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महाबुद्ध से शिष्य ने पूछा, “भगवन! समाज में असत्य का रोग फैलता ही जा रहा है। अब तो इसने बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है। आप सत्य की दवा से इसे ठीक क्यों नहीं कर देते?”

महाबुद्ध ने शिष्य को एक गोली दी और कहा, “शीघ्र एवं सम्पूर्ण असर के लिये इसे चबा-चबाकर खाओ, महाबुद्धि।”

महाबुद्धि ने गोली अपने मुँह में रखी और चबाने लगा। कुछ ही क्षण बाद उसे जोर की उबकाई आई और वो उल्टी करने लगा। गोली के साथ साथ उसका खाया पिया भी बाहर आ गया। वो बोला, “प्रभो ये गोली तो नीम से भी लाख गुना कड़वी थी। ये कैसी ठिठोली थी प्रभो।”

महाबुद्ध बोले, “सच भी ऐसा ही है। यदि मैं समाज को सब कुछ सच सच बता भी दूँ तो वो उस पर कभी विश्वास नहीं करेगा और जो थोड़ा बहुत सच वो जानता और मानता है उस पर से भी उसका विश्वास उठ जायेगा।”

“तो असत्य का ये रोग समाज से कैसे मिटेगा प्रभो।”

“हमें झूठ के खोल में लपेटकर सच समाज तक पहुँचाना होगा। ताकि उसका कड़वापन खत्म हो जाय।”

“कैसे भगवन?”

“कथा लिखो महाबुद्धि। कथा लिखो।”   

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 6, 2017 at 9:08pm

सुन्दर सन्देश प्रद लघु कथा के लिए बहुत बहुत बधाई आद० धर्मेन्द्र जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2017 at 9:04pm
बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आप ने। बधाई। सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2017 at 12:17pm

आसन्न बोधिसत्व असार-संसार में का स्वागत है ! 

शुभ-शुभ

Comment by Mohammed Arif on February 5, 2017 at 6:15pm
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी, आदाब ! संदेशप्रद लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on February 5, 2017 at 5:52pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब,बहुत अच्छी तरकीब सुझाई,'कथा लिखो महाबुद्धि।कथा लिखो ।इस बहतरीन संदेशप्रद लघुकथा के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 5, 2017 at 12:03pm
“कथा लिखो महाबुद्धि। कथा लिखो।”
बिल्कुल सही मार्ग सुझाया है ,इस कथा के माध्यम से। जो काम छोटी छोटी कथाएं , बोथ - कथाएं , लोक - कथाऐं कर सकती हैं , हैं वह बड़े बड़े उपदेश और क़ानून नहीं कर पाते हैं। कथाएं उपदेशों से कहीं अधिक गहरा प्रभाव छोड़तीं हैं , विशेषतः बच्चों पर। अतः विद्वत जनों को यही मार्ग अपनाना चाहिए। पर कथा स्वयं निस्वार्थ लिखी हुयी होनी और लगनी चाहिए अन्यथा वह प्रभावी नहीं होती है।
बहुत सुब्दार एवं सार्थक प्रस्तुति आदरणीय धर्मेंद्र कुमार सिंह , जी बधाई , सादर।

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