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रिम झिम रिम झिम बारिश होने लगती है

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़

यारों में जब रंजिश होने लगती है
चुपके चुपके साज़िश होने लगती है

आँखों में जब सोज़िश होने लगती है
रिम झिम रिम झिम बारिश होने लगती है

बाबू जी का साया सर से उठते ही
धरती की पैमाइश होने लगती है

तुम जब मेरे साथ नहीं होते जानाँ
मुझ पर ग़म की यूरिश होने लगती है

मुझसे कोई काम अटक जाता है जब
उनको मेरी काविश होने लगती है

जब जब भी मैं नाम तुम्हारा लिखता हूँ
हाथों में क्यूँ लरज़िश होने लगती है

बच्चे ग़ुरबत को क्या समझें उनकी तो
रोज़ नई फ़रमाइश होने लगती है

मुझसे कोई भूल "समर" हो जाये तो
महशर जैसी पुरसिश होने लगती है

---

रंजिश :- दुश्मनी
साज़िश :- षडयंत्र
सोज़िश :- जलन
पैमाइश :- माप (नपती)
यूरिश :- हमला
काविश :- तलाश
लरज़िश :- कम्पन्न
ग़ुरबत :- ग़रीबी
महशर :- महाप्रलय के बाद ईश्वर जिस मैदान में हर इंसान से उसके कर्मों का हिसाब लेगा ।
पुरसिश :- पूछताछ (जवाब तलबी)
___

समर कबीर
मौलिक/ अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on August 5, 2017 at 5:03pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by vijay nikore on August 5, 2017 at 4:15pm

// आँखों में जब सोज़िश होने लगती है
रिम झिम रिम झिम बारिश होने लगती है

बाबू जी का साया सर से उठते ही
धरती की पैमाइश होने लगती है //

आपके हर एक शेर की अपनी ही खूबी है... ७ जुलाई को यह गज़ल पढ़ने के बाद इसके यह २ शेर तो जाने कब-कब खयालों में गूँजते रहे हैं .. कि जैसे आपकी गज़ल म्रेरे खयालों में खुद-ब-खुद पढ़ी जा रही है।

मंच को यह तोफ़ा देने के लिए आपको फिर से बहुत-बहुत बधाई, भाई समर जी।

Comment by Sushil Sarna on August 5, 2017 at 3:00pm

जब जब भी मैं नाम तुम्हारा लिखता हूँ
हाथों में क्यूँ लरज़िश होने लगती है

आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , बहुत दिलकश अशआर लिखे हैं आपने ... नमन आपकी लेखनी को , आपकी कल्पना को ... इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिल से शे'र दर शे'र मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by Samar kabeer on August 5, 2017 at 2:48pm
जनाब रवि शुक्ला जी आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Ravi Shukla on July 17, 2017 at 8:14pm
आदरणीय समर साहब आदाब बह्र मीर पर एक शानदार गजल पेश करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया और मुबारकबाद । हर शेर उम्दा कहा है धरती की पैमाइश..... हकीकत बयान की है आपने मकते का जवाब भी नहीं बहुत शानदार मकता कहा है आपने कुल मिलाकर एक बेहतरीन गजल के लिए दिली मुबारकबाद पेश है ।सादर।
Comment by Samar kabeer on July 12, 2017 at 10:39pm
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2017 at 10:29pm

वाह! वाह!! वाह!!! क्या शानदार ग़ज़ल पढ़ने को मिली है आ. समर सर. मज़ा आ गया. इस ग़ज़ल के कई शेर मुझे मेरे बेहद क़रीब लगे. शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारकबाद पेश है. ईश्वर करे आप यूँ ही लिखते रहें. सादर.

Comment by Samar kabeer on July 10, 2017 at 12:00am
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on July 9, 2017 at 11:59pm
मोहतरमा प्राची सिंह जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on July 9, 2017 at 11:58pm
जनाब विजय निकोर जी आदाब,ग़ज़ल पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर मुग्ध हूँ,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

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