँट भर पीने को उनको नही मयस्सर पानी
ये क्या कर दिया तूने पल भर मे तोड़ दी यारी
ये कैसी दुस्मनी अपनो से ये कैसी बद-गुमानी ,,
जहाँ तक मेरी जानकारी है, मुक्तक में पहला पद, तीसरा पद, और आखिरी पद सम तुकांत होते है,, इस नियम के तहत शायद ये मुक्तक मानक पे खरा नही है,,
क्या कोई और भी नियम है ऐसा?? मंच से जिज्ञासा रखती हूँ
सादर 'वेदिका'
सभी ये चाहते है अब ज़िंदगी की सूरत बदल जाए
ai खुदा कोई धूप ऐसी भेज की ये पानी जल जाए
..... बद-दुया है ये , की , कहे वक़्त की ज़रूरत इसको
अब कुछ अरसा ऐसा हो ये दरिया बर्फ मे ढल जाए.........अजय भाई मैंने सिर्फ भाव पर प्रकाश डाला है मुक्तक को उसी की शक्ल में अच्छी लगती है.टाइपिंग की अशुद्दियों पर ध्यान दीजिएगा.
सादर
कुंती
बहुत सुन्दर भाव है आपके भाई अजय साहब ///हार्दिक बधाई आपको
(2).
तेरे बर्फ से दोस्ती थी तेरी दरिया से खेलते थे वो
अब घूँट भर पीने को उनको नही मयस्सर पानी
ये क्या कर दिया तूने पल भर मे तोड़ दी यारी
ये कैसी दुस्मनी अपनो से ये कैसी बद-गुमानी/// भाई साहब इसे एक बार देख ले///
सभी ये चाहते है अब ज़िंदगी की सूरत बदल जाए
ai खुदा कोई धूप ऐसी भेज की ये पानी जल जाए// कुछ नया देखने को मिला //हिन्दी के साथ इंग्लिश //शायद आपने हिंगलिश में लिखने की कोशिस की है ///वाह नया प्रयोग //
(मौलिक और अप्रकाशित) ये तो ठीक है //
.... copyright with अजय शर्मा ०९४१५४६११२५///ये क्या है भाई साहब ///
चाय-औ-नाश्ते पे "इस" त्रासदी की चर्चा करेंगे
सदन मे बैठ कर वो लफ्ज़ का खर्चा करेंगे
"" बहुत गमगीन हैं हम" , सारे नेता कह रहे हैं
बने जो गर विधायक "इस" हानि का हरज़ा भरेंगे.................जब तक चर्चाएँ समाप्त होंगी तब तक न जाने कितने लोग कालकलवित हो जाऐंगे
आदरणीय बहुत अच्छा प्रयास है आपका! आपको ढेरों बधाई!
एक बात इस मंच को सम्बोधित करके कहना चाहता हूं कि क्या मुक्तक में तुकांत का ध्यान नहीं रखा जाता?
इस मंच के सुधीजन इस विषय पर मुझे मार्गदर्शन प्रदान करें। जो इस रचना पर अपनी टिप्पणी दे चुके हैं उनसे भी मेरा आग्रह है कि कृपया अपनी कीमती राय एक बार फिर दें।
सादर!
उत्तरा खंड की इस त्रासदी पर बहुत सार्थक मुक्तक रचे है अजय जी बधाई आपको
बहुत प्रभाव पूर्ण मुक्तक रचे है आपने त्रासदी पर, हार्दिक बधाई श्री अजय शर्मा जी
उत्तराखंड त्रासदी के विविध पहलुओं पर बहुत सुन्दर यथार्थ मुक्तक लिखे हैं आ० अजय जी
शुभकामनाएं
आ0 अजय जी, सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। सादर,
"" बहुत गमगीन हैं हम" , सारे नेता कह रहे हैं
बने जो गर विधायक "इस" हानि का हरज़ा भरेंगे...............भयानक त्रासदियाँ तो इनकी लाटरियाँ ही हैं.
आदरणीय अजय शर्मा जी सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकारें.
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