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आख़िरी आदमी (लघु-कथा) - डॉo विजय शंकर

भाषण अपने चरम पर था। विशाल जन - समूह पूरे मनोयोग से सुन रहा था।
उन्होंने कहा:

"भाइयों! पार्टी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और उच्च पद रिक्त है, मैंने निर्णय लिया है कि यह पद हमारे साथियों में सबसे पीछे खड़े आख़िरी आदमी को दिया जाएगा " .
उनका वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि सब लोग पीछे की ओर भागने लगे। पूरा मैदान खाली हो गया, मंच खाली हो गया, वे मंच पर अकेले रह गए।
खबर आयी है , लोग एक और भागे जा रहे हैं , बस भागे जा रहे हैं।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 13, 2016 at 11:52am

आ० विजय सर , बहतरीन

Comment by Rahila on August 12, 2016 at 5:32pm
बहुत ही शानदार रचना आदरणीय सर जी!शायद शब्द नही मेरे पास ।बहुत बधाई आपको ।सादर
Comment by RAJENDER KUMAR GAUR on August 12, 2016 at 5:39am
आदरणीय सही स्तिथि समाज की केवल शब्द के पीछे और योग्यता हो न हो प्राप्ति की इच्छा उत्तम कम शब्दों के सटीक कथा
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 11, 2016 at 10:55pm
......लोग एक और भागे जा रहे हैं , बस भागे जा रहे हैं। रचना का ये अंत जहां आज के मानव की लालच प्रवर्ति को रेखांकित करता है वहीं अनकहे ही मानव के नैगर्सिक व्यवहार पर भी चोट कर जाता है। आदरणीय विजय शंकर जी इस उम्दा लघुकथा के लिए अनुज कीओर से दिळी बधाई स्वीकार करे। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 11, 2016 at 8:53pm
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आपकी परख को नमन ,बाक़ी लखु-कथा तो वही है जो है और दिखाई दे रहा है। आपकी उपस्थिति हेतु ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 11, 2016 at 8:52pm
आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी , आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Samar kabeer on August 11, 2016 at 8:23pm
आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,कम शब्दों में बड़ी बात कहना आप बहतर जानते हैं,बहुत ख़ूब वाह, दिल से बधाई स्वीकार करें इस शानदार प्रस्तुति पर ।
Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 11, 2016 at 7:56pm
दिग्भ्रमित समाज
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 11, 2016 at 6:36pm
आदरणीय नादिर खान साहब , लघु- कथा पर आपकी उपस्थिति एवम उत्साहवर्धन हेतु ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by नादिर ख़ान on August 11, 2016 at 11:53am

भागे जा रहे हैं , बस भागे जा रहे हैं।  सही कहा दिशाहीन.... उद्देश्यहीन भाग दौड .. बहुतखूब कहा आदरणीय विजय शंकर जी, बधाई स्वीकारें

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