बह्र : 2122 1122 1122 22
दिल के जख्मों को चलो ऐसे सम्हाला जाए
इसकी आहों से कोई शे’र निकाला जाए
अब तो ये बात भी संसद ही बताएगी हमें
कौन मस्जिद को चले कौन शिवाला जाए
आजकल हाल बुजुर्गों का हुआ है ऐसा
दिल ये करता है के अब साँप ही पाला जाए
दिल दिवाना है दिवाने की हर इक बात का फिर
क्यूँ जरूरी है कोई अर्थ निकाला जाए
दाल पॉलिश की मिली है तो पकाने के लिए
यही लाजिम है इसे और उबाला जाए
दो विकल्पों से कोई एक चुनो कहते हैं
या अँधेरा भी रहे या तो उजाला जाये
------------
(मौलिक एवंं अप्रकाशित)
Comments are closed for this blog post
शुक्रिया आदरणीय आशीष यादव जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |