For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भीतर तुम्हारे

है एक बहुत बड़ा कमरा

मानो वहीं है संसार तुम्हारा

वेदना, अतृप्ति, विरह और विषमता

काले-काले मेघ और दुखद ठहराव

इन सब से भरा यह कमरा बुलाता है तुमको

जानती हूँ यह भी कि इस कमरे से तुम्हारा

रहा है बहुत पुराना गहरा गोपनीय रिश्ता  

इस आभासी दुनिया के मिथ्यात्व से दूर होने को

तुम कभी भी किसी भी पल धीरे हलके-हलके

अपराध-भाव-ग्रस्त मानों फांसी के फंदे पर झूलते

बिना कुछ बोले उस कमरे में जब भी जाते हो

बंद कमरे में बंदी, तुम उस कमरे के हो जाते हो

काश तुम जानो कि तुम्हारी अनुपस्थिति में 

विवशता के कारण तुम्हारे मौन की अनुगूँज

चारों ओर दीवारों से टकरा-टकरा कर

मुझपर अचानक भयानक कि~त~नी

अदृश्य  चोट  करती  है

इस काल्पनिक कमरे की दीवारें

तुम्हारे चेहरे का रंग देख

रंग बदलती हैं

कभी मातम की उदासी-सी काली

कभी नए मोतिए की कलियों-सी सफ़ेद

और कभी तुम्हारी आँखों की नमी से

बारिश-सी भीग भी जाती हैं

यहाँ तुम्हारे इस कमरे के बाहर

मैं "अपनी" अँधेरी कोठरी में तनहा

तुमको कितना भी पुकारूँ

मेरे शब्द खोखले

तुमको सुनाई नहीं देते ...

क्या सोचा कभी कि तुम्हारे बिना मेरा एकान्त

कितना औ~र अन्धकारमय हो जाता है ?

इतना कि इस भारी ठोस अन्धकार को मैं

ठेल नहीं सकती, पिघला भी नहीं पाती

बस, तुम्हारे इस कमरे के बाहर बैठी

तकती रहती हूँ

कि तुम घूमघुमाकर

इस रहस्यमय कमरे से बाहर

आओगे .... कब आओगे

इस बंद कमरे से बाहर आते ही तुम

देखते हो मेरी झोल खाई हुई आँखों में

कहते हो केवल ...  "कैसी हो, "प्यार" "

और मैं मानों सदियों से प्रतीक्षारत

कुछ भी कह नहीं पाती, भीतर-बाहर खिल जाती हूँ बस

अकुला रहे अनकहे मेरे सारे के सारे शब्द

कोई फूल जैसे पहली बारिश से झर झर जाते हैं

जानती हूँ कि उस कमरे में

तुम हो

तुम्हारा संसार है

मैं नहीं हूँ कहीं

पर तुम्हारे शब्द, "कैसी हो, "प्यार" "

चाहे मिथ्या ही हों

चिपके रहते हैं मुझसे

अपने खोए हुए को खोजती परखती सिकुड़ती

इस व्यथित अचेत असहनीय अवस्था में मानों

किराय का अस्तित्व लिए तालाब में बुलबुले-सी

मैं हल खोजती सहसा घबरा जाती हूँ

और तुम पूछते हो मुझसे

मेरी घबराहट का कारण ?

.... तुम्हारा यह कमरा 

               -----

- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित}

Views: 473

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on September 22, 2019 at 7:45am

नमस्कार, मित्र बृजेश जी। इतने समय उपरान्त आपका मेरी रचना पर आना सुखद एवं आत्मीय लगा।

मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार। आशा है आप और आपका परिवार कुशल होंगे। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 21, 2019 at 12:36pm

आदरणीय विजय जी..वास्तव में शब्द नहीं हैं मेरे पास..आपकी कवितायेँ शुरू से अंत तक बांधे रखती हैं और अंत में भी एक अतृप्ता छोड़ जातीं हैं...और मेरे हिसाब से यही रचना की उत्कृष्टता का सर्वोच्च पैमाना है।बधाई आपको इस भावप्रण कविता के लिए।

Comment by vijay nikore on September 19, 2019 at 7:16pm

मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी।

Comment by vijay nikore on September 19, 2019 at 7:16pm

मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र सुशील जी।

Comment by Samar kabeer on September 19, 2019 at 2:35pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on September 16, 2019 at 7:49pm

अपने खोए हुए को खोजती परखती सिकुड़ती

इस व्यथित अचेत असहनीय अवस्था में मानों

किराय का अस्तित्व लिए तालाब में बुलबुले-सी

मैं हल खोजती सहसा घबरा जाती हूँ

और तुम पूछते हो मुझसे

मेरी घबराहट का कारण ?

.... तुम्हारा यह कमरा
वाह आदरणीय निकोर साहिब वाह आपके सृजन में बादलों की घुटन,,प्रतीक्षा की तपन, अन्तस् का मर्दन बहुत ही सुंदर चित्रित हुआ है। कक्ष के एकांत में प्रतीक्षा का क्रंदन साफ़ सुनाई देता है। सूखी नदी के नीचे रुका दर्दीला बहाव बहुत कुछ कहता है। बहरहाल इस उत्कृष्ट भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
23 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service