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ये हमारी है दुआ शाद तू गुलफा़म रहे
दूर ही तुझसे सदा गर्दिश-ए-अय्याम रहे
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सारी दुनिया में तेरे इल्म की महके ख़ुश्बू
जब तलक चाँद सितारें हों तेरा नाम रहे
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इस तरह तेरे तसव्वुर में मगन हो जाऊँ
मुझको अपनों से न ग़ैरों से कोई काम रहे
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जब तेरी दीद को हम शहर में तेरे पहुंचें
अपने दामन से न लिपटा कोई इल्ज़ाम रहे
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तेरी ख़ुशहाली की हरपल ये दुआ करते हैं
तेरे दामन में ख़ुशी सुब्ह रहे शाम रहे
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हर क़दम मेरा उठे तेरी रज़ा की ख़ातिर
मेरे होंटो पे हमेशा तेरा पैगाम रहे
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
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Comment
जनाब आरिफ साहब,
आप की महब्बत के अंदाज़ के लिए शुक्रिया
जनाब समर साहब,
आपको ब्लाग में दोबारा देखकर खुशी हुई.. आप अल्ला करे हमेशा अच्छा रहें... बिना आपके ब्लाग अपना हुस्न से महरूम था.. आपके मशविरे के लिए शुक्रिया..
मतला ऎसा किया है राय ज़रूर दें मतला पेश है..
ये हमारी है दुआ शाद तू गुलफ़ाम रहे
दूर ही तुझसे सदा गर्दिश-ए-अय्याम रहे....
आपका इंतज़ार......
Laxman dhami जी महब्बत के लिए शुक्रिया
आ. विजय जी आपका शुक्रिया
बृजेश भाई इनायत के लिए शुक्रिया
शेख उस्मानी साहिब ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
वाह आदरणीय क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है...हर एक शेर खूब हुआ...
जनाब सलीम रज़ा साहिब इस रचना पर बधाई स्वीकार करें । बाकी़ गुणीजन कह चुके हैं।
गज़ल अच्छी लगी। आपको दिल से बधाई, जनाब सलीम रज़ा साहिब।
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब , उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें। मतले का सानी मिसरा यूँ कर सकते हैं "ज़िन्दगी तेरी खुशी से भरी गुलफ़ाम रहे " । शेर2 में ऐब तकाबुले रदीफैंन हो रहाहै । उला मिसरा यूँ करलें "सारी दुनिया में तेरे इल्म की महके खुशबू "
शेर4 उला मिसरे में पहुंचे की जगह पहुंचें करने से ऐब तकाबुले रदीफैंन खत्म हो जाएगा ।
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