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गजल#(आज के दिन पर)

22  22  22  22
मूर्खों का सम्मेलन हो फिर,
बीतीं बातें,चिंतन हो फिर।1

उम्र हुई तो क्या होता है
सुन्नत,चाहे मुंडन हो फिर।2

अपने तर्क उठाते रहिये
औरों का बस खंडन हो फिर।3

जात-धरम अवसाद हुए कब?
मुँहदेखी हो,मंडन हो फिर।4

भाषा,भनिति अबला जैसी
नाच नचा लें,ठन-ठन हो फिर।5

पीठ नहीं पूजी जाये तो
चलते-फिरते अनबन हो फिर।6

पढ़ने से परहेज भला है
मतलब कुछ हो, लेखन हो फिर।7

नंग-धड़ंग चुहलबाजी हो,
अपनी दुनिया लंदन हो फिर।8

हो लें आज पुरस्कारी तो
वाणी अपनी खन खन हो फिर।9
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by vijay nikore on April 4, 2018 at 9:41am

गज़ल अच्छी लगी। हार्दिक बधाई।

Comment by Mohammed Arif on April 2, 2018 at 7:28pm

आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,

                          शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Manan Kumar singh on April 2, 2018 at 4:47pm

आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर जी,नमन।

Comment by Samar kabeer on April 2, 2018 at 3:47pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

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