221-1221-1221-122.
तपती जमीं है आज तू छाने के लिए आ ।
ऐ अब्र जरा आग बुझाने के लिए आ ।।
यूँ ही न गुजर जाए कहीं तिश्नगी का दौर ।
तू मैकदे में पीने पिलाने के लिए आ ।।
ये जिंदगी तो हम ने गुज़ारी है खालिस में ।
कुछ दर्द मेरा अब तो बटाने के लिए आ ।।
जब नाज़ से आया है कोई बज़्म में तेरी ।
क़ातिल तू हुनर अपना दिखाने के लिए आ।।
शर्मो हया है तुझ में तो वादा निभा के देख ।
मेरी वफ़ा का कर्ज चुकाने के लिए आ ।।
टूटे न मुहब्बत का भरम इस जहाँ से अब ।
मेरे लिए तू छोड़ , ज़माने के लिए आ ।।
तन्हाइयों में चैन मयस्सर तुझे है कब।
अम्नो सुकूँ से रात बिताने के लिए आ ।।
खो जाए उमीदें न कहीं वस्ल की मेरी ।
सोया है मेरा ख्वाब जगाने के लिए आ ।।
चर्चा में तेरी खूब रही सख़्त हुकूमत ।
अब हुक्म मेरे दिल पे चलाने के लिए आ ।।
इल्जाम लगा बैठे गुनाहों के तरफ़दार ।
गर हो सके तू नाज़ उठाने के लिए आ ।।
आती नहीं है नींद तस्व्वुर की जमीं पर ।
ऐ हुस्न मेरा होश मिटाने के लिए आ ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 बृजेश कुमार ब्रज जी तस्व्वुर की जमी पर
टाइपो पर ध्यान दिलाने के लिए हार्दिक आभार ।
आ वी ऍम वृष्टि जी ग़ज़ल तक आने के लिए सादर आभार और नमन ।
वाह आदरणीय त्रिपाठी जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल..आखरी शेर के उला को लेकर संशय है "तसव्वुर के जमीं पर" या तसव्वुर की जमीं पर"..सादर
आ0 कबीर सर सादर नमन ,
आपकी बात से सहमत हूँ सर ग़ज़ल वाकई जल्दबाजी में ही लिखी गयी है । त्रुटियां सम्भावित थीं सो आपकी निगाह से बचना भी असम्भव था । एक मिसरा तो स्पष्ट तौर से बे बह्र था ।
उसे मैंने ठीक करने का प्रयास भी किया है जो निम्नवत है
ये जिंदगी तो हम ने गुज़ारी है खालिस में ।
जब नाज़ से आया( है ) यहां है टाइप में छूट गया ।
नीचे के दो शेर में एक मात्रा इजाफ़त के तौर पर मिसरे के अंत बढ़ाया गया है । मैंने कहीं पढ़ा था कि यदि मिसरे के अंत में 2 मात्रा है तो 1 मात्रा बढ़ा सकते हैं । इसी ज्ञान के आधार पर एक मात्रा मिसरे के अंत में अधिक लिया गया है ।
यदि इस बह्र में एक मात्रा बढाना वर्जित ही तो बताने की कृपा करें ।
।
सादर नमन ।
शर्मो हया है तुझ में तो वादा निभा के देख
22 1 1 2 2 1 1 22 1 1 2 2 (1)
यूँ ही न गुजर जाये कहीं तिश्नगी का दौर
2 2 1 12 21 12 211 2 2 (1)
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल अभी समय चाहती है,जल्दबाज़ी में कही गई है ।
'यूँ ही न गुजर जाए कहीं तिश्नगी का दौर'
'इतनी खलिश के साथ गुजारी है जिंदगी'
'जब नाज़ से आया कोई बज़्म में तेरी'
'शर्मो हया है तुझ में तो वादा निभा के देख'
इन मिसरों की बह्र चेक करें ।
शानदार रचना
हार्दिक बधाइ आदरणीय नवीन मणि जी।लाज़वाब गज़ल।
यूँ ही न गुजर जाए कहीं तिश्नगी का दौर ।
तू मैकदे में पीने पिलाने के लिए आ ।।
इतनी खलिश के साथ गुजारी है जिंदगी ।
कुछ दर्द मेरा अब तो बटाने के लिए आ ।।
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