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फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन/फ़इलुन

इसलिये आने से कतराते हैं ईमाँ वाले

तेरे कूचे में उधम करते हैं शैताँ वाले

.

ये किसी ख़तरे की आमद का इशारा तो नहीं

ख़्वाब क्यों मुझको दिखाता है वो तूफ़ाँ वाले

.

और सब कुछ यहाँ तब्दील हुआ है लेकिन

घर में दस्तूर हैं अब तक वही अम्माँ वाले

.

बाग़बाँ ने वो सितम तोड़े हैं इनपर देखो

कितने सहमे हुए रहते हैं गुलिस्ताँ वाले

.

रह्म करना किसी बिस्मिल पे गवारा ही नहीं

कितने सफ़्फ़ाक हैं देखो ये परिस्ताँ वाले

.

काँप जाता है ये दिल,रूह लरज़ जाती है

याद आते हैं सफ़र जब वो बयाबाँ वाले

.

मेरे जज़्बात वही शख़्स समझ सकता है

जिसने अफ़साने सुने होंगे दिल-ओ-जाँ वाले

.

याद जब घर की सताए तो,रिहाई के लिये

आसमाँ सर पे उठा लेते हैं ज़िनदाँ वाले

.

अपने मज़हब की किताबों से गुरेज़ां हैं सब

गीता वाले हों "समर"या कि हों क़ुरआँ वाले

------

आमद-आना

बिस्मिल-ज़ख़्मी

जिन्दां-;क़ैद ख़ाना

गुरेज़ां-भागने वाले

"समर कबीर"

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on April 7, 2018 at 11:24am
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । सादर
Comment by Mohammed Arif on April 7, 2018 at 8:06am

इसलिये बच के निकल जाते हैं ईमाँ वाले

तेरे कूचे में उधम करते हैं शैताँ वाले वाह! वाह!! बहुत ख़ूब ! 

                इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on April 7, 2018 at 4:47am
आदर्णीय समर कबीर साहब खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई। याद आते हैं सफर जब वो बयबां वाले। क्या कहने। पुन:मुबारकबाद कुबूल फरमायें
Comment by TEJ VEER SINGH on April 6, 2018 at 10:05pm

हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब । लाज़वाब गज़ल।

बाग़बाँ ने वो सितम तोड़े हैं इनपर देखो

कितने सहमे हुए रहते हैं गुलिस्ताँ वाले

Comment by Harash Mahajan on April 6, 2018 at 9:45pm

आदरनीय समर जी एक बेहतरीन पेशकश सर ।

"याद जब.......ज़िनदाँ वाले"

खूब सर ।

सादर

Comment by Sushil Sarna on April 6, 2018 at 9:14pm

बाग़बाँ ने वो सितम तोड़े हैं इनपर देखो

कितने सहमे हुए रहते हैं गुलिस्ताँ वाले
बहुत सुंदर आदरणीय समर कबीर साहिब .... इन खूबसूरत अहसासों की ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाने सर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2018 at 9:00pm

वाह वाह वा..आ. समर सर 
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है ... अम्माँ वाले शेर का जवाब तो  मुन्नवर राणा के पास भी नहीं होगा ..
जब आपने फोन पर ग़ज़ल सुनाई थी तो मैं शायद चूक गया लेकिन पढ़ कर मतले में एक नया एंगल देख रहा हूँ ..मानों शैताँ वालों के उधम के कारण ईमाँ वाले बच जाते हैं . बच के की जगह कतरा के होगा तो और खुल जायेगी बात...वैसे उधम शब्द बहुत ख़ूब लाये हैं आप ...
ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 
सादर 

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