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अंधी जनता, राजा काना बढ़िया है ...गज़ल

22-22-22-22-22-2

नये दौर का नया ज़माना, बढ़िया है
अंधी जनता, राजा काना, बढ़िया है

अब तो है यह उन्नति की नव परिभाषा,
जंगल काटो, पेड़ लगाना, बढ़िया है

अपना राग अलापो अपनी सत्ता है,
अपने मुंह मिट्ठू बन जाना, बढ़िया है

नई सियासत में तबदीली आई है,
आग लगा कर आग बुझाना, बढ़िया है

हत्या करना बीते युग की बात हुई,
अब दुश्मन की साख मिटाना, बढ़िया है

अगर कोख में बिटिया अब तक जिंदा है,
खूब पढ़ाना, ख़ूब बढ़ाना, बढ़िया है

नहीं ज़ियादा की हमको दरकार सुनो,
रोज उड़ाना, रोज़ कमाना, बढ़िया है

सारी बस्ती जल जाए तो जल जाए,
अपना छप्पर आप बचाना,बढ़िया है

~ बलराम धाकड़
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 18, 2017 at 9:29pm

हार्दिक बधाई आदरणीय बलराम जी |

Comment by Ajay Tiwari on October 18, 2017 at 7:00am

आदरणीय बलराम जी,

अच्छी व्यंगात्मक ग़ज़ल हुई है. शुभकामनायें.

सादर 

Comment by indravidyavachaspatitiwari on October 6, 2017 at 6:33pm

आपकी गजल बढिया है आपका गाना बढिया धाकड़ साहब हमने भई आपको माफ करना देर से जाना!बढिया है।

Comment by Mohammed Arif on September 19, 2017 at 9:19am
आदरणीय बलराम धाकड़ जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल , अच्छे अश'आर । गुणीजन अपनी राय दे चुके हैं । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 18, 2017 at 7:00pm

BEHATREEN TANZ BANDHUWAR - BADHAEE KE PATRA HO AP

Comment by PHOOL SINGH on August 31, 2017 at 4:08pm

बेहतरीन रचना

Comment by कंवर करतार on August 25, 2017 at 10:43pm

धाकड़ भाई ,देर से रूवरू हुआ आपकी ग़ज़ल से I  बहुत खूब Iमेरी एक  जिज्ञासा  है कृपया मतले के उला का  (नये दौर का नया ज़माना, बढ़िया है)तथा  ' कोख में बिटिया अब तक जिंदा है', का तक्तीय कर के बताएं  ताकि मेरे  ज्ञान में वृद्धि हो सके Iसादर आभार I 

Comment by Balram Dhakar on August 23, 2017 at 8:28pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी, हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया। आगे की ग़ज़लों में तकाबुले रदीफ़ का ध्यान रखने का प्रयास रहेगा। 6ठे ओर सातवें शैर में आपके सुझाये विकल्पों को यथावत ले रहा हूँ।
सादर धन्यवाद।
Comment by Ravi Shukla on August 22, 2017 at 5:00pm

आदरणीय बलराम जी आपकी किसी पहली गजल से दो चार हो रहे है बहुत बहुत मुबारकबाद इस गजल के लिये कुबूल करें

विद्वत जन इस पर अपनी राय दे ही चुके है । दूसरे तीसरे और चौथे में तकाबुले रदीफ भी हो रहा है

2 सरे शेर में   नई नई ये उन्नति की परिभाषा है

6 ठे शेर में     अगर कोख में बिटिया अब तक जिंदा है ( आपके शब्‍दों को दूसरे विकल्‍प के अनुसार )

7 वें शेर मे     नहीं जियादा की हमको दरकार सुनो ( अपिरग्रह की मूल भावना को लते हुए )  त्‍वरित सुझाव के रूप में विचार कर सकते है ।

पुन: बधाई स्‍वीकार करें आदरणीय बलरामजी ।सादर

Comment by Balram Dhakar on August 22, 2017 at 3:44pm
जनाब समर कबीर साहब, आदाब। आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया। ये पहला ही प्रयास था ओ बी ओ पर। ग़ज़ल में आप जैसे बड़े उस्ताद की शिरक़त से खुद को खुशनसीब समझता हूँ। दूसरे, 6वें और 7वें शेर को फिर से कहने का प्रयास करूंगा।
एक बार फ़िर, बहुत बहुत शुक्रिया आपका।

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