For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

**प्रतिबिंब** (लघुकथा)राहिला

" पापा कह रहे थे कि आपने अपना व्यवसाय जमाने के चक्कर में अब तक शादी नहीं की , यही कारण रहा था या और कुछ ?" उस एकांत मुलाकात में मोना ने रवि से पूछा। " आपके मन में ये सवाल आया , मतलब आपको लगता है कि कोई और भी कारण हो सकता है ?" "जी... , बस ऐसे ही शंका हुई ।" उसके प्रतिप्रश्न पर वह तनिक सकपका गयी। "हम्म..., मुझे भी माँ ने ऐसा ही कुछ आपके बारे में बताया था।" "क्या...?" "यही कि आपने भी अपने कैरियर को सँवारने के लिए काफी अच्छे- अच्छे रिश्ते ठुकराये हैं? कारण यही था, या कुछ और? " प्रतिध्वनि के समान प्रश्न सुनकर मध्यवयी मोना मुस्कुराए बगैर ना रह सकी। "यदि मैं कहूँ कुछ और बात है तो? " कहते हुए वह काफी असहज हो गई। "तो मैं भी कुछ ऐसा ही कहूँगा। लेकिन आपसे एक वादा चाहता हूँ , जो भी बताऊंगा प्लीज़... उसे आप अपने तक रखेंगी।" "ऐसा क्या है...? बरहाल वादा करती हूँ किसी को ना कहूँगी।" " जानता हूँ इस बार भी अपने माँ-बाप को मायूस करूँगा। लेकिन इसके लिए मैं किसी लड़की का जीवन बरबाद तो नहीं कर सकता ना...!" इस दुर्बोध से कथ्य ने मोना को असमंजस में डाल दिया। "कोई अफेयर...?" "जी ऐसा ही समझ लीजिए...!" "तो प्रॉब्लम कहाँ है?" "कोई एक्सेप्ट नहीं कर करेगा । ना माँ - बाप, ना समाज।" "इसका मतलब आप जातपात में उलझे हैं ?" "नहीं...!" "फिर ?" "वह .., वह मेरे ऑफिस का एक सहकर्मी है। अमित!" उसने नजरें चुराते हुए हकला कर कहा। "क्या..., क्या मतलब...? मतलब आप!!!" उसने खुदबखुद अपने ही सवाल का जबाब दे डाला। " जब तक ये बात छुपी है जी पा रहा हूँ , वरना कौन जीने देगा ? ऐसे में मैं शादी कर लूँ , तो मेरा अपराध क्षम्य होगा.. ? कौन लड़की ऐसे आदमी को बर्दाश्त करेगी , बताईये ?" ये सब सुनकर मोना भौंचक्की सी उसे देखती रह गयी ।ततपश्चात घुटे हुए शब्दों में बोली- "समझ सकती हूँ..., लेकिन यदि कोई लड़की ये सब बर्दाश्त कर ले तो ...? तो क्या आप ऐसी ही किसी लड़की को बर्दाश्त कर पाएंगे ? " सिर झुकाकर कहे इस कथन पर कमरे में सन्नाटा पसर गया। थोड़ी देर की गहन चुप्पी के बाद रवि ने आगे बढ़कर उसका का हाथ थाम लिया। और दोनों की आँखे विधि के इस कठोर परिहास को करारा जबाब देते हुए मुस्कुरा उठीं। मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 500

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 10, 2018 at 7:57pm

एक बोल्ड विषय पर बढ़िया लघु कथा हुई प्रिय राहिला जी बहुत बहुत बधाई 

Comment by Neelam Upadhyaya on May 10, 2018 at 2:12pm

आदरणीया राहिला जी, नमस्कार । अच्छी लघुकथा हुई है । बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 8:44pm

मुहतरमा राहिला साहिबा ,उम्दा लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 3:07pm

मोहतरमा राहिला जी आदाब,अच्छी प्रस्तुति,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
8 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
11 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service