बह्र : 2122-1122-1122-112/22
फिर मुहब्बत से लिया नाम तुम्हारा उसने
वार मुझ पर है किया कितना करारा उसने
मेरी कश्ती को समन्दर में उतारा उसने
और फिर कर दिया तूफ़ाँ को इशारा उसने
डूबते वक़्त दी आवाज़ बहुत मैंने मगर
बैठ कर दूर से देखा था नज़ारा उसने
आप कहते थे इसे बख़्श दो, देखो ख़ुद ही
मुझ में ख़ंजर ये उतारा है दुबारा उसने
ग़ैर भी कोई गुज़ारे न किसी ग़ैर के साथ
वक़्त कुछ ऐसा मेरे साथ गुज़ारा उसने
मेरी तस्वीर पे तस्वीर बना कर ख़ुद की
अक्स अपना मेरे अन्दर से उभारा उसने
दाँव पर ख़ुद को लगा बैठा मुहब्बत में वो
अब तलक जो भी था जीता हुआ हारा उसने
आप के कहने पे बख़्शा था उसे, लो देखो
मुझ में ख़ंजर ये उतारा है दुबारा उसने
जला कर राख़ मैं कर दूँगा क़सम से ख़ुद को
मेरे अन्दर से जो अब मुझको पुकारा उसने
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय महेंद्र कुमार जी अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मा. निलेश भाई की इस्लाह से और निखर गई है मेरी तरफ से सादर बधाई
ऐसा कह के आपने शर्मिंदा कर दिया सर. खैर, यदि कोई गलती हो गयी हो तो उसे क्षमा कीजिएगा. सादर.
आ. निलेश सर, अपना कीमती वक़्त दे कर मेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ. मूल बात फ्लो अथवा रवानी की ही है. अभी मैं एकदम नया हूँ इसलिए इतनी बारीक़ बातें नहीं समझ पाता. आपके सुझाव अनुसार मैंने आख़िरी शेर के ऊला मिसरे को इस तरह कहने की कोशिश की है : "जला कर राख़ मैं कर दूँगा क़सम से ख़ुद को". शायद अब ठीक हो. देख लीजिएगा. एक बार ग़ज़ल में पुनः आपकी उपस्थति के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
आ. समर सर, "बख़्श" शब्द पर मैंने भी सोचा था पर मुझे लगता है कि जो बात "मुआफ़" शब्द में है वो इस "बख़्श" शब्द में नहीं है. सानी मिसरे और इस ग़ज़ल के मिज़ाज को देखते हुए मैं इस शब्द को लेकर असमंजस में हूँ हालाँकि काफी हद तक वही भाव आ रहे हैं. फिर भी, मैं यह आपके ऊपर छोड़ता हूँ कि इस शेर में कौन सा ऊला मिसरा रखा जाए :
1. आप कहते थे इसे बख़्श दो, देखो ख़ुद ही
2. आप के कहने पे बख़्शा था उसे, लो देखो
3. बात इक बार की होती तो न होता कुछ भी
आपके कीमती सुझाव और ग़ज़ल पर पुनः समय देने के लिए हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद सर. सादर.
ग़ज़ल को पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ आ. गिरिराज सर. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
ग़ज़ल पर उपस्थति हो कर उसका मान बढ़ाने और मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ आ. रवि सर. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
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