For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - पत्थरों से रही शिकायत कब ? // --सौरभ

२१२२ १२१२ २२/११२

 
अब दिखेगी भला कभी हममें..
आपसी वो हया जो थी हममें ?

 

हममें जो ढूँढते रहे थे कमी
कह रहे, ’ढूँढ मत कमी हममें’ !

 

साथिया, हम हुए सदा ही निसार
पर मुहब्बत तुम्हें दिखी हममें ?

 

पूछते हो अभी पता हमसे
क्या दिखा बेपता कभी हममें ?

 

पत्थरों से रही शिकायत कब ?
डर हथेली ही भर रही हममें !

 

चीख भरने लगे कलंदर ही..
मत कहो, है बराबरी हममें !

 

नूर ’सौरभ’ खुदा का तुम ही गुनो
जो उगाता है ज़िन्दग़ी हममें !
****
सौरभ

Views: 610

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 22, 2020 at 6:15pm

आदरणीय अग्रज को सादर प्रणाम 

एक बहुत मारक गजल से मंच को जाग्रत करने के लिए बहुत साधुवाद 

अब दिखेगी भला कभी हममें..
आपसी वो हया जो थी हममें ?...................जनता भी अब बोल रही है, उनको बस यह खलता है

                                                           तुष्टीकरण विष-फसल उगा कर जिनका धंधा चलता है

 

हममें जो ढूँढते रहे थे कमी
कह रहे, ’ढूँढ मत कमी हममें’ !...................आईने पर पत्थरबाजी निश्चित ही हो जानी थी

                                                             खुद का चहरा देख के उनको क्योंकि शर्म तो आनी थी

 

पत्थरों से रही शिकायत कब ?
डर हथेली ही भर रही हममें !................आहा……….क्या बात है………हथेली की रेखाओं पर पत्थर की खरोच

                                                                                                     किस्मत क्यूँ ना, देती धोका

  

बहुत बधाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 16, 2020 at 9:00pm

आ. सौरभ सर.
 

लम्बे समय बाद आपको पढ़ना सुखद है. 
ऐसा लगता है मानों ग़ज़ल कच्ची ही उतार ली आपने. अभी पकने की गुंजाइश बाकी है.
.
हममें जो ढूँढते रहे थे कमी
कह रहे, ’ढूँढ मत कमी हममें’ !.. ऊला में "थे" भूत काल है और सानी में "रहे" वर्तमान जो एक प्रकार का शुतुरगुर्बा है.
.

पूछते हो अभी पता हमसे
क्या दिखा बेपता कभी हममें ?  
  इस शेर में आपके भाव जो भी रहे हों, वो पाठकों तक पहुँच नहीं रहे हैं. आप जिस बेपता तक ले जाना चाह रहे हैं उस भाव को ऊला हल्का कर रहा है.  
.
पत्थरों से रही शिकायत कब ?
डर हथेली ही भर रही हममें !.. पत्थर के डर का हथेली से कोई शेरी सम्बन्ध नहीं है.. वैसे भी पत्थर का सम्बन्ध हाथ से अधिक है, हथेली से कम.  
.
चीख भरने लगे कलंदर ही..
मत कहो, है बराबरी हममें !.. चीखा जाता है और आह भरी जाती है.. अत: चीख भरने .जुमला त्रुटिपूर्ण लगता है .
साथ ही कई जगह "ही" सिर्फ भर्ती के लिए प्रयुक्त लगता है ..
आप ग़ज़ल में मेरे अध्यापक रहे हैं,  आप से खिन बेहतर की अपेक्षा है.
सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 7, 2020 at 6:12am

आदरणीय समर साहब प्रस्तुति पर आये यही विशेष प्रतीत हुआ है. इस हेतु कृतज्ञ हूँ. सादर आभार. 

जहाँ तक आपके प्रश्नों का संबंध है, तो, आदरणीय, काश आपने पंक्तियों की बुनावट पर तनिक और समय दिया होता. आप इतने सक्षम अवश्य हैं कि कथित अशआर की पंक्तियों के दरमियाँ रब्त और व्याकरणीय विन्यास समझ लें. यदि समय हो तो पुुुन: ध्यान दीजिएगा. वैसे, आपकी व्यस्तता और आपके स्वास्थ्य से परिचित हूँ. दोनों का प्रभाव परिलक्षित होता रहता है. 

यही हाल अपना है. अति व्यस्तता तथा स्वास्थ्य की कलाएँ दोनों से प्रभावित हो जाता हूँ. किंतु, न होते भी प्रस्तुत ग़ज़ल को पूरा कर पाया, इसकी आश्वस्ति है.

सादर शुभकामनाएँ ..

Comment by Samar kabeer on January 3, 2020 at 3:26pm

जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'पूछते हो अभी पता हमसे 
क्या दिखा बेपता कभी हममें'

इस शैर का भाव मुझे स्पष्ट नहीं लगा ।

'पत्थरों से रही शिकायत कब ? 
डर हथेली ही भर रही हममें'

इस शैर के दोनों मिसरों में मुझे रब्त नहीं लगा,और सानी का व्याकरण भी समझने में उलझ रहा हूँ,"डर" शब्द तो पुल्लिंग है न?


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2020 at 2:40pm

आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय आशीष जी.

वैसे ऐसा क्या शानदार लगा है ? 

शुभ-शुभ

Comment by आशीष यादव on January 2, 2020 at 10:01pm

वाह सर, हर एक शेर शानदार है।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 2, 2020 at 12:52am

आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2019 at 5:39pm

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service