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ग़ज़ल - दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं - ( गिरिराज )

2122   1212   22 /112

मेरी साँसें रवाँ - दवाँ कर दे  

फिर लगे दूर आसमाँ कर दे

 

प्यासे दोनों तरफ़ हैं , खाई के

है कोई.. ? खाई जो कुआँ कर दे 

 

वो ठिकाना जहाँ उजाला हो
सब की ख़ातिर उसे अयाँ कर दे

 

दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं

आ मेरे सामने , बयाँ कर दे

 

ऐ ख़ुदा, क्या नहीं है बस में तिरे

हिन्दी- उर्दू को एक जाँ कर दे

 

कैसे देखूँगा मै ये जंग ए अदब

मेरी आँखे धुआँ धुआँ कर दे

 

वो अकेला है राह ए हक़ में, उसे

है दुआ मेरी, कारवाँ कर दे

मेरी बातें हों नागवार जिन्हें

रू ब रू उनके, बे ज़बाँ कर दे

******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 24, 2017 at 5:33pm
मुहतरम जनाब गिरि राज साहिब, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
Comment by Sushil Sarna on April 24, 2017 at 2:19pm

कैसे देखूँगा मै ये जंग ए अदब

मेरी आँखे धुआँ धुआँ कर दे

आदरणीय  गिरिराज भंडारी जी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Samar kabeer on April 23, 2017 at 8:08pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'मेरी साँसें रवां दवां कर दे
फिर लगे दूर आसमाँ कर दे'
मुझे मतले में रब्त स्पष्ट नहीं हो रहा है,ऊला में साँसें तेज़ करने के लिये कहा जा रहा है,और सानी मिसरे में 'फिर लगे दूर',आसमां तो वैसे ही दूर है भाई,आप कहना क्या चाहते हैं ?
Comment by Mohammed Arif on April 23, 2017 at 5:45pm
ऐ ख़ुदा, क्या नहीं है बस में तिरे
हिन्दी- उर्दू को एक जाँ कर दे । वाह!वाह!! क्या ख़ूब एकता की बात कही है ।

कैसे देखूँगा मै ये जंग ए अदब
मेरी आँखे धुआँ धुआँ कर दे । वाह!वाह!!क्या कशिश है । लाजवाब
शे'र दर शे'र भरपूर दाद के साथ मुबारकबाद आदरणीय गिरिराज जी ।

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