For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

न कर जिक्र

जब तक है जान

काहे की फिक्र

 

मन अंतस

जजवातों से भरा

पर अकेला

 

धरते धीर

शिखर पहुँचते

बैसाखी पर

  

क्या पा लिया था

ये तब जाना, जब

उसे खो दिया

खुशी ही नहीं

तल्खियाँ भी देती हैं

तनहाईयाँ

 

… मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 771

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neelam Upadhyaya on July 19, 2018 at 4:00pm

आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी, बहुत बहुत आभार। 

Comment by Neelam Upadhyaya on July 19, 2018 at 3:59pm

आदरणीय  ब्रजेश कुमार जी, बहुत बहुत आभार। 

Comment by narendrasinh chauhan on July 16, 2018 at 6:12pm

सुन्दर रचना 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 13, 2018 at 5:51pm

वाह भाव भरे हाइकू आदरणीया..बधाई

Comment by Neelam Upadhyaya on July 13, 2018 at 3:59pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, रचना को समय  देने के लिए बहुत बहुत आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2018 at 6:44pm

बहुत अच्छे  हाइकु आद० नीलम जी वर्तनी की तरफ इशारा हो ही चुका है थोड़े से फेर बदल से बहरीन हो जाएंगे .हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Neelam Upadhyaya on July 12, 2018 at 3:38pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, विजय निकोरे जी, गलतियों को नज़र अंदाज करके भी रचना की तारीफ कर मनोबल बढ़ाने  के लिए बहुत बहुत आभार।

सभी गुणी  जनो  से आग्रह है कि  आप अवश्य ही गलतियों को इंगित किया करें।   

Comment by Neelam Upadhyaya on July 12, 2018 at 3:31pm

मन अंतस

जज़्बातों   से भरा

पर अकेला


खुशी ही नहीं

तल्ख़ियाँ  भी देती हैं

तन्हाईयाँ

आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, वर्तनी सम्बन्धी गलतियों को इंगित करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद तथा उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत आभार ।  मैंने कोशिश किया मुख्य रचना में सुधार के लिए लेकिन नहीं हो पाया ।  अब यहीं पोस्ट किया है।  दर असल तीन दिनों से पावर सप्लाई ने बहुत तंग किया है।  पोस्ट करते समय भी नेट ने बड़ा तंग किया।  कॉपी पेस्ट में जो लिखा वो कंप्यूटर महाराज ने अपने हिसाब से वर्तनी कर लिख दिया।  यहाँ तक तो ठीक है अपनी प्रकाशित रचना भी आज ही  देख पायी हूँ।  कल प्रयास कर के भी  लॉग इन नहीं कर पायी। 

Comment by Neelam Upadhyaya on July 12, 2018 at 3:18pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब, उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत आभार। 

Comment by Neelam Upadhyaya on July 12, 2018 at 3:17pm

आदरणीय समर कबीर जी, उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत आभार। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
4 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। सुधीजनो के बेहतरीन सुझाव से गजल बहुत निखर…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाइये।"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जा रहे हो छोड़ कर जो मेरा क्या रह जाएगा  बिन तुम्हारे ये मेरा घर मक़बरा रह जाएगा …"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service