नेवलों के पी'छे' पीछे साँप सारे चल पड़े ।।
देखनें को खेल न्यारा हम उँघारे चल पड़े ।।(१)
.
मुर्गियाँ भी माँगती हैं अब सुरक्षा कौम की,
अस्त्र आरक्षण उठाकर तॆज नारॆ चल पड़ॆ ॥(२)
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बन्दरों नें नाक में दम कर रखा है आजकल,
कूद करके गाल पर बस तीन मारे चल पड़े ।।(३)
.
मल्लिका की फिल्म आई पूत लाये थे टिकिट,
काम धन्धे छोड़ करके बाप न्यारे चल पड़े ।।(४)
.
था स्वयंवर वो अजब राखी खड़ी तैयार थी,
चैनलों पर न्यूज सुनकर सब कुँआरे चल पड़े ।।(५)
.
पुण्य गंगा में नहाने जा रहा ये देख कर,
झुण्ड मारे कुम्भ को सब पाप खारे चल पड़े ।।(६)
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रात भर मुझको जगाते रह गए वो और फिर,
भोर होते रूठ करके चाँद तारे चल पड़े ।।(७)
.
आदमी अपनी अलग पहचान को बेताब है,
एक हम शायर हमें कोई पुकारे चल पड़े ।।(८)
.
उन शहीदों की वफ़ा का दाम क्या दोगे भला,
हर प्रभाती गीत गाते पा इशारे चल पड़े ।।(९)
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एक अपना मन्त्र है वह गीत वन्दे मातरम,
भारती की आरती दिल से उतारे चल पड़े ।।(१०)
.
दाँव खेला जीतने तक खूब जमकर 'राज़' जी,
आख़िरी पत्ता उठाया दाव हारे चल पड़े ।।(११)
डॉ राज बुन्देली"
22/12/2016
मौलिक एवं अप्रकाशित
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Comment
आदरणीय़
मिथिलेश वामनकर जी सादर धन्यवाद,,,,
आदरणीय़
बृजेश कुमार 'ब्रज' जी बहुत बहुत धन्यवाद,,,,
आदरणीय़
Samar kabeer जी बहुत बहुत धन्यवाद,,,,
आदरणीय़
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी सादर धन्यवाद,,,,
आ० बुन्देली जी , बीच बीच में कुछ मजाहिया शेर भी हुए . बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है बधाई .
आदरणीय कृपया ग़ज़ल की बह्र या वज्न लिख दीजिये. सादर
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