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फटी आंखें (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"तुम अपने काम संभालो! अपने काम निपटा कर मैं आता हूं।" रोज़ाना की तरह आज भी वह शायद वहीं गया था, जहां शंका थी। लक्ष्मी उसकी राह देख रही थी। कितना हंसमुख, सुंदर, ख़ुशमिज़ाज और हृष्ट-पुष्ट भाई है उसका। हम ग़रीबों के पास ये ही तो प्रभु के उपहार हैं। लेकिन रईस हमारी इन नियामतों पर भी डाका डाल देते हैं। लक्ष्मी बड़े भाई के बारे में सोच-सोच कर परेशान हो रही थी।

"भैया, मैं भी अब जवान हो रही हूं। मां-बाप की मज़बूरियां तो समझती हूं, लेकिन कम से कम तुम तो मेरे बारे में सोचो! उस रईस मेम साहब के चक्कर में तुम मेरे लिए भी कोई मुसीबत खड़ी न कर दो!'- वह भाई से केवल इतना ही तो बोल पाई थी।

"पैसों के इंतज़ाम के लिए मैं क्या करता हूं, तुम्हें कुछ पूछने और कहने की ज़रूरत नहीं! पढ़ाई मेरे बस की बात नहीं! तू पढ़ ले, जितना पढ़ सके!" भाई के इस तरह के जवाबों से समस्याओं का कोई हल नहीं निकलने वाला था। लक्ष्मी जानती थी कि उसके भाई के तन-मन और स्वभाव का शोषण किया जा रहा है और उसकी भी बारी आ सकती है।

"चल लक्ष्मी, ये कपड़े और धोले, मैं जा रही हूं काम पर! देर हुई, तो साहब, मेम-साहब दोनों डांट-डपट करेंगे!" इतना कहकर मां भी काम पर चली गई। शून्य में घूरती लक्ष्मी की फटी आंखों में सवाल, कुछ दृश्य और कुछ संकल्प सब एक साथ तैर रहे थे।
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2017 at 4:27pm
मेरी इस रचना पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफज़ाई के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय अर्चना गंगवार जी व आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2017 at 4:26pm
रचना पर समय देकर अपनी राय से अवगत कराने के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी। कृपया अपने सुझाव से मार्गदर्शन भी प्रदान कीजिए।
Comment by Mahendra Kumar on October 6, 2017 at 9:08pm

बढ़िया लघुकथा है आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.

Comment by Archana Gangwar on October 3, 2017 at 7:06am

बहुत खूब ......कम शब्दों में पूरी बात 

Comment by नाथ सोनांचली on October 2, 2017 at 4:50am
आद0 शेख उस्मानी जी सादर अभिवादन, यह लघुकथा मुझे कुछ क्षण के लिए उलझा कर रख दी, बहरहाल इस उम्दा लघुकथा के लिए बधाई। सादर
Comment by नाथ सोनांचली on October 2, 2017 at 4:49am
आद0 शेख उस्मानी जी सादर अभिवादन, यह लघुकथा मुझे कुछ क्षण के लिए उलझा कर रख दी, बहरहाल इस उम्दा लघुकथा के लिए बधाई। सादर

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