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ग़ज़ल ;उस फ़रिश्ते की प्रतीक्षा है अभी

बह्र : २१२२ २१२२ २१२

प्यार की धुन को बजाता जायगा

राज़  जीवन का सुनाता जायगा |

पल दो पल की जिंदगी होगी यहाँ  

दोस्ती सबसे निभाता जायगा |

बाँटता जाएगा मोहब्बत सदा

दोस्त दुश्मन को बनाता जायगा |

पेट खुद का चाहे हो खाली मगर

खाना भूखों को खिलाता जायगा |

ले धनी का साथ अपनी राह में

मुफलिसों को भी मिलाता जायगा |

छोड़ नफरत द्वेष हिंसा औ घृणा

प्रेम मोहब्बत सिखाता जायगा |

उस फ़रिश्ते की प्रतीक्षा है अभी

स्वर्ग धरती को बनाता जायगा |

 

© कालीपद ‘प्रसाद’

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Comment

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 27, 2016 at 10:20pm

आदरणीय समीर कबीर साहिब  आदाब , ग़ज़ल पर समय देने के लिए तहे दिल से शुक्रिया |निवेदन है फिरसे एक बार इस प्रकार देखे 

//तीसरे शैर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है,यूँ कर सकते हैं:-//

बाँटता जाये गा मोहब्बत सदा 

२ १२   २/२१    २२/२     १२   (गा की मात्रा गिराई गई )

//इसी तरह छटे शैर का सानी मिसरा बह्र में नहीं है,यूँ कर सकते हैं//

प्रेम  मोहब्बत सिखाता जायगा 

२१   २२/२ १२२/        २१२ 

दोनों बहर में हैं , एक बार आप तकती'अ  कर लीजिये 

सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2016 at 9:24pm

आ० कालीपद जी, अच्छा प्रयास हुआ है . मेरी नजर में यदि आप बजाता सुनाता  की जगह बजाया  सुनाया  और पूरी  गजल में ऐसा कर ले तो गजल का सौन्दर्य बढ़ जाएगा   मतले के सानी को अगर ऐसा लिखे तो रब्त  अच्छा  बनेगा - राग जीवन का सुनाया जायेगा .  


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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 2:55am

आदरणीय कालीपद प्रसाद जी, ग़ज़ल का बहुत प्रयास अच्छा हुआ है,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं. आदरणीय समर कबीर जी से सहमत हूँ. सादर 

Comment by Samar kabeer on December 25, 2016 at 9:35pm
जनाब कालीपद प्रसाद जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

तीसरे शैर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है,यूँ कर सकते हैं:-
"बाँटता ही जाएगा चाहत सदा"
इसी तरह छटे शैर का सानी मिसरा बह्र में नहीं है,यूँ कर सकते हैं:-
प्रेम वो सबको सिखाता जाएगा"

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