२२१२ २२१२ २२१२ १२
जब से मैं अपने दिल का सूबेदार हो गया
सहरा भी मेरे डर से लालाज़ार हो गया //१
छोड़ा जो तूने साथ, ख़ुद मुख्तार हो गया
तू क्या, ज़माना मेरा ख़िदमतगार हो गया //२
आईन मेरा ग़ैर क्या बतलायेंगे मुझे
मैं ख़ुद ही अपना आइना बरदार हो गया //३
गर बेमज़ा है आशिक़ी मेरे हवाले से
तू क्यों फ़साने में मेरे किरदार हो गया //४
मजनूँ बना मैं इश्क़ में, आँसू की क्या बिसात
जोशे जुनूँ में चश्म से खूँबार हो गया //५
लुत्फ़े हुबाबे इश्क़ की हस्ती न थी दराज़ //६
पैदा हुआ वो जिस घड़ी मिस्मार हो गया
साया ख़ुद अपने यास का आया हमारे काम
तीरा-ए-ग़म में ज़ानू-ए-ग़मख़्वार हो गया //७
दिल मुहलते फ़िराक़ में सोज़ाँ था हर घड़ी
यूँ इश्क़ मेरा आतिशे फ़िन्नार हो गया //८
जब तक जहाँ था क़ल्ब में कुछ ना दिखा मुझे
देखा शिफ़र तो ख़ल्क़ का दीदार हो गया //९
उस माहरू का 'राज़' मैं कैसे करूँ इलाज
तीमारदारी में मैं ख़ुद बीमार हो गया //१०
~राज़ नवादवी
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
सूबेदार- सूबे का शासक; लालाज़ार- लाल फूलों का खेत; आईन- नियम, क़ानून; आइना बरदार- आइना ढोने वाला; खूँबार- खून बरसाने वाला; मिस्मार- ध्वस्त; तीरा-ए-ग़म- ग़म का अन्धकार; लुत्फ़े हुबाबे इश्क़- प्रेम के बुलबुले का आनंद; जानू-ए-ग़मख़्वार- ग़म में सांत्वना देनेवाला का घुटना; फ़िन्नार- नरक, पर्गेटरी;
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया. सादर.
आ. भाई राजनवादवी जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
आपका स्वागत है जनाबे आली !
जी,शुक्रिया ।
जी जनाब, दुःख हुआ था फ़ोन पे आपकी नासाज़ी की ख़बर जानकार. मालिक से एक बार फिर आपके सेहतमंद होने की दुआ करता हूँ. सादर.
तबीअत ठीक नहीं थी भाई, वरना ओबीओ के बग़ैर मुझे चैन कहाँ ।
आदरणीय समर कबीर साहब, काफ़ी इंतज़ार के बाद ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई से धन्य हुआ. सादर.
जनाब राज़ साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल जनाब राज़ साहब। मुबारकबाद।
आदरणीय तेज वीर सिंह साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर.
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