For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222 1222 1222 1222

तरन्नुम बन ज़ुबाँ से जब कभी निकली ग़ज़ल कोई ।
सुनाता ही रहा मुझको मुहब्बत की ग़ज़ल कोई ।।

बहुत चर्चे में है वो आजकल मफ़हूम को लेकर ।
जवां होने लगी फिर से पुरानी सी ग़ज़ल कोई ।।

कभी यूँ मुस्कुरा देना कभी ग़मगीन हो जाना ।
वो छुप छुप कर तुम्हारी जब कभी पढ़ती ग़ज़ल कोई ।।

तुम्हें देखा जो मैंने और बाकी शेर कह डाला ।
हुई है बाद मुद्दत के यहाँ पूरी ग़ज़ल कोई ।।

सुना देने की बेचैनी दिखी है उसके चेहरे पर ।
किसी की याद में जो रात भर लिक्खी ग़ज़ल कोई ।।

हजारों लफ्ज़ भी कमतर लगे क्या क्या लिखूँ तुम पर ।
तुम्हारे हुस्न की तारीफ़ में बहकी ग़ज़ल कोई ।।

यहाँ दीवानगी की हद से गुज़रा है ज़माना तब ।
हमारे साज़ पर जब जब तेरी सजती ग़ज़ल कोई ।।

अरुजी से कहा मैंने है क्वाफी बह्र क्या सब कुछ ।
जिग़र का खून भी लगता है तब ढ़लती ग़ज़ल कोई ।।

         डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
         मौलिक अप्रकाशित












































Views: 415

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PHOOL SINGH on January 10, 2019 at 12:05pm

"नवीन भाई" अतिसुन्दर रचना बधाई स्वीकारें

Comment by Md. Anis arman on January 7, 2019 at 8:27pm

वाह बहुत खूब नवीन मणि त्रिपाठी जी बहुत अच्छी ग़ज़ल है हर शेर इक मिठास लिए हुए है 

Comment by Samar kabeer on January 7, 2019 at 11:45am

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'कभी यूँ मुस्कुरा देना कभी ग़मगीन हो जाना'

इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-

'कभी तो मुस्कुराती है,कभी ग़मगीन होती है'

'तुम्हें देखा जो मैंने और बाकी शेर कह डाला'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'तुम्हें देखा जो मैंने और बाक़ी शैर कह डाले'

'अरुजी से कहा मैंने है क्वाफी बह्र क्या सब कुछ''

ये मिसरा लय में नहीं है,यूँ कर लें:-

'अरुजी से कहा मैंने, क़वाफ़ी बह्र से पहले'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
3 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
22 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service