‘कहो बिरजू कैसे आये ? वह भी सवेरे-सवेरे’
बिरजू रैदास हमारे यहाँ हलवाही का कार्य करते थे. खेती के नए उपकरण आ जाने और उम बढ़ जाने से उन्होंने अब यह कार्य छोड़ दिया था.
‘मलकिन, बिटिया की शादी तय कर दी है. अब आप से कुछ मदद होइ जाय ?’
‘अच्छा तो दिविया इतनी बड़ी हो गयी , जरूर-जरूर हमारी भी तो बेटी ही है’ –मैंने सकुचाते हुए उसे तीस ह्जार का चेक दिया.
‘जुग-जुग जियो मलकिन. बिटिया तरक्की करे‘ -वह आशीर्वाद देकर चला गया . तभी मुझे याद आया- आज बेटी की फीस भी भरनी है . यानि कि मुझे एटीएम जाकर पैसा निकालना होगा . मैंने घर के जरूरी काम निपटाए और एटीएम की और प्रस्थान किया .
राह में एक दरगाह थी . वह फ़कीर अलमशाह का अड्डा था . फ़कीर कुछ माँगता न था पर हर आने-जाने वाले के सामने अपना कसोरा बढ़ा देता था . शायद पड़ोस की विधवा समझकर उसने अपना कसोरा कभी मेरे आगे नहीं फैलाया . एटीएम पहुंच कर जब मैंने पैसे निकालने चाहे तो नो बैलेंस का सन्देश आया. मैंने फिर कोशिश की पर वही मैसेज . मैं हैरान . निदान मुझे बैंक जाना पड़ा . वहां पता चला कि मेरे अकाउंट से सारे पैसे निकल चुके हैं . मैं मेनेजर से मिली. उसने मेंरी कहानी सुनकर कहा –‘मैडम लगता है आपका अकाउंट हैक हो गया है. पर बैंक इसमें आपकी कोई मदद नही कर सकता .’
मेरे पांव के नीचे से जमीन खिसक गयी, अकाउंट में तीस लाख की रकम जमा थी. कोई राहत या सांत्वना न पाकर मुझे घर लौटने को मजबूर होना पड़ा. उस दिन दरगाह पर फ़कीर ने भी अपना कसोरा मेरे आगे कर दिया. मैंने गुस्से में अपना सारा पर्स वही उलट दिया. मेरे इस अप्रत्याशित तेवर पर फ़कीर हक्का-बक्का रह गया. घर पहुँची तो बेटी स्कूल से असमय वापस आ गयी थी –‘माँ आज क्लास में बैठने नही दिया, सब लडकियां फीस लेकर गयी थी ‘
मेरी आँखों में आंसू आ गए. इसी समय हताश –निराश बिरजू भी आ गया , वह क्षोभ भरे स्वर में बोला – ‘मलकिन हम गरीबन से अस मजाक ठीक नाहीं. ‘
बिरजू चेक मेरे मुंह पर फेंक कर चला गया .
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,
लघु कथा बहुत मार्मिक है | शीर्षक के साथ न्याय हुआ है | बधाई स्वीकार करें |
आ० समर कबीर साहिब ------------आपने कहा कथा में कसावट की कमी है .कसावट की कंमी तब होती है जब अनावश्यक विस्तार हो , फालतू के शब्द हों , अनावश्यक प्रसंग हो -----------आप अग्रज है मैं स्वीकार कर लेता हूँ
अकाउंट हैक कैसे हो गया?------- मान्यवर यह मेरी कल्पना नहीं है . यह एक अनैतिक व्यवसाय के रूप में फ़ैल रहा है - कथा तो सावधान करने के लिए ही रची गयी है
.फ़क़ीर विधवा जान कर उसके आगे कासा नहीं बढ़ाता था,फिर उसी समय क्यों बढ़ाया ?------------यह प्रसंग ही तो नियति की बिडम्बना दर्शाता है . जिसका सब कुछ लुट गया हो वह क्षोभ मे ऐसी ही प्रतिक्रिया करेगा . कथाएँ तो अबूझ प्रश्नों के लिए ही जानी पहचानी जाती है . प्रेमचंद ने जब जब समस्या का समाधान किया आलोचना के शिकार बने रहे . गोदान में उन्होंने केवल समस्या उठायी समाधान नहीं किया और गोदान सुपर हिट हो गयी .
आपने कथा को समय दिया इसका शुक्र गुजार हूँ . आपकी प्रतिक्रिया से ही विचार साझा करने का मन हुआ वरना तो बस आभार ही प्रदर्शित करते हैं . सादर .
आ० रवि जी आपकी जिज्ञासा का समाधान करना चाहूँगा-
तथ्यों की कमजोरी के कारण लघुकथा बहुत कमजोर बनी है---- आपकी भावनाओं को सलाम
तीस लाख जैसी रकम हैक होना उचित नहीं लग रहा ।- आप हैकिंग व्यवसाय की भयावहता को नजरंदाज न करे जिसने लाखों लोगों को तबाह किया है . यह रकम तो फिर भी बहुत थोड़ी है
मैंने सकुचाते हुए उसे तीस ह्जार का चेक दिया-------जाहिर है सकुचाते शब्द मैंने जानबूझकर डाला है . यह चरित्र की अपनी संवेदना है पाठक इस पर क्या सोचते है वह उनकी अपनी शख्सियत है ------उम्र के स्थान पर उम छप जाना टंकण त्रुटि है यह भी जाहिर है .-----------------आदरणीय आप रचना पर आये आपका बहुत-बहुत शुक्रिया . सस्नेह .
आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास किया है परन्तु तथ्यों की कमजोरी के कारण लघुकथा बहुत कमजोर बनी है । तीस लाख जैसी रकम हैक होना उचित नहीं लग रहा । आजकल तो किसी भी ट्रांजैक्शन की सूचना मोबाइल पर एसएमएस दव्ारा खाताधारक तक पहुँच जाती है और तीस लाख जैसी मोटी रकम के बारे खाताधारक को कुछ पता न चला हो ये सही नहीं लगता । / अच्छा तो दिविया इतनी बड़ी हो गयी , जरूर-जरूर हमारी भी तो बेटी ही है’ –मैंने सकुचाते हुए उसे तीस ह्जार का चेक दिया/ यहां सकुचाते हुए शब्द मेरी समझ में नहीं आया । तीस हजार की मदद देने वाला सकुचा क्यों रहा है? / खेती के नए उपकरण आ जाने और उम बढ़ जाने से / यहां उम के स्थान पर उम्र शब्द होना चाहिए था । फकीर के संदर्भ में मैं आदरणीय समर कबीर जी की टिप्पणी से सहमत हूं । वैसे लघुकथा अपने शीर्षक को सार्थक कर रही है । सादर
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