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रोशनी के सामने ये तीरगी क्या चीज़ है ( २३ )

रोशनी के सामने ये तीरगी क्या चीज़ है 
वक़्त की आंधी के आगे आदमी क्या चीज़ है 
***
जब थपेड़े ग़म के खाता है जहाँ में आदमी
तब उसे मालूम होता है ख़ुशी क्या चीज़ है 
***
एक बच्चे की कोई भी आरज़ू पूरी हो जब 
ग़ौर से फिर देखिये चेहरा हँसी क्या चीज़ है 
***
ग़ुरबतों से लड़ के जिसने ख़ुद बनाया हो मक़ाम 
बस वही तो जानता है मुफ़लिसी क्या चीज़ है
***
शह्र में तो प्यास का अहसास क्या होगा जनाब
गांव में जाकर के देखो तिश्नगी क्या चीज़ है 
***
जब तिरंगे में विदाई पुत्र को देता पिता 
उससे पूछो आँख की होती नमी क्या चीज़ है 
***
जह्र पी लेती है जो होकर दिवानी प्यार में 
सिर्फ मीरा ने ही जाना बंदगी क्या चीज़ है 
***
मुब्तला है जिस्म के धंधे में उससे पूछिए 
बेबसी क्या चीज़ है और खीरगी क्या चीज़ है 
***
आज तो है घर बड़ा रहता जहाँ पर है 'तुरंत '
पर उसे मालूम है ये झोंपड़ी क्या चीज़ है
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
***

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 8, 2019 at 2:52pm

दिगंबर नासवा साहेब ,आदाब | 

स्नेहिल सराहना के लिए हार्दिक आभार !
Comment by दिगंबर नासवा on February 8, 2019 at 1:19pm

बहुत खूब ...

अच्छे खनकदार शेर हैं कुछ तो ... वाह वाह निकल ही जाती है ... 

बहुत बधाई ....

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 7, 2019 at 9:53pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब ,आदाब | आपकी सराहना के साथ साथ इस्लाह ने न केवल मेरा हौसला बढ़ाया है बल्कि मेरी कमियों को ठीक से समझने में भी मदद की है | मुझे आपकी शरण में बहुत पहले आ जाना चाहिए था | आप निस्वार्थ जो साहित्य की सेवा कर रहे हैं एवं भटके हुओं को राह दिखा रहे हैं ,उसके लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ | आप द्वारा सुझाये गए सभी संशोधन सटीक एवं कलाम में चार चाँद लगाने वाले होते हैं | आपके इस जज़्बे को सलाम | 

Comment by Samar kabeer on February 7, 2019 at 3:41pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'जब थपेड़े ग़म के खाकर सुर्ख़रू हो आदमी'

इस मिसरे में 'सुर्ख़रु' शब्द मुनासिब नहीं,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

'जब थपेड़े ग़म के खाता है जहाँ में आदमी'

'इक वही बस जानता है मुफ़लिसी क्या चीज़ है'

इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-

'बस वही तो जानता है मुफ़लिसी क्या चीज़ है'

'आप तो बस तिश्नगी का ढूंढते हल मयकशी'

इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-

'शह्र में तो प्यास का अहसास क्या होगा जनाब'
'पर उसे मालूम होती झोंपड़ी क्या चीज़ है'

इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-

'पर उसे मालूम है ये झोंपड़ी क्या चीज़ है'

बाक़ी शुभ शुभ ।

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