आखिर आज शो का दिन आ ही गया| गाँव की चौपाल पर सुरीली तान छेड़ने वाला रामा बहुत घबराया हुआ था| दोस्त के कहने पर, गायकी के शो में जब चयनित होकर आया तो शहर की चकाचौंध देखता रह गया था| होटल के ए सी रूम में उसकी आवाज़ भी बंद हो गयी|
साथी प्रतियोगियों के लिए अजूबा सा रामा, हीन महसूस करता| बस खुसुर-पुसुर और व्यंगात्मक हँसी| लज्जित, अपमानित होकर मन हीनता के बोध से मुरझा-सा गया| उच्चारण और सुर के लिए जो बातें बताई गईं, समझ से परे थीं| बालों का स्टाइल बनाकर, डिजाइनर कपड़े पहनाए गए| असहज हो बार-बार आईना देखता, सब हँसते, वह झेंप जाता|
इमोशनल ड्रामा करने के लिए भी उसे ही कहा गया| कैसे करेगा? उसका स्वाभिमान गरीबी का प्रदर्शन करने को तैयार नहीं था|
नाम पुकारा गया, रामा घबरा गया| ढाक-ढाक-ढाक...धड़कनों की चोट सी पड़ रही थी| देह पसीने-पसीने थी| उसने निर्णय लिया| आँसुओं से भीगा चेहरा लिए वह आया, मंच से उतरा और तेज़ी से आगे बढ़ गया| पीछे की तमाम पुकारों को पीछे छोड़ता हुआ| (मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जंगल के फूल कंक्रीटों में नहीं उगा करते. व्यक्तिगत रूप से मेरा भी ऐसा ही मानना है इसलिए आपके कथानक को मैंने अपने काफी करीब महसूस किया. बढ़िया सन्देश देती इस उम्दा कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीया सीमा जी. सादर.
बहुत बहुत धन्यवाद शिज्जू शकूर जी
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय प्रतिभा जी
बहुत खूब ,चका चौंध का सच , इसी प्लाट पर अपने ब्लॉग में मैंने भी एक कथा लिखी थी' हुनर बाज' पर मेरे नायक ने चका चौंध के आगे घुटने टेक दिए थे , सकारात्मक अंत लिए आपकी कथा ने प्रभावित किया है ....हार्दिक बधाई आपको प्रिय सीमा जी
आ. सीमा मिश्रा जी आपकी लघुकथा रियलिटी शो के सच को उजागर करती है, हालाँकि यही कामयाबी का पैमाना हो गया है, आजकल सिर्फ प्रतिभा ही सबकुछ नहीं होती. बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत धन्यवाद आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय हरिओम जी
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