‘छी: कितने गंदे, कुत्सित और बदबूदार हो तुम I तुम्हें देखकर घिन आती है I’ नदी ने मुंह बनाते हुए नाले से कहा I
‘बुरा न मानना दीदी आजकल तुम्हारी दशा भी मुझसे अच्छी नहीं है I’ नाले ने मुस्कराते हए जवाब दिया I
(मौलिक ?अप्रकाशित )
Comment
आ० विनय जी , सादर आभार
वाह, न्यूनतम शब्दों में अधिकतम कहती रचना, बहुत बहुत बधाई आपको आ डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब
आ० समर कबीर साहब , धन्यवाद सर I
अग्रज निकोर जी , आशर्वाद हेतु आभारी हूँ I सादर I
आओ तेजवीर सिंह साहब , अनुग्रहीत हुआ I
आ० सुशील सरना जी , सादर आभार I
आ० शेख शहजाद उस्मानी साहब , बहुत बहुत शुक्रिया I
आ० विजय सर, आभार
जनाब डॉ. गोपाल नारायण जी आदाब,बहुत उम्द: लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
इतने कम शब्दों में कमाल की लघुकथा लिखी है। हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी।
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