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एक लम्हा ....

एक लम्हा ....

मेरे लिबास पर लगा
सुर्ख़ निशान 

अपनी आतिश से
तारीक में बीते
लम्हों की गरमी को
ज़िंदा रखे था

मैंने


उस निशाँन को
मिटाने की
कोशिश भी नहीं की


जाने
वो कौन सा यकीन था
जो हदों को तोड़ गया
जाने कब
मैं किसी में
और कोई मुझमें
मेरा बनकर
सदियों के लिए
मेरा हो गया

एक लम्हा
रूह बनकर
रूह में कहीं
सो गया

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on July 21, 2018 at 6:13pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब सर सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का एवं सुझाव का दिल से आभार। मैं इसे अभी एडिट करता हूँ। हार्दिक हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on July 21, 2018 at 6:13pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन पर आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on July 21, 2018 at 6:11pm

आदरणीय तेज तेज वीर सिंह जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on July 21, 2018 at 6:10pm

आदरणीय बसंत कुमार जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on July 21, 2018 at 6:10pm

आदरणीय नरेंद्र चौहान जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on July 21, 2018 at 6:10pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब आदाब , सृजन आपकी आत्मीय काव्यात्मक प्रशंसा का दिल की असीम गहराईयों से हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on July 19, 2018 at 10:08pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'तारीक में बीते'--

इस पंक्ति को यूँ कर लें'-

"तारीकी में बीते"

'उस निशाँन को' 

'निशान' शब्द को "निशाँ" भी लिख सकते हैं,लेकिन चन्द्रबिन्दु के साथ 'न' नहीं लिख सकते,अब आप ख़ुद फैसल करें कि 'निशाँ' लिखना चाहते हैं या "निशान"?

Comment by Neelam Upadhyaya on July 19, 2018 at 4:29pm

आदरणीय सुशील सरना जी, अच्छी रचना की प्रस्तुति के लिए बधाई। 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 18, 2018 at 9:47pm

जनाब सुशील सरना साहिब, अच्छी रचना हुई है , मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l

Comment by TEJ VEER SINGH on July 18, 2018 at 7:34pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।बढ़िया प्रस्तुति।

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