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ग़ज़ल -आग किसने लगायी थी घर की-- ( गिरिराज भंडारी )

2122    1212    22

गर वो करता है बात बेपर की ?

क्या ज़रूरत नहीं है पत्थर की

 

क्या हुकूमत लगा रही है अब ?

कीमत उस फतवे से किसी सर की 

 

सिर्फ तहरीर में मिले भाई

सुन कहानी तू दाउ- गिरधर की

 

जिनके अजदाद आज ज़िन्दा हों  

वो करें बात गुज़रे मंज़र की

 

क्या मुहल्ला तुझे बतायेगा ?

आग भड़की थी कैसे उस घर की

 

दीन ओ ईमाँ की बात करता है

क्या हवा लग न पायी बाहर की

 

रोशनी आज उनको देखेगी

रुख़  से चिलमन अगर ज़रा सरकी

 

फेर कर देख मेरी गरदन पर

आजमा ले तू  धार तू ख़ंज़र की  

*************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on January 18, 2017 at 7:13pm

रोशनी आज उनको देखेगी
आज चिलमन लगी ज़रा सरकी

वाह आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल पेश की आपने। हर शे'र पे वाह निकलती है। हार्दिक मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by Samar kabeer on January 18, 2017 at 3:01pm
जनाब गिरराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
पांचवें शैर पर बहना का सुझाव उत्तम है ।
'रौशनी आज उनको देखेगी
आज चिल्मन ज़रा लगी सरकी'

इस शैर के दोनों मिसरों में 'आज'शब्द खटकता है, दूसरी बात ये कि सानी मिसरे में अल्फ़ाज़ की बंदिश चुस्त न होने से मिसरा रवानी में नहीं है,इस शैर को यूँ कह सकते हैं :-
"रौशनी आज उनको देखेगी
रुख़ से चिल्मन अगर ज़रा सरकी"

आख़री शैर के सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये 'मत तू',सानी यूँ कह सकते हैं :-
'आज़मा ले तू धार ख़ंजर की'
Comment by नाथ सोनांचली on January 18, 2017 at 1:20pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर अभिवादन, बहुत ही खूबसूरत और उम्दा गजल बन पड़ी है। हर शैर मुकम्मल कुछ कहता हुआ, बहुत बहुत मुबारकबाद आपको पेश करता हूँ। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 12:21pm

आदरणीय गिरिराज सर, शानदार ग़ज़ल कही है आपने. अशआर एक से बढ़कर एक है. इस शानदार ग़ज़ल पर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 18, 2017 at 11:00am

गर वो करता है बात बेपर की 

क्या ज़रूरत नहीं है पत्थर की?-----सानी पे प्रश्चिन्ह होना चाहिए उला पर नहीं आदरणीय गिरिराज  जी जबरदस्त कटाक्ष शानदार मतला 

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है 

 शेर दर शेर मुबारक बाद क़ुबूल करें 

क्या मुहल्ला तुझे बतायेगा ?

आग किसने लगायी थी घर की---बहुत उम्दा कमाल का शेर इसे ऐसे भी कह सकते हैं --आग भड़की थी कैसे उस घर की .मुझे ऐसा लगा क्योंकि  ...आग किसने लगायी थी घर में --सही होता किन्तु रदीफ़ की वजह से ये नहीं हो सकता | ये मेरा सिर्फ अपना विचार है सादर 

 

 

रोशनी आज उनको देखेगी

आज चिलमन लगी ज़रा सरकी---वाह्ह्ह्ह वाह्ह 

फेर कर देख मेरी गरदन पर

पूछ तासीर मत तू ख़ंज़र की  -----बहुत उम्दा 

दिल से बधाई लीजिये आद० गिरिराज जी 

 

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