शायद वह दीवानी है ।
लड़की जो अनजानी है ।।
दिलवर से मिलना है क्या ।
चाल बड़ी मस्तानी है ।।
इश्क़ हुआ है क्या उसको ।
आँखों में तो पानी है ।।
खोए खोए रहते हो ।
यह भी इक नादानी है ।।
शमअ पे तो परवानों को।
हँसकर जान गवानी है।।
उंगली उस पर खूब उठी ।
रिश्ता क्या जिस्मानी है ।।
चर्चा जोरों पर उसकी ।
कैसी अजब जवानी है ।।
जिस पर नज़रें टिकती हैं ।
हुस्न कोई नूरानी है ।।
दर्दो ग़म में जीता हूँ ।
मेरे पास निशानी है ।।
जिनकी ख़ातिर कलम चली ।
उनको ग़ज़ल सुनानी है ।।
जाते हो क्यो महफ़िल से ।
छा जाती वीरानी है ।।
कसमें खाना छोड़ो जी ।
तुमको कहाँ निभानी है ।।
चेहरा पढ़ कर कहता हूँ ।
लम्बी लिखी कहानी है ।।
ज़िस्म के पिजरे से इक़ दिन।
चिड़िया तो उड़ जानी है ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
आ0 कबीर सर सादर के साथ हार्दिक आभार
जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'जाते हो क्यो महफ़िल से'
इस मिसरे को यूँ कर लें:-
'जाते हो जब महफ़िल से'
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