For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जाने कब के बिखर गये होते....

= ग़ज़ल =
जाने कब के बिखर गये होते.
ग़म न होता,तो मर गये होते.


काश अपने शहर में गर होते,
दिन ढले हम भी घर गये होते.


इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -
सारे नासूर भर गये होते.


दूरियाँ उनसे जो रक्खी होतीं,
क्यूँ अबस बालो-पर गये होते.


ग़र्क़ अपनी ख़ुदी ने हमको किया,
पार वरना उतर गये होते.


कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते.


बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना
ख़्वाब बनकर बिखर गये होते.


हम भी "साबिर" के साथ, रात कभी-
ख़्वाहिशों के नगर गये होते.

Views: 434

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vipul Kumar on June 25, 2012 at 9:57pm

कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते.

waah mere mohtaram kya sh'er kaha hai. bahut hi khoob....... maza aa gaya.

baaqi ash'ar bhi behad umda kahe haiN.

bas

बाँध रक्खा हमें तुमने, वरना" ye misra kharij az bahr hai. dekh leN.

 aur "रक्खी" Galati se type ho gaya hai. wahaN "rakhi" hona chahiye.

 

allah kare zor-e-qalam aur zyada.......

 

Comment by fauzan on September 7, 2011 at 3:40pm

जाने कब के बिखर गये होते.
ग़म न होता,तो मर गये होते.............lajawab matla kaha hai aapne......zindabad 

 इक ख़लिश उम्र भर रही, वर्ना -
सारे नासूर भर गये होते...............zabardast................

 

Comment by डॉ. नमन दत्त on July 12, 2011 at 5:53pm
शुक्रिया शशि जी....आपकी मित्रता से हमें भी प्रसन्नता हुई....
Comment by Shashi Mehra on July 12, 2011 at 10:11am
नमन जी नमन काबुल करें, ओ बी ओ पर आप के बारे में जान कर ख़ुशी हुई |
आप०के ब्लाग पर आपकी गजल पड़ी, पसंद आई, दाद व् दोस्ती काबुल करें |
मायूस नहीं होंगें |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 19, 2011 at 8:19pm

कुछ तो होना था इश्क़बाज़ी में,
दिल न जाते, तो सर गये होते

 

बहुत खूब सर , सभी शे'र उम्द्दा है , खुबसूरत ग़ज़ल पर दाद कुबूल करे |

आपकी और भी रचना तथा अन्य साथियों की रचनाओं पर आपके विचारों का इन्तजार रहेगा |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
12 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
13 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
18 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service