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रक्त से सारा मरुस्थल तरबतर करते हुए
प्राण तो त्यागे मगर खुद को अमर करते हुए

सब्र की सारी हदों से कोई आगे बढ़ गया
अग्निपथ पे तिशनगी को अग्रसर करते हुए

उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए

धीरे धीरे बोझ बुनियादों पे कम होता गया
वक़्त यूँ गुज़रा हवेली को खंडहर करते हुए

ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए

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Comment by fauzan on June 7, 2010 at 9:48pm
Yogi bhai bahut shukria himmat badhane ke liye

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 7, 2010 at 8:33pm
//ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए//
मौत को मध्यांतर समझना और कहना हरेक के बूते की बात नही ! ये शेयर तो किसी बहुत गहरी अध्यात्मिक सोच की तरफ इशारा कर रहा है ! जियो फौजान भाई जियो, मुझे फख्र है की आप मेरे मित्र हैं !
Comment by Sanjay Kumar Singh on June 5, 2010 at 3:49pm
ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए ,
Bahut badhiya likhey hai, aap ki gazal mey jo lajjat hai wo aur jagah nahi milti, bahut badhiya,
Comment by satish mapatpuri on June 4, 2010 at 3:28pm
उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए

धीरे धीरे बोझ बुनियादों पे कम होता गया
वक़्त यूँ गुज़रा हवेली को खंडहर करते हुए
फौजान भाई, कमाल है.
Comment by Admin on June 3, 2010 at 11:38pm
उसके चेहरे के वरक़ को झुर्रियों से भर दिया
उम्र की रेखाओं ने हस्ताक्षर करते हुए,

वाह जनाब वाह, आपके उबुरे-क़लम का कोई सानी नही, बहुत ही उम्द्दा ख्यालात है आपके, एक बेहतरीन ग़ज़ल,बहुत बहुत धन्यबाद आपका,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 3, 2010 at 11:15pm
रक्त से सारा मरुस्थल तरबतर करते हुए
प्राण तो त्यागे मगर खुद को अमर करते हुए

वाह फ़ौज़ान भाई वाह , क्या शानदार ग़ज़ल आपने लिखा है, आज पुनः मुझे तारीफ के लिए शब्द की कमी महसूस हो रही है, मैं यह टिप्पणी लिखने से पहले आप के इस ग़ज़ल को स्वर देकर प्रीतम भाई को जी टॉक पर सुना रहा था , बहुत ही प्यारा और सारगर्भित रचना बन पड़ा है, सभी शेअर एक पर एक है,

ज़िंदगी वो खेल है जिसका समापन ही नहीं
मौत आई खेल मे मध्यांतर करते हुए,

एक सच्चाई है ये....
जिंदगी एक खेल, कोई पास कोई फेल,
कुछ लोग जीत कर भी हार जाते है,
और कुछ लोग हार कर भी जीत जाते है,
यही तो है जिंदगी का खेल,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 3, 2010 at 10:40pm
सब्र की सारी हदों से कोई आगे बढ़ गया
अग्निपथ पे तिशनगी को अग्रसर करते हुए
bahut badhiya fauzan bhai........
Comment by Biresh kumar on June 3, 2010 at 10:02pm
lajawab hai bhai
concntrate hai
kiya piroya hai khubsurti se lafzo ko
mere pas sabd nahi hai .....its just fabulous!!!!!!!!!!!!!

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