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एक ग़ज़ल इस्लाह के लिए मनोज अहसास

एक ताज़ा ग़ज़ल

वो खुद ही मजबूर बहुत हैं उनको हाल बताना क्या
जिनके दिल में प्यार नहीं है उन पर प्यार लुटाना क्या

हम तो तेरे नाम के जोगी अपना यार ठिकाना क्या
बिरहा में जलना है हमको महफिल क्या वीराना क्या

टूट गया है उस से नाता जो दुनिया का मालिक है
अब सारी दुनिया को अपने दिल के जख्म दिखाना क्या

सारे जीवन के पछतावे सांसो को झुलसाते हैं
अपनी किस्मत में लिक्खा है तिल तिल कर मिट जाना क्या

जीवन के विष को पी पीकर टूट गई है सब्र की डोर
अब कोई उम्मीद लगाकर अपना मन बहलाना क्या

जितना खुद को समझाता हूं उतना दिल भर आता है

ऐसी हालत से तो यारों अच्छा है मर जाना क्या

खा खा कर दर दर की ठोकर आखिर क्या हासिल होगा
जब दिल में ही चैन नहीं तो मंदिर क्या मैखाना क्या

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 6, 2018 at 5:13pm

वाह! उम्दा गजल कही आदरणीय मनोज भाई साहब

Comment by मनोज अहसास on December 5, 2018 at 10:41pm

बहुत-बहुत शुक्रिया भाई राहुल जी

Comment by मनोज अहसास on December 5, 2018 at 10:40pm

-बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर साहब 

Comment by मनोज अहसास on December 5, 2018 at 10:39pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कबीर साहब।

सादर

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 5, 2018 at 10:38pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है भाई जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 5, 2018 at 9:05pm

आ. भाई मनोज जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by मनोज अहसास on December 4, 2018 at 1:58pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब

सादर

Comment by Samar kabeer on December 4, 2018 at 11:29am

जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

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