पार्क की ओर जाते हुए उन दोनों बुज़ुर्ग दोस्तों के दरमियाँ चल रही बातचीत और उनके हाथों में लहरा सी रही लाठियां नये दिवस की भोर के पूर्व, उनके अनुभव की लाठियां साबित हो रहीं थीं।
"... 'सही नीयत और सही तरक़्क़ी'! यह दावा करते हैं आजकल के दोगले नेता अपने मुल्क की ज़मीनी हक़ीक़त को नज़रअंदाज़ करते हुए!" उनमें से एक ने कुछ झुंझलाते हुए कहा।
"... 'शाही नीयत और शाही तरक़्क़ी' है दरअसल! हम तो यही कहते हैं, यही देखते हैं हर तरफ़ और यही तो सुनते हैं!" दूसरे साथी बुज़ुर्ग ने व्यंग्यात्मक लहज़े में कहते हुए अपनी लाठी पार्क की नज़दीक़ी बस्तियों की ओर घुमाते हुए कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
टिप्पणियों के लिए पुनः हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
शंका निवारण हेतु बहुत-बहुत आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. सादर.
"लहराती सी लाठियां" से दरअसल यहाँ ' झूमती लाठियां' है। प्रायः हाथों में ली इन लाठियों का जानवर भगाने के अलावा कोई उपयोग नहीं होता, केवल हाथों मेंं 'झूमती सी' रहती हैं। बहुआयामी मतलब देने हेतु ऐसा शीर्षक दिया था। सुझाव हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
मेरी इस रचना के अवलोकन, अनुमोदन और प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद और आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी और आदरणीया बबीता गुप्ता जी।
सही कहा आपने, मुँह पर "सही नीयत और सही तरक़्क़ी" और दिल में "शाही नीयत और शाही तरक़्क़ी". यही है आजकल की राजनीति का चेहरा. इस बढ़िया लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी जी.
1. //लहरा सी रही लाठियां// क्या लाठियां सच में नहीं लहरा रही हैं? यदि 'हाँ' तो कोई कोई बात नहीं, पर यदि 'नहीं' तो इसे "लहराती लाठियां" अथवा "लहरा रही लाठियां" होना चाहिए.
2. शीर्षक पर पुनर्विचार निवेदित है.
सादर.
लघु कथा का माध्यम से लाठी के दबदबे का सही कटाक्ष किया हैं,प्रस्तुत रचना पर बधाई .
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