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सांसारिक स्वार्थग्रस्त प्रक्रियाओं से घबराकर

मुझसे ही कतराकर

चल बसी थी अकुलाती मेरी आस्था

उसके अंतिम संस्कार से पहले

टूटे विश्वास से फूटी तो थी रक्तधार

पर यह तो सदियों पुरानी बात है

समझ में न आए

कुलाँचते ख्यालों की अदृश्य रगों में

आज इतनी तपिश क्यूँ है

यादों के घावों को चोंच मार

छील गया कोई कैसे

कब से यहाँ जब कोई पास नहीं है

मेरी ही आन्तरिक कमज़ोरी को जानकर

तकलीफ़ भरे धूल भरे

भीतरी विवरों में झांककर 

नागिन-सी लिपटी मेरी दलीलों को दिलासा देने

चली आती होगी

मृत-आस्था की आत्मा

पर आ-आकर वह

असंख्य असत्यों के सरसराते काल-नाग की

भयावह फुँकार से

हार जाती होगी, डर जाती होगी

मेरी तरह भटक जाने से भयभीत

लौट जाती होगी

ऐसे में मैं ही शब्दों और तर्कों  के चक्रव्यूह में

कठिन मानव-प्रसंगो के अनबूझे समीकरण से

ऊबकर उकताकर घबरा कर

छील देता हूँ हृदय-सम्बन्धों के घावों को नाखुनों से

चोंच मारते हुए पक्षी-सा

भयानक गति से बार-बार

-------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 851

Comment

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Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 10:11am

आपसे मिली सराहना सदैव मेरा मनोबल बढ़ाती है, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी। हार्दिक धन्यवाद, भाई।

Comment by Mohammed Arif on June 25, 2017 at 6:40pm
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब, बहुत ही सुंदर रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by vijay nikore on January 18, 2017 at 3:08pm

// इस रचना को पढ़ते समय मै किसी शून्य में खो गया ... रचना ने एक अलग सा भाव पटल पर अंकित कर दिया //

इस रचना को इस प्रकार मान देने के लिए आपको हृदयतल से मेरा धन्यवाद, आदरणीय सुरेन्द्र जी।

Comment by नाथ सोनांचली on January 18, 2017 at 4:27am
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन, इस रचना को पढ़ते समय मै किसी शून्य में खो गया, बहुत कम रचनाये होती हैं जिसे पढ़ने। के बाद चिरस्थायी कोई भाव पँपनता हो, पर इस रचना ने एक अलग सा भाव पटल पर अंकित कर दिया, उत्तम रचना के लिए दिल खोल कर बधाई लीजिये,।
Comment by vijay nikore on January 17, 2017 at 11:18pm

रचना की सराहना के लिए आपका आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी

Comment by vijay nikore on January 17, 2017 at 11:15pm

रचना की सराहना के लिए आपका आभार, आदरणीय नरेन्द्र्सिहं जी

Comment by vijay nikore on January 17, 2017 at 10:55pm

//ह्रदय के हाहाकार को शब्दों में साकार कर देने की कला सीखने के लिए आपके पास समिधा लेकर आना होगा . पीड़ा की अभिव्यक्ति तो सभी करते हैं पर आपका शब्द शब्द मानो  पीड़ा का यथार्थ बयां करता है//

इतना मान देने के लिए आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी।

Comment by vijay nikore on January 7, 2017 at 11:18am

// ये कविता इतनी संजीदा और जज़्बाती है कि मेरे लिये इसकी तारीफ़ करना मुश्किल हो रहा है,हैरत ज़दा हूँ कि आप इस्तेआरों के ज़रिये कितनी आसानी से अपनी बात कह गये, वाह बहुत ख़ूब जनाब,इसे कहते हैं कामयाब सृजन जितनी तारीफ़ की जाये कम होगी इस रचना की,सलाम करता हूँ आपके जादुई क़लम को,सुब्हान अल्लाह //

आपसे यह सुनहरी प्रतिक्रिया पाकर मैं माँ शारदा को नत-मस्तक हूँ .. मेरी तो केवल कलम है, सच कहता हूँ माँ शारदा ही सब लिखती हैं, सब उनकी देन है। इतने बड़े मान के लिए हृदयतल से आपका आभार, आदरणीय समर कबीर जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:22pm

आदरनीय बड़े भाई विजय जी , ह्र्दय मे उठते -गिरते दर्द की तरंगों को सटीक शब्द दिये हैं आपने , आपको इस रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:22pm

आदरनीय बड़े भाई विजय जी , ह्र्दय मे उठते -गिरते दर्द की तरंगों को सटीक शब्द दिये हैं आपने , आपको इस रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

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