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नफरत कहाँ कहाँ है मुहब्बत कहाँ कहाँ
मैं जानता हूँ होगी बग़ावत कहाँ कहाँ
गर है यक़ीं तो बात मेरी सुन के मान लें
लिखता रहूँगा मैं ये इबारत कहाँ कहाँ
धो लीजिये न शक़्ल मुआफ़ी के आब से
मुँह को छिपाये घूमेंगे हज़रत कहाँ कहाँ
कल रेगज़ार आशियाँ, अब दश्त में क़याम
ले जायेगी मुझे मेरी फित्रत कहाँ कहाँ
कर दफ़्न आ गया हूँ शराफत मैं आज ही
सहता मैं शराफत की नदामत कहाँ कहाँ
दानिशवराने कौम की बातें न पूछिये
जुल्मत कदे में ढूँढे हैं जुल्मत कहाँ कहाँ
आखें खुली जो रखते कभी पूछते नहीं
''ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ "
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आभार ।
आदरणीय नीरज भाई , गज़ल पर शिर्कत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरणीय सुशील भाई , ग़ज़ल की मुखर सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
आदरणीय राज भाई , आपकी सराहना के गज़ल कहना सार्थक कर दिया , आपका हृदय से आभार ।
आदरनीय मोहित भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका आभार ।
आदरणीय गिरिराज जी,
बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद.
सादर
नफरत कहाँ कहाँ है मुहब्बत कहाँ कहाँ
मैं जानता हूँ होगी बग़ावत कहाँ कहाँ
गर है यक़ीं तो बात मेरी सुन के मान लें
लिखता रहूँगा मैं ये इबारत कहाँ कहाँ
लाज़वाब ग़ज़ल के लाज़वाब अहसास ... क्या बात है आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब ... नज़र न लगे आपकी कलम को .. हार्दिक बधाई सर
वाह वाह भाई जी, बहुत खूब, मुबारक. क्या कहने:
धो लीजिये न शक़्ल मुआफ़ी के आब से
मुँह को छिपाये घूमेंगे हज़रत कहाँ कहाँ
कल रेगज़ार आशियाँ, अब दश्त में क़याम
ले जायेगी मुझे मेरी फित्रत कहाँ कहाँ
सादर
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